वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
–आईएएनएस
एफजेड/एबीएम
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
–आईएएनएस
एफजेड/एबीएम
वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
–आईएएनएस
एफजेड/एबीएम
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 8 नवंबर (आईएएनएस)। यह संघर्ष की एक ऐसी कहानी है जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। लाल बिहारी राजस्व रिकॉर्ड में 19 साल तक मृत रहे थे। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद रिकॉर्ड में उन्हें जीवित दिखाया गया।
अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
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अब उन्हें अपने जीवन के लिए खतरे का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्हें कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मर चुके हैं।
लाल बिहारी ने अपनी जान को खतरा बताते हुए प्रतिबंधित एके-47 राइफल का लाइसेंस मांगा है। लाल बिहारी ने कहा है कि मैं मुख्य सचिव से अनुरोध करता हूं कि मुझे एके-47 राइफल का लाइसेंस प्राप्त करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि मुझे ऐसे कई लोगों के लिए संघर्ष करने की वजह से जान का खतरा है जो जीवित हैं लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में मृत हैं।
उन्होंने प्रतिबंधित बंदूक के लाइसेंस के लिए यूपी के मुख्य सचिव को लिखा है। भारत में कोई भी व्यक्ति लाइसेंसशुदा एके-47 नहीं रख सकता, क्योंकि यह केवल विशेष बलों के लिए है। इस पर उन्होंने कहा, “मैं जानता हूं कि यह अत्याधुनिक बंदूक आम जनता के लिए प्रतिबंधित है, लेकिन इसे ‘मृतक’ (मृत व्यक्ति) को दिया जा सकता है।”
लाल बिहारी 1975 से 1994 के बीच राजस्व रिकॉर्ड में आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ रहे। वह खुद को जिंदा साबित करने के लिए 19 साल तक ब्यूरोक्रेसी से लड़ते रहे। इस बीच, उन्होंने अपने नाम के साथ ‘मृतक’ (मृत) जोड़ लिया और सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से उनकी संपत्ति हड़पने के लिए रिकॉर्ड पर मृत घोषित किए गए लोगों की दुर्दशा को उजागर करने के लिए मृतक संघ की स्थापना की।
जब उन्होंने बैंक से ऋण के लिए आवेदन किया था, तब उन्हें पता चला कि राजस्व रिकॉर्ड में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया है। उनके चाचा ने उन्हें मृत दर्ज करने के लिए एक अधिकारी को रिश्वत दी थी और उनकी पैतृक भूमि का मालिकाना हक अपने नाम पर स्थानांतरित करवा लिया था।
इन वर्षों में, बिहारी ने अपने संघर्ष के दौरान अभिलेखों में हेराफेरी को उजागर करने और अपनी दुर्दशा की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई अतरंगी तरीके आजमाए।
बिहारी ने अपना अंतिम संस्कार खुद आयोजित किया और यहां तक कि अपनी पत्नी के लिए विधवा पेंशन के लिए भी आवेदन कर दिया। वह यह साबित करने के लिए चुनाव लड़े कि वह जीवित हैं। साल 1994 में लंबे कानूनी संघर्ष के बाद आखिरकार बिहारी अपनी ‘मृत’ स्थिति को रद्द कराने में कामयाब रहे।
उनके संघर्ष पर एक बायोपिक, ‘कागज़’, 2021 में सतीश कौशिक द्वारा बनाई गई थी, जिसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने उनका किरदार निभाया था। भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियों पर आधारित इस फिल्म में मोनाल गज्जर, मीता वशिष्ठ, अमर उपाध्याय और सतीश कौशिक भी थे।
उन्होंने अपने संघर्ष के लिए मुआवजे की मांग की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उनके द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने आधिकारिक तौर पर ‘मृत’ होने पर खोए वर्षों के लिए सरकार से 25 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की थी।
पीठ ने अदालत का समय बर्बाद करने के लिए उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।