नई दिल्ली, 23 जुलाई (आईएएनएस)। हाल के दशकों में जंक फूड (जिसे ‘फास्ट फूड’ भी कहा जाता है) की खपत में काफी वृद्धि हुई है। इसमें हाई कैलोरी कंटेंट, ज्यादा शुगर, अनहेल्दी फैट्स और लो न्यूट्रिशन होता है। दुर्भाग्य से, इसका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम पड़ा है। इसका टाइप 2 डायबिटीज की वैश्विक महामारी में बड़ा योगदान है।
कभी मध्यम आयु वर्ग और अधिक उम्र के वयस्कों की बीमारी समझी जाने वाली टाइप 2 डायबिटीज अब बच्चों और किशोरों सहित सभी उम्र के लोगों को प्रभावित कर रही है।
जंक फूड की खपत में वृद्धि और टाइप 2 डायबिटीज की घटनाओं के बीच संबंध ने स्वास्थ्य पेशेवरों और शोधकर्ताओं की चिंता बढ़ा दी है।
गुरुग्राम के मेदांता के वरिष्ठ निदेशक, एंडोक्राइनोलॉजी और डायबिटोलॉजी डॉ. सुनील कुमार मिश्रा ने आईएएनएस को बताया, “यह सभी को पता है कि जंक फूड में ज्यादा कैलोरी होती है। इससे लोगों का वजन बढ़ने लगता है।”
उन्होंने कहा, “शरीर में शुगर लेवल को मैनेज करने के लिए, पेनक्रियाज शरीर में इंसुलिन बढ़ाने की कोशिश करता है लेकिन जब असंतुलन होता है तो डायबिटीज होती है। जबकि जंक फूड वयस्कों और बच्चों दोनों को प्रभावित कर सकता है, मुझे लगता है कि बच्चों में डायबिटीज विकसित होने का खतरा अधिक है क्योंकि बचपन में मोटापे की दर लगातार बढ़ रही है।”
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और पत्रिका ‘द लैंसेट डायबिटीज एंड एंडोक्राइनोलॉजी’ में प्रकाशित स्टडी के अनुसार, भारत में हाइपरटेंशन से पीड़ित 315 मिलियन लोग और डायबिटीज से पीड़ित 101 मिलियन लोग हैं।
स्टडी से यह भी पता चला कि 136 मिलियन भारतीय प्री-डायबिटिक हैं, 213 मिलियन लोगों को हाई कोलेस्ट्रॉल हैं,185 मिलियन लोग हाई एलडीएल कोलेस्ट्रॉल या खराब कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित हैं, जबकि 254 मिलियन लोग सामान्य मोटापे के साथ रहते हैं और 351 मिलियन लोग पेट के मोटापे से पीड़ित हैं।
अप्रैल में अपोलो अस्पताल के एक स्टडी से पता चला कि भारत में 65 प्रतिशत मौतें और 40 प्रतिशत अस्पताल में भर्ती होने के पीछे ये गैर-संचारी रोग थे।
विशेषज्ञ बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज के मामलों की संख्या में वृद्धि देख रहे हैं, खासकर 12-18 वर्ष की आयु के किशोरों और कम उम्र के लोगों में।उनका मानना है कि इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि जिन लोगों में बचपन में मोटापा विकसित हो जाता है, वे वयस्क होने पर भी मोटे बने रहेंगे। इसके अतिरिक्त, टाइप 2 डायबिटीज वाले युवाओं में, जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती है, जटिलताओं की संभावना होती है।
स्वास्थ्य पेशेवरों के अनुसार, जो लोग अच्छा विविध आहार खा सकते हैं, जिसमें अच्छी मात्रा में सब्जियां या मांसाहारी भोजन और फल शामिल हैं, उन्हें वास्तव में अतिरिक्त पोषण पेय लेने की आवश्यकता नहीं है।
पुणे के सूर्या हॉस्पिटल और चाइल्ड सुपर स्पेशलिटी क्लिनिकल डाइटिशियन और कार्यात्मक पोषण विशेषज्ञ मिलोनी भंडारी ने आईएएनएस को बताया, “अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों के लगातार सेवन से मोटापा बढ़ता है और ब्लड शूगर का स्तर लगातार ऊंचा रहता है, जिससे टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है।”
उन्होंने कहा, “अलग-अलग फ्लेवर, कलर, इमल्सीफायर, इमल्सीफाइंग नमक, आर्टिफिशियल शुगर, गाढ़ेपन और अन्य एडिटिव्स जैसे एंटी-फोमिंग, बल्किंग, कार्बोनेटिंग, फोमिंग, गेलिंग और ग्लेज़िंग एजेंटों की उपस्थिति के कारण अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों में मानव मस्तिष्क के लिए नशे की लत के गुण होते हैं।
इससे बच्चे और वयस्क दोनों प्रभावित हो सकते हैं, उन्होंने कहा कि टाइप 2 डायबिटीज वाले बच्चों को जीवन भर इस बीमारी से निपटने का सामना करना पड़ सकता है, जिससे हृदय संबंधी समस्याएं, किडनी रोग और दृष्टि संबंधित जैसी परेशानी हो सकती हैं।
इसलिए, स्वास्थ्य विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि लोगों को स्वाद से अधिक पोषण को प्राथमिकता देनी चाहिए और बच्चों में खाने की अच्छी आदतें विकसित करनी चाहिए और उन्हें खेल खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए या दिन में 30 मिनट के लिए केवल एक्टिविटी सुनिश्चित करनी चाहिए।
उन्होंने लोगों को सूचित विकल्प चुनने, पोषण के लिए संतुलित दृष्टिकोण अपनाने और स्वस्थ विकल्प अपनाने के लिए शिक्षित करने की आवश्यकता पर भी बल दिया।
प्रोसेस्ड फूड्स, सैचुरेटेड फैट्स, ट्रांस फैट्स और शुगर युक्त पेय पदार्थों के सेवन को सीमित करते हुए संतुलित आहार का पालन करना चाहिए जिसमें फल, सब्जियां, साबुत अनाज, प्रोटीन और वसा शामिल हैं।
–आईएएनएस
पीके