कोलकाता, 10 जून (आईएएनएस)। राज्य सरकार के बजट दस्तावेजों के अनुसार, पश्चिम बंगाल सरकार का कुल ऋण 31 मार्च 2024 तक बढ़कर 6,47,825.52 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो 31 मार्च 2023 के 5,86,124.63 करोड़ रुपये के आंकड़े से 10 प्रतिशत ज्यादा है।
परेशान करने वाली बात यह है कि इसी अवधि तक राज्य का प्रति व्यक्ति कर्ज (ऋण) बढ़कर 59,000 रुपये होने की उम्मीद है। अनुमानित कुल कर्ज और प्रति व्यक्ति कर्ज दोनों आंकड़े 31 मार्च 2011 के संबंधित आंकड़ों की तुलना में बहुत अधिक हैं, जो पश्चिम बंगाल में 34 साल के वाम मोर्चा शासन का अंतिम वर्ष था। 31 मार्च 2011 तक कुल कर्ज का आकड़ा 1,97,000 करोड़ रुपये था और प्रति व्यक्ति कर्ज का आकड़ा 20,300 रुपये था।
अर्थशास्त्रियों को भय है कि जब तक इस वृद्धि के ट्रें़ड को रोकने के लिए तत्काल राजकोषीय उपाय नहीं अपनाए जाते हैं, राज्य धीरे-धीरे कर्ज के जाल की स्थिति की ओर बढ़ जाएगा। ऐसा होने पर राज्य को पुराने कर्ज को चुकाने के लिए नया कर्ज लेना पड़ेगा। इस तरह की स्थिति तब आती है जब कर्ज और जीएसडीपी का अनुपात 50 फीसदी तक पहुंच जाता है।
वास्तव में साल 2023-24 के लिए राज्य के बजट के दस्तावेज पिछले कर्ज को चुकाने के पीछे समीक्षाधीन वित्त वर्ष के दौरान राज्य के उच्च व्यय के कुछ स्पष्ट संकेत देते हैं।
बजट दस्तावेजों के अनुसार, मार्च 2024 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के दौरान, राज्य सरकार को पहले के कर्ज पर मूलधन और ब्याज की अदायगी के लिए 73,303.68 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। पिछले वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों के अनुसार, इस मद में सरकार ने 69,691.79 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जहां पश्चिम बंगाल में इस बढ़ते कुल और प्रति व्यक्ति कर्ज का पहला कारण गैर-योजनागत व्यय में वृद्धि है, वहीं दूसरा कारण राज्य के अपने टैक्स राजस्व में सुधार के लिए पर्याप्त अवसरों की कमी है, जो विशुद्ध रूप से राज्य के उत्पाद शुल्क का प्रभुत्व है।
वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 19.41 प्रतिशत अनुमानित वृद्धि के साथ राज्य का उत्पाद शुल्क राज्य के अपने टैक्स राजस्व के सृजन के लिए प्रमुख हिस्सा बना रहेगा।
2023-24 के बजट अनुमानों के अनुसार, राज्य का टैक्स से प्राप्त राजस्व 88,595.54 करोड़ रुपये होने होगा। जो 2022-23 के संशोधित अनुमान के 79,500 करोड़ रुपये से केवल 12.69 प्रतिशत से अधिक है। वहीं वित्तीय वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमानों के अनुसार उत्पाद शुल्क संग्रह 19.41 प्रतिशत बढ़कर 17,921.56 करोड़ रुपये हो गया है, जो पिछले वित्तीय वर्ष में 15,001.39 करोड़ रुपये था।
इस संबंध में एक अन्य महत्वपूर्ण फेक्टर यह है कि 2023-24 में राज्य उत्पाद शुल्क, जो राज्य के अपने टैक्स से प्राप्त राजस्व के 12 स्रोतों में से एक है, जो कुल टैक्स संग्रह में 20.22 प्रतिशत का योगदान देगा।
केंद्र सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार और वर्तमान में भाजपा विधायक अशोक कुमार लाहिड़ी के अनुसार, चूंकि राज्य सरकार का ध्यान बुनियादी ढांचे के विकास जैसे पूंजीगत व्यय के बजाय आवर्ती व्यय पर अधिक है, इसलिए निवेशक राज्य से दूर भाग रहे हैं।
इसका मतलब है कि रोजगार सृजन न केवल बड़े उद्योगों में प्रत्यक्ष रोजगार के संदर्भ में है, बल्कि सहायक और सहयोगी उद्योगों के विकास के रूप में भी है, जो राज्य के दीर्घकालिक आर्थिक विकास को सक्षम कर सकता है। उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकार का ध्यान मेलों और त्योहारों जैसे अनुत्पादक खचरें पर ज्यादा रता है।
अर्थशास्त्री पीके मुखोपाध्याय भी राज्य सरकार के खर्च के रुझान या कर्ज के रुपयों का उपयोग कैसे किया जाता है, इस पर चिंतित दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के व्यय का मुख्य भाग आवर्ती या गैर-योजनागत व्यय होता है। पूंजीगत व्यय में कम खर्च का अर्थ है कम संपत्ति निर्माण और कम रोजगार सृजन। यह वह क्षेत्र है जिसमें राज्य सरकार को ध्यान केंद्रित करना चाहिए और पूंजीगत व्यय के अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए और बाद में गैर-योजना व्यय पर खर्च को कम करना चाहिए।
–आईएएनएस
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