नई दिल्ली, 26 अगस्त (आईएएनएस)। आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने यह समझने की कोशिश की है कि जानवर कैसे चरने के बाद घर वापस आ जाते हैं, भले ही रास्ते में उन्हें अप्रत्याशित मोड़ों का सामना करना पड़े। इस शोध में छोटे, प्रोग्राम योग्य रोबोटों का उपयोग करते हुए शोधकर्ताओं ने जानवरों के घर लौटने के व्यवहार की जटिलताओं का पता लगाया है। आईआईटी के मुताबिक इस खोज से ऑटोमेटिक वाहनों के नेविगेशन, खोज और बचाव अभियानों में क्रांति आ सकती है।
आईआईटी के मुताबिक कई जानवरों के लिए प्रवास या चारागाह जैसी गतिविधियों के बाद घर लौटने की क्षमता महत्वपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए, कबूतर अपनी असाधारण नेविगेशन कौशल के कारण लंबी दूरी तक संदेश पहुंचाने के लिए प्रसिद्ध हैं। इसी तरह, समुद्री कछुए, साल्मन फिश और मोनार्क तितलियां अपने जन्म स्थान पर लौटने के लिए लंबी यात्राएं करती हैं। प्रकृति में आम तौर पर देखा जाने वाला यह ‘होमिंग’ लंबे समय से वैज्ञानिकों को आकर्षित करता रहा है।
आईआईटी ने पाया कि विभिन्न प्रजातियां घर लौट के लिए विभिन्न रणनीतियों का उपयोग करती हैं। कुछ यात्रा की गई दूरी और दिशा के आधार पर अपनी वापसी की गणना करते हैं, जबकि अन्य गंध, स्थलचिह्न, तारों की स्थिति या पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र जैसे पर्यावरणीय संकेतों पर निर्भर करते हैं। इन विविध विधियों के बावजूद, ‘होमिंग’ आमतौर पर एक अत्यंत कुशल प्रक्रिया होती है। हालांकि, जानवरों के नेविगेशन पर “शोर” के प्रभाव का अध्ययन अब भी जारी है।
शोध दल ने जानवरों के व्यवहार की नकल करने के लिए डिज़ाइन किए गए छोटे रोबोटों का उपयोग करके इन पैटर्नों की जांच की। लगभग 7.5 सेमी व्यास के ये रोबोट वस्तुओं और प्रकाश का पता लगाने के लिए सेंसर से लैस हैं, जिससे वे सबसे चमकीले प्रकाश स्रोत द्वारा चिह्नित “घर” का पता लगा सकते हैं। रोबोट स्वतंत्र रूप से नियंत्रित पहियों का उपयोग करके नेविगेट करते हैं और प्रकाश की तीव्रता के आधार पर अपने पथ को कुछ जानवरों के समान समायोजित करते हैं।
शोधकर्ता ने पाया कि थोड़ा सा रैंडमनेस होने से घर लौटने की अवधि पर कोई असर नहीं पड़ता है। कंप्यूटर सिमुलेशन ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कभी-कभार ‘रीसेट’ करने से रोबोट सीधे घर की ओर पुन: उन्मुख होते हैं व अपने रास्ते को ठीक करने की क्षमता भी बढ़ाते हैं।
आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ फिजिकल साइंसेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. हर्ष सोनी ने इस शोध पर कहा, “ये निष्कर्ष स्वचालित वाहनों के लिए बेहतर नेविगेशन सिस्टम के विकास और खोज एवं बचाव मिशनों में सुधार के लिए उपयोगी हो सकते हैं। इसके अलावा यह अध्ययन कोशिकीय गतिशीलता में मूल्यवान दृष्टिकोण प्रदान करता है, जहां समान प्रक्रियाएं हो सकती हैं।”
अध्ययन के निष्कर्षों को पीआरएक्स लाइफ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। अनुसंधान के सैद्धांतिक और संख्यात्मक पहलुओं का संचालन आईआईटी मंडी के डॉ. हर्ष सोनी के साथ द इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमैटिकल साइंसेज, चेन्नई के डॉ. अर्नब पाल और अरूप विश्वास ने किया है। इसके साथ ही प्रायोगिक कार्य का नेतृत्व आईआईटी बॉम्बे के डॉ. नितिन कुमार और सोमनाथ परमानिच ने किया है।
–आईएएनएस
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