लखनऊ, 4 अप्रैल (आईएएनएस)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश गोवध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किए गए सीतापुर निवासी एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत दे दी है और उसके खिलाफ कार्रवाई को दंडात्मक कानून के दुरुपयोग का एक ज्वलंत उदाहरण बताया है।
न्यायमूर्ति मोहम्मद फैज आलम खान ने पाया कि किसी आरोपी व्यक्ति के कब्जे से या मौके से न तो प्रतिबंधित पशु और न ही उसका मांस बरामद किया गया। जांच अधिकारी द्वारा केवल एक रस्सी और कुछ मात्रा में गाय का गोबर एकत्र किया गया था।
आवेदक ने मामले में अपनी गिरफ्तारी की आशंका को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
आवेदक और तीन अन्य पर सीतापुर जिले के रेउसा थाने में गोहत्या निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था।
प्राथमिकी में कहा गया है कि 16 अगस्त, 2022 को शाम 7.30 बजे जमील के गन्ने के खेत में एक प्रतिबंधित पशु का वध किया गया था और जब मुखबिर मौके पर पहुंचा, तो उसे एक रस्सी और गाय के बछड़े का गोबर मिला।
प्राथमिकी में यह भी कहा गया है कि कुछ ग्रामीणों ने नामजद आरोपियों को एक बछड़े को जमील के गन्ने के खेत की ओर ले जाते हुए देखा था।
पीठ ने पाया कि प्राथमिकी केवल आशंका और संदेह के आधार पर दर्ज की गई थी और बिना किसी गिरफ्तारी के आरोप पत्र भी दायर किया गया था और इस तथ्य के बावजूद कि गाय के गोबर और एक रस्सी के अलावा, मौके से कुछ भी बरामद नहीं हुआ था।
पीठ ने यह कहते हुए याचिका को स्वीकार कर लिया कि आरोपी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और पर्याप्त शर्तें रखकर निचली अदालत के समक्ष उसकी उपस्थिति सुनिश्चित की जा सकती है।
–आईएएनएस
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