रांची, 6 अगस्त (आईएएनएस)। देश के नक्शे पर 28वें राज्य के तौर पर झारखंड 15 नवंबर, 2000 को अस्तित्व में आया। यह तारीख तय करने के पीछे खास वजह थी। 15 नवंबर ही वह तारीख है, जब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था। झारखंड में लोग उन्हें “धरती आबा” यानी धरती के पिता और भगवान बिरसा मुंडा कहते हैं। “भगवान” या “धरती आबा” किसी की दी हुई उपाधि नहीं है, बल्कि सच तो यह है कि यहां उन्हें धार्मिक आस्था-विश्वास के साथ इसी रूप में पूजा भी जाता है।
केंद्र की तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने बिरसा मुंडा के प्रति इसी आस्था को सम्मान देते हुए उनकी जयंती को इस राज्य के जन्म की तारीख के तौर पर चुना।
अब बिरसा मुंडा झारखंड के सबसे बड़े, सर्वमान्य और अभिन्न प्रतीक पुरुष हैं। केंद्र की सरकार ने तो वर्ष 2022 में बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में अधिसूचित कर दिया है और इस दिन देश भर में सरकारी-गैरसरकारी आयोजनों का सिलसिला पिछले साल से ही शुरू हो चुका है। झारखंड सरकार राजकीय तौर पर हर साल जब 15 नवंबर को राज्य स्थापना दिवस मनाती है तो इसकी शुरुआत भगवान बिरसा मुंडा की समाधि पर राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री द्वारा पुष्पांजलि और पूजा-अर्चना के साथ ही होती है। यह अब राजकीय रूप से स्थापित परंपरा है। राष्ट्रपति, पीएम या कोई भी विशिष्ट अतिथि जब भी झारखंड आते हैं तो उनके संबोधन की शुरुआत भगवान बिरसा मुंडा को नमन के साथ ही होती है। अतिथियों का अभिनंदन भी इस वाक्य के साथ होता है- भगवान बिरसा मुंडा की धरती पर आपका स्वागत है!
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में बिरसा मुंडा 9 जून 1900 को शहीद हुए थे, लेकिन देश-दुनिया के सामने उनका नायकत्व तब चर्चा में आया, जब झारखंड में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर पोस्टेड रहे आईएएस डॉ कुमार सुरेश सिंह ने आदिवासी इलाकों में घूम-घूमकर कई वर्षों तक शोध और आदिवासी संस्कृति के लंबे अध्ययन के बाद 1966 में एक किताब लिखा “द डस्ट- स्टॉर्म ऐंड द हैंगिंग मिस्ट”।
इस किताब में बिरसा मुंडा के संघर्षों, उनके जीवन के बारे में विस्तार से लिखा गया था। बाद में इस किताब को 2003 में हिंदी में वाणी प्रकाशन ने “बिरसा मुंडा और उनका आंदोलन” नाम से छापा, जिसमें छोटानागपुर इलाके में 1901 तक अंग्रेजों के खिलाफ मुंडा के संघर्ष का वर्णन है। डॉ कुमार सुरेश सिंह 1984 में एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के महानिदेशक बने और इस दौरान भी उनके शोध-अध्ययन से बिरसा मुंडा का नाम भारतीय इतिहास के फलक पर आया।
कुमार सुरेश सिंह की किताब के बाद राज्य सत्ता ने भी उनके अतुलनीय योगदान को स्वीकार लिया और अविभाजित बिहार में उनकी प्रतिमाएं स्थापित होने लगीं और चौक-चौराहों का नामकरण उनके नाम पर होने लगा। रांची में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एचईसी (हेवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन) के प्रवेशद्वार से पहले रांची में एक चौक का नामकरण बिरसा चौक किया गया और यहां उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी। पहले यह प्रतिमा बेड़यों से जकड़ी हुई थी, पर बाद में उसकी बेड़यां हटायी गयीं। इसके बाद रांची एयरपोर्ट का नाम भी भगवान बिरसा मुंडा एयरपोर्ट कर दिया गया। यही नहीं रांची की पुरानी जेल का नाम भी भगवान बिरसा मुंडा जेल कर दिया गया और यहां उनकी एक भव्य और बड़ी प्रतिमा स्थापित की गयी। इसी जेल में भगवान बिरसा मुंडा ने अपनी अंतिम सांसें ली थीं।
झारखंड सरकार भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर करीब एक दर्जन योजनाएं चला रही हैं। इन योजनाओं में बिरसा हरित ग्राम योजना, बिरसा मुंडा तकनीकी छात्रवृति योजना, बिरसा मुंडा बागवानी योजना, भगवान बिरसा मुंडा स्वरोजगार योजना, समेकित बिरसा ग्राम सह कृषक पाठशाला, बिरसा सिंचाई कूप सह संवर्द्धन योजना और बिरसा आवास योजना शामिल है।
बिरसा मुंडा छात्रवृति योजना की शुरूआत झारखंड सरकार ने साल 2001 में की थी। इसका मकसद है कि तकनीकी शिक्षा ( इंजीनियरिंग और मेडिकल) की पढ़ाई कर रहे आदिवासी बच्चों को आर्थिक रूप से मदद पहुंचाई जाए। हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली मौजूदा राज्य सरकार ने वर्ष 2020 में बिरसा हरित ग्राम योजना की शुरुआत की थी। इसका मकसद अपने इलाके में किसानों की आय बढ़ाना है।
समेकित बिरसा ग्राम सह कृषक पाठशाला की शुरुआत साल 2021 में की गई। इसका उद्देश्य राज्य के किसानों की आय को बढ़ाने के लिए ट्रेनिंग देना है। इसी तरह मनरेगा योजना के तहत संचालित की जा रही बिरसा मुंडा बागवानी योजना के तहत वैसे लोगों का चयन किया जाता है जिनकी आजीविका खेती पर आश्रित है। झारखंड में किसानों की सुविधा के लिए बिरसा सिंचाई कूप निर्माण योजना चलाई जा रही है। इसका उद्देश्य एक लाख किसानों की व्यक्तिगत जमीन पर कुओं का निर्माण करना है। प्रधानमंत्री आवास योजना की तर्ज पर झारखंड सरकार ने आदिम जनजातियों के लिए बिरसा आवास योजना की शुरुआत वर्ष 2020 में की है।
रांची में स्थित झारखंड सरकार के जनजातीय शोध संस्थान के निदेशक और जाने-माने लेखक रणेंद्र कहते हैं, “बिरसा मुंडा को सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान (क्रांति) के लिए ही याद नहीं किया जाता, बल्कि सामाजिक-धार्मिक तौर पर भी वह आदिवासी जनजीवन में मसीहा के रूप में जाने जाते रहे हैं। झारखंड में किसी भी इतिहास का लेखन बिरसा मुंडा को अलग करके नहीं किया जा सकता। वह ऐसे महापुरुष हैं, जो यहां के जनजीवन में स्थापित हैं। राजकीय तौर पर उन्हें झारखंड का प्रतीक पुरुष माने जाने का आधार भी वस्तुतः यही है।”
–आईएएनएस
एसएनसी/एसकेपी