deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home ताज़ा समाचार

जन्मदिन विशेष : कन्हैयालाल सेठिया और आत्माराम रावजी देशपांडे की रचनाओं ने समाज को दी नई दिशा  

by
September 11, 2024
in ताज़ा समाचार
0
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

READ ALSO

लाल निशान में खुला भारतीय शेयर बाजार, ऑटो और आईटी सेक्टर में दिखी बिकवाली

नौतपा में बेहद शुभ माने जाते हैं ये पौधें, लाते हैं सुख-समृद्धि

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 11 सितंबर (आईएएनएस)। साहित्य और समाज का रिश्ता चोली दामन का है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। साहित्य जो विमर्श गढ़ता है, उसकी छाप समाज पर भी पड़ती है। ऐसे ही मशहूर साहित्यकार कन्हैयालाल सेठिया की रचनाएं सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं और एक समतावादी समाज के निर्माण की कल्पना को पंख लगाती हैं।

राजस्थानी कवि और लेखक के रूप में कन्हैयालाल सेठिया ने सामंतवाद के खिलाफ जबरदस्त मुहिम चलाई थी। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से सती प्रथा, छुआछूत, दहेज, राजशाही व्यवस्था के खिलाफ आम लोगों को जागरूक किया। 1942 में उनकी ओर से लिखी गई किताब ‘अग्नि वीणा’ अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में मुनादी थी। जिसकी वजह से उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। ‘अग्नि वीणा’ के सत्रह क्रांतिकारी गीतों ने देशभक्ति की अलख जगा दी।

सामाजिक सरोकार के कामों को विस्तार देते हुए उन्होंने 1942 में दलितों, हरिजनों और पिछड़ों बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूल की स्थापना की थी। उन्होंने जमींदारी प्रथा के उन्मूलन और किसानों पर जमींदारों-जागीरदारों की ओर से किए जाने वाले शोषण की जमकर मुखालिफत की। सामंती व्यवस्था के खिलाफ उन्होंने ‘कुण जमीन रो धणी’ जैसी कविता लिखी, जो उन दिनों आम लोगों के जुबान पर छाया रहता था।

इस कविता के जरिए कवि कन्हैयालाल सेठिया ने पुराने समय में आम लोगों का जो दर्द होता था, उसे आवाज दी। राजशाही शासन के दौरान जिस प्रकार जमींदारों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता और महाजन किसानों को अपने कर्ज के तले इतना दबा देता था कि वह अपने खेत, बेल आदि सब को गिरवी, बेचकर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाता था। आम जनमानस के इसी दर्द को कलम में पिरोते हुए कन्हैयालाल सेठिया ने यह कविता लिखी थी। उनकी रचनाओं ने न केवल उनको प्रसिद्धि दिलाई बल्कि उन्हें आम आदमी का कवि बना दिया।

कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को राजस्थान के सुजानगढ़ शहर में एक मशहूर व्यवसायी परिवार में हुआ था। उन्होंने हिंदी, राजस्थानी और उर्दू में 42 पुस्तकें लिखी। राणाप्रताप पर उनकी लिखी गई कविता पीथल और पाथल काफी लोकप्रिय रही।

वहीं लोकप्रिय मराठी कवि और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आत्माराम रावजी देशपांडे ने अपनी रचनाओं के जरिए मराठी साहित्य जगत को समृद्ध बनाने का काम किया। लोगों के बीच ‘कवि अनिल’ के नाम से मशहूर आत्माराम जी को फुलवात, भग्नभूर्ति, दशपदी जैसी कई रचनाओं के लिए जाना जाता है।

देशपांडे ने मराठी साहित्य में मुक्त छंद नामक मुक्त शैली की कविता की शुरुआत की। उन्होंने व्याकरण और लय की अपनी समझ को कभी नहीं खोया। उन्होंने दस चरणों की कविता दशपदी शुरू की। ‘दशपदी’ के लिए उन्हें 1977 में ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार मिला।

कवि अनिल का पहला काव्य संग्रह ‘फुलवत’ 1932 में प्रकाशित हुआ। उस समय विशेषकर मराठी में ‘रवि किरण मंडल’ के कवियों का बोलबाला था लेकिन ‘फुलवात’ काव्यसंग्रह ने मराठी साहित्य जगत का ध्यान खींचा। अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती का पत्र-व्यवहार संग्रह (कुसुमानिल) काफी लोकप्रिय है।

इस पत्र व्यवहार में काव्यात्मक शब्दों के साथ भावनाओं का अनूठा संगम है। इस पत्र को पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक कवि अनिल और उनकी पत्नी कुसुमावती देशपांडे के बीच आदान-प्रदान किए गए प्रेम पत्रों का संकलन है।

–आईएएनएस

एकेएस/एफजेड

Related Posts

ताज़ा समाचार

लाल निशान में खुला भारतीय शेयर बाजार, ऑटो और आईटी सेक्टर में दिखी बिकवाली

May 22, 2025
ताज़ा समाचार

नौतपा में बेहद शुभ माने जाते हैं ये पौधें, लाते हैं सुख-समृद्धि

May 22, 2025
ताज़ा समाचार

दस जड़ों में छिपा सेहत का खजाना, जानें दशमूल के चमत्कारी फायदे

May 22, 2025
ताज़ा समाचार

‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सच्चाई बताने संजय झा के नेतृत्व में जापान पहुंचा सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल

May 22, 2025
ताज़ा समाचार

पीएम मोदी आज करेंगे 103 अमृत भारत रेलवे स्टेशनों का उद्घाटन

May 22, 2025
ताज़ा समाचार

अमृत भारत स्टेशन योजना : उद्घाटन कार्यक्रम से पहले रेलवे डीआरएम ने बिजनौर रेलवे स्टेशन का लिया जायजा

May 22, 2025
Next Post

भारत ने चिप प्लांट बनाने में विश्व के लिए नया बेंचमार्क सेट किया : अश्विनी वैष्णव

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

POPULAR NEWS

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

February 12, 2023
बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

February 12, 2023
चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

February 12, 2023

बंगाल के जलपाईगुड़ी में बाढ़ जैसे हालात, शहर में घुसने लगा नदी का पानी

August 26, 2023
राधिका खेड़ा ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

राधिका खेड़ा ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

May 5, 2024

EDITOR'S PICK

यशस्वी जायसवाल की तूफानी पारी, भारत ने जिम्बाब्वे को 10 विकेट से हराकर सीरीज में बनाई अजेय बढ़त

July 13, 2024

मस्क के बॉट्स और ट्रोल्स पर नकेल कसते ही एक्स यूजर्स के फॉलोअर्स में आई गिरावट

April 5, 2024
चीन पर चर्चा से इनकार, कांग्रेस ने वाजपेयी और नेहरू का दिया हवाला

चीन पर चर्चा से इनकार, कांग्रेस ने वाजपेयी और नेहरू का दिया हवाला

December 25, 2022

मनु भाकर होंगी पेरिस ओलंपिक के समापन समारोह में भारत की ध्वजवाहक

August 5, 2024
ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

082129
Total views : 5878209
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Notifications