नई दिल्ली, 13 जनवरी (आईएएनएस)। भारत ने 2019 की तुलना में 2020 में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में 7.93 प्रतिशत की कमी हासिल की है, जो एक सस्टेनेबल भविष्य के लिए प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है। हाल ही में सरकार द्वारा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को लेकर यह जानकारी दी गई।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि देश ने 2021 में पार्टियों के 26वें सम्मेलन (सीओपी 26) में 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन हासिल करने का संकल्प लिया है।
भारत की चौथी द्विवार्षिक अपडेट रिपोर्ट ने 2019 की तुलना में 2020 में जीएचजी उत्सर्जन में 7.93 प्रतिशत की कमी को उजागर किया।
देश ने 30 दिसंबर, 2024 को जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को बीयूआर-4 पेश किया।
रिपोर्ट में जानकारी दी गई है, “लैंड-यूज, लैंड-यूज चेंज एंड फोरेस्ट्री (एलयूएलयूसीएफ) को छोड़कर, भारत का उत्सर्जन 2,959 मिलियन टन सीओटूई था।”
एलयूएलयूसीएफ सहित, शुद्ध उत्सर्जन 2,437 मिलियन टन सीओटूई था। ऊर्जा क्षेत्र सबसे बड़ा योगदानकर्ता था, जो उत्सर्जन का 75.66 प्रतिशत था, अन्य भूमि उपयोग के साथ, लगभग 522 मिलियन टन सीओटूई को अलग किया, जो देश के कुल उत्सर्जन के 22 प्रतिशत को कम करने के बराबर था।
मंत्रालय ने जोर देकर कहा, “ये प्रयास समानता और पेरिस समझौते के सिद्धांतों के आधार पर अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों को संबोधित करते हुए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।”
भारत, वैश्विक तापमान में न्यूनतम योगदान देने के बावजूद, अपनी बड़ी आबादी और विकास संबंधी जरूरतों के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है। देश अपनी अनूठी परिस्थितियों को संबोधित करते हुए कम कार्बन विकास और जलवायु लचीलापन बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
1850 और 2019 के बीच दुनिया की आबादी का लगभग 17 प्रतिशत होने के बावजूद, संचयी वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में भारत का ऐतिहासिक हिस्सा सालाना 4 प्रतिशत है।
रिपोर्ट के अनुसार, “2019 में भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक प्राथमिक ऊर्जा खपत 28.7 गीगाजूल (जीजे) थी, जो विकसित और विकासशील दोनों देशों की तुलना में काफी कम है।”
देश ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक स्थायी मार्ग तैयार करने के लिए दीर्घकालिक कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन विकास रणनीति (एलटी-एलईडीएस) तैयार की है।
मंत्रालय ने कहा, “भारत अपनी दीर्घकालिक कम उत्सर्जन विकास रणनीति और महाकुंभ 2025 में मियावाकी वृक्षारोपण जैसी प्रमुख पहलों को लागू कर रहा है। ये प्रयास संतुलित विकास और पर्यावरणीय जिम्मेदारी सुनिश्चित करते हैं, जिससे जलवायु-अनुकूल भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है।”
–आईएएनएस
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