नई दिल्ली, 29 जुलाई (आईएएनएस)। चीनी आपराधिक सिंडिकेट और गिरोह भारत में घोटाला अभियान चला रहे हैं। हाल के दिनों में ऐसे कई डिजिटल ऋण के बड़े मामलों का पता चला है और यह संदेह है कि इस तरह की अवैध गतिविधियों का पैमाना समय के साथ बढ़ा है।
चीनी घोटालेबाज मेजबान देशों में कानूनी प्रणाली में खामियों का फायदा उठा रहे हैं। वे अक्सर बेरोजगार युवाओं और आर्थिक रूप से तनावग्रस्त समाज के निचले तबके को अपने जाल में फंसा रहे हैं, जो ऐसे गिरोहों के लिए आसान शिकार बन जाते हैं।
जांचकर्ताओं ने पाया कि अधिकांश सरगना चीन से ऑपरेट कर रहे हैं, लेकिन वे अपनी व्यापक अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक गतिविधियों को चलाने के लिए पड़ोसी देशों में स्थानीय लोगों को नियुक्त करते हैं, जिसमें डेटा एकत्र करना और भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना भी शामिल है।
साइबर सुरक्षा कानून पर अंतर्राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष पवन दुग्गल ने कहा कि चीनी ऋण ऐप्स व्यापक दृष्टिकोण के तहत भारतीय अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रहे हैं। “चीन का लक्ष्य राष्ट्र के साथ अपने पिछले संबंधों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को लक्षित करना है। परिणामस्वरूप, चीन सक्रिय रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने और इन ऋण ऐप्स के माध्यम से जितना संभव हो उतना डेटा इकट्ठा करने के लिए काम कर रहा है।”
उन्होंने यह भी बताया कि ये ऐप उच्च ब्याज दरों पर तत्काल ऋण प्रदान करते हैं, जिससे लोग वित्तीय संकट में पड़ जाते हैं। हालांकि कई चीनी ऐप वर्ष 2000 में बने आईटी अधिनियम के अंतर्गत आते हैं, वे भारतीय कानून का पालन नहीं करते हैं। जिससे देश के लोगों को करोड़ों रुपये का नुकसान होता है।
उन्होंने समर्पित साइबर अपराध अदालतों की आवश्यकता पर भी बल दिया, क्योंकि मौजूदा अदालतें आपराधिक मुकदमों से भरी हुई हैं। दुग्गल ने आपराधिक उद्देश्यों के लिए उभरती प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग को संबोधित करने के लिए नए कानूनी ढांचे की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला।
दुग्गल के अनुसार, महामारी ने साइबर अपराध के स्वर्ण युग की शुरुआत को चिह्नित किया है, जिसके कई दशकों तक जारी रहने की उम्मीद है। उनका मानना है कि साइबर अपराध हमारा निरंतर साथी बन गया है, और साइबर सुरक्षा उल्लंघन नया मानदंड है।
उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से, भारत साइबर अपराध में इस तेजी से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है, खासकर साइबर अपराधी अपनी दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों और चैटजीपीटी जैसे उपकरणों का लाभ उठा रहे हैं।”
साइबर अपराध कानूनों के संबंध में दुग्गल ने तीन महत्वपूर्ण मुद्दे बताए। सबसे पहले, वर्तमान में साइबर अपराध को संबोधित करने के लिए विशेष रूप से कोई समर्पित कानून नहीं है। दूसरा, कुछ साइबर अपराध सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आते हैं, लेकिन व्यापक रूप से नहीं। और तीसरा, मौजूदा कानून साइबर अपराधों का प्रभावी ढंग से जवाब देने के लिए अपर्याप्त हैं। इससे उनसे निपटने में महत्वपूर्ण चुनौतियाँ पैदा होती हैं।
उन्होंने कहा, “सरकार को हमारे देश में उन लोगों से निपटने के लिए कड़े कानून लाने की जरूरत है जो चीनी ऋण ऐप धोखेबाजों के साथ मिले हुए हैं।”
इस साल मार्च में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने चीनी लोन ऐप मामले में मर्चेंट आईडी और बैंक खातों में पड़े 106 करोड़ रुपये फ्रीज कर दिए थे।
ईडी ने साइबर अपराध थाना, बेंगलुरु में कर्नाटक साहूकार अधिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, कर्नाटक अत्यधिक ब्याज वसूलने पर प्रतिबंध अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज एफआईआर के आधार पर कई संस्थाओं के खिलाफ जनता से जबरन वसूली और उत्पीड़न में शामिल होने के संबंध में जांच शुरू की थी। इनके पीडि़तों में ऐसे लोग शामिल थे जिन्होंने उन चीनी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे मोबाइल ऐप के माध्यम से छोटी मात्रा में ऋण लिया था।
ईडी की जांच में इन संस्थाओं की कार्यप्रणाली का पता चला। चीनी नागरिक डमी निदेशकों की नियुक्ति करके कंपनी के कर्मचारियों के केवाईसी दस्तावेज प्राप्त करते हैं। इसके बाद बिना उनकी जानकारी या पूर्व सहमति के उनके नाम पर बैंक खाते खोलते हैं।
ईडी ने कहा था, “ये संस्थाएं केवाईसी दस्तावेजों में फर्जी पते जमा करके और विभिन्न पेशेवरों और अन्य व्यक्तियों से सहायता लेकर आपराधिक गतिविधियों में शामिल थीं। उन्होंने ऋण ऐप्स और अन्य माध्यमों से जनता को तत्काल अल्पकालिक ऋण प्रदान किया है और उच्च प्रोसेसिंग शुल्क और अत्यधिक ब्याद दरें लगाई हैं। बाद में इन कंपनियों द्वारा ऋण लेने वालों को फोन पर धमकाने और मानसिक यातना देने के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों से पैसे मांगने के लिए संपर्क करके लोगों से वसूली की गई।”
अधिकारी ने कहा कि ये चीनी राष्ट्रीय-नियंत्रित संस्थाएं विभिन्न भुगतान गेटवे, रेजरपे, कैशफ्री, पेटीएम, पेयू, ईजीबज और विभिन्न बैंकों में रखे गए बैंक खातों के साथ बनाए गए मर्चेंट आईडी के माध्यम से भारी धन शोधन गतिविधियों में लिप्त हैं और इस तरह उन्होंने अपराध की आय उत्पन्न की है।
–आईएएनएस
एकेजे