सहारनपुर 6 जून (आईएएनएस)। कश्मीर फाइल्स के बाद अब अजमेर 92 पर सवाल उठना शुरू हो गया है। मुस्लिम धर्मगुरु इस फिल्म पर सवाल उठा रहे हैं और आपराधिक घटनाओं को धर्म से जोड़कर समाज को बांटने वाली फिल्म कहकर इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं। जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने केंद्र सरकार से अपील की है कि समाज को बांटने वाली इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाया जाए।
जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अजमेरी हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। लोगों के दिलों पर राज करने वाले सच्चे सुल्तान थे। हजार सालों से देश की पहचान है। उनका व्यक्तित्व शांति दूत के रूप में जाना जाता है। उनके व्यक्तित्व का अपमान करने वाले स्वयं अपमानित हुए हैं।
मदनी कहा, अभिव्यक्ति को आजादी का मूल अधिकार जरूर मिला है, और लोकतंत्र की मूल शक्ति भी। लेकिन इसकी आड़ में प्रोपेगैंडा चलाया जा रहा है। लेकिन देश को तोड़ने वाली धारणाओं को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। देश के लिए हानिकारक है और यह देश की एकता-अखंडता के लिए गंभीर खतरा और हमारी प्राचीन संस्कृति के खिलाफ है।
उन्होंने कहा, वर्तमान समय में जिस तरह से विभिन्न धर्मो के अनुयायियों को निशाना बनाने के लिए फिल्मों, सोशल मीडिया आदि का सहारा लिया जा रहा है, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिल्कुल अलग है और एक स्थिर राज्य के संकल्प को कमजोर करने वाला है।
मदनी ने कहा, समाज को विभाजित करने के लिए नए तरीके खोजे जा रहे हैं। आपराधिक घटनाओं को धर्म से जोड़ने को फिल्मों और सोशल मीडिया का सहारा लिया जा रहा है। जो हमारी और आनी वाली विरासत के लिए हानिकारक है।
उन्होंने कहा, अजमेर की घटना को जिस रूप में पेश किया जा रहा है, वह पूरे समाज के लिए दुखद और निराशाजनक है। जिसके लिए धर्म और सामूहिक संघर्ष की जरूरत है। उन्होंने केंद्र सरकार से समाज को बांटने की कोशिश करने वाली फिल्म को प्रतिबंधित करने की मांग की है।
–आईएएनएस
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