रांची, 11 अक्टूबर (आईएएनएस)। जेल की 17 फीट ऊंची दीवार लांघने के बाद बीहड़ जंगल में घंटों लगातार पैदल चलते हुए उनके पैरों में छाले पड़ गए थे। जोरदार भूख लगी थी। ऊपर से कड़ाके की सर्दी थी। तब वे छह लोग जंगल में एक जगह आग जलाकर सुस्ताने बैठे थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि फौज की दो कंपनियां उनकी तलाश में जुटी हैं। ऑल इंडिया रेडियो पर सरकार की ओर से सूचना प्रसारित हो रही थी कि उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए सूचना देने वाले को दस हजार रुपए का इनाम दिया जाएगा। यह कहानी जिन क्रांतिकारियों की है, उसके सबसे बड़े नायक का नाम है- भारत रत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण।
देश आज उनकी 122वीं जयंती मना रहा है। संपूर्ण क्रांति के प्रणेता और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेता जेपी यानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण के क्रांतिकारी जीवन का सबसे रोमांचक सिरा झारखंड के हजारीबाग स्थित ऐतिहासिक जेल से जुड़ता है। इस जेल को अब लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारा के रूप में जाता है। वह 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का दौर था। उसी दौरान जयप्रकाश नारायण और उनके पांच क्रांतिकारी साथी झारखंड के हजारीबाग स्थित ऐतिहासिक जेल की ऊंची दीवार लांघकर भाग निकले थे।
जेपी को हजारीबाग सेंट्रल जेल में कई अन्य प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ बंदी बनाकर रखा गया था। उन्होंने अपने साथियों जोगेंद्र शुक्ल, सूरज नारायण सिंह, शालिग्राम सिंह, गुलाब चंद गुप्ता और रामानंद मिश्रा के साथ मिलकर जेल से भागने की योजना बनाई। लेकिन, जेल के भीतर सभी विद्रोहियों पर सख्त पहरा लगा था। ऐसे में जेपी और उनके साथियों ने इसके लिए 1942 की दीपावली के त्योहार का दिन चुना। जेल के कई बंदियों को इस योजना का साझीदार बनाया गया। उन्होंने जेल में दीपावली मनाने के लिए सैकड़ों छोटी-छोटी बत्तियां जलाईं। पूरे जेल में उत्सव जैसा माहौल था। उस दिन हिंदू वार्डनों को दीपावली मनाने के लिए ड्यूटी से छुट्टी दे दी गई थी। बंदियों ने बाकी सिपाहियों को नाच-गान में उलझा रखा था।
इधर, जेपी सहित उनके पांच साथी जेल की उत्तरी दीवार के पास पहुंच गए। दीवार के पास एक खाने की मेज रखी गई थी और जोगेंदर शुक्ला उस पर घुटनों के बल बैठे थे। गुलाब चंद गुप्ता उनकी पीठ पर खड़े हुए। उनके कंधों पर सूरज नारायण सिंह चढ़े, जिनकी कमर में कई धोतियों को मिलाकर बनाई गई रस्सी बंधी हुई थी। सूरज नारायण सिंह दीवार के ऊपरी हिस्से पर पहुंच गए। इसके बाद जेपी सहित बाकी लोग एक-एक कर धोतियों वाली रस्सी के जरिए ऊपर चढ़े और उसी के सहारे जेल की दीवार लांघकर दूसरी तरफ उतर गए।
जेपी और उनके साथियों के जेल से भागने की घटना की जानकारी जेल प्रशासन और ब्रिटिश हुकूमत को पूरे नौ घंटे बाद हुई थी। उस समय तक वे बीहड़ जंगली रास्ते से होते हुए काफी दूर निकल चुके थे। दीवार से दूसरी तरफ कूदने के दौरान जेपी का पांव चोटिल हो गया था और लगातार खून निकल रहा था। उनके साथी उन्हें कंधों पर उठाकर मीलों चले। पहले उन्होंने पहाड़ी की तराई में जंगल से घिरे एक गांव में शरण ली। उसके बाद जंगल के रास्ते पैदल चलते हुए गया शहर और वहां से बनारस पहुंचे। इसके बाद उन्होंने भूमिगत रहते हुए समाजवादी साथियों के साथ मिलकर नेपाल पहुंचकर आजाद दस्ते का गठन किया और आंदोलन को गति दी।
–आईएएनएस
एसएनसी/एबीएम