नई दिल्ली, 22 जुलाई (आईएएनएस)। अमेरिका के नजरिए से, अगर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत वास्तव में चीन को पछाड़ सकता है तो यह चिल्लाने लायक बात होगी। भारत चीन का प्रतिद्वंद्वी है, दोनों देश 2,000 मील से अधिक विवादित, अनिर्धारित सीमा साझा करते हैं, जहां छिटपुट रूप से संघर्ष होता रहता है।
विदेश नीति में हार्वर्ड केनेडी स्कूल में सरकार के प्रोफेसर ग्राहम एलिसन ने लिखा है कि एशिया में चीन के प्रतिस्पर्धी जितने बड़े और मजबूत होंगे, अमेरिका के अनुकूल शक्ति संतुलन की संभावनाएं उतनी ही अधिक होंगी।
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, 1.4 अरब लोगों की आबादी और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ, आर्थिक तथा भूराजनीतिक रूप से भारत की बढ़ती प्रमुखता इसे एक ऐसा देश बनाती है, जिसे बाइडेन प्रशासन- ट्रंप, ओबामा और बुश की तरह नजरअंदाज नहीं कर सकता है।
फिर भी अधिकांश विशेषज्ञों का कहना है कि यह चीन ही है जो इस बढ़ते गठबंधन का मूल चालक रहा है। बीजिंग के आक्रामक, विस्तारवादी एजेंडे पर आपसी चिंताएं कभी इतनी तीव्र नहीं रहीं।
यह चीन के साथ वाशिंगटन के रिश्ते में बदलाव के साथ मेल खाता है, जो रणनीतिक प्रतिस्पर्धी से प्रतिद्वंद्वी या सीधे खतरे में बदल गया है जिसे रोका और नियंत्रित किया जाना चाहिए। द्विदलीय (द्वि-पक्षीय) सर्वसम्मति यह है कि भारत, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभुत्व के मुकाबले एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक और यहां तक कि आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण देश है।
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में दक्षिण एशिया कार्यक्रम के निदेशक मिलन वैष्णव ने कहा कि वाशिंगटन में चीन को नियंत्रण में रखने की कोशिश करने के लिए डिटरेन्स का एक विस्तारित ढांचा तैयार करने की उम्मीद है। भौगोलिक रूप से और साथ ही रणनीतिक और आर्थिक रूप से, भारत इस ढांचे में एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गया है।
वर्षों से वाशिंगटन द्वारा सावधानीपूर्वक पोषण किए जाने के बावजूद भारत के साथ अमेरिकी संबंधों के कई पहलू चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं।
2000 के बाद से द्विपक्षीय व्यापार दस गुना बढ़ गया है, 2022 में 191 अरब डॉलर हो गया और भारत 2021 में नौवां सबसे बड़ा अमेरिकी व्यापार भागीदार बन गया, लेकिन लंबे समय से चली आ रही आर्थिक दिक्कतें बरकरार हैं।
एलिसा आयरेस ने टाइम में लिखा है कि तेजी से मजबूत हो रहे ‘क्वाड’ जिसमें अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और जापान शामिल हैं, में बहुपक्षीय रूप से भारत की भूमिका वाशिंगटन और नई दिल्ली के लिए साझा उद्देश्य लेकर आई है, दोनों ही चीन को लेकर चिंतित हैं। लेकिन नई दिल्ली ब्रिक्स जैसे वैकल्पिक गैर-पश्चिमी समूहों का भी समर्थन करती है और यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तथा जी7 जैसी अमेरिकी कूटनीति के केंद्रीय निकायों से बाहर बनी हुई है।
आयरेस जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी इलियट स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स में इतिहास और अंतर्राष्ट्रीय मामलों की डीन और प्रोफेसर हैं, और काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस में भारत, पाकिस्तान और दक्षिण एशिया के लिए सहायक वरिष्ठ फेलो हैं।
पिछली एक चौथाई सदी में अमेरिका-भारत संबंधों में बदलाव आया है, लेकिन उस परिवर्तन ने निकटतम अमेरिकी गठबंधनों के समान साझेदारी या संरेखण प्रदान नहीं किया है।
–आईएएनएस
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