रांची, 12 अगस्त (आईएएनएस)। “इंडिया” में शामिल पार्टियां “हम साथ-साथ हैं” का राग अलाप रही हैं। लेकिन, झारखंड जैसे राज्य में भी आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान इस “एकजुटता” पर अडिग रह पाना कतई आसान नहीं होगा।
झारखंड में “इंडिया” के दो सबसे महत्वपूर्ण घटक दल झामुमो और कांग्रेस हैं।
राज्य की मौजूदा सरकार की अगुवाई झामुमो कर रहा है, जबकि कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी साझीदार है।
ऊपर से दोनों दलों के रिश्ते कमोबेश सामान्य दिखते हैं, लेकिन अंदरूनी तौर पर खींचतान कई मौकों पर साफ दिख जाती है।
9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर झारखंड सरकार की ओर से रांची के बिरसा मुंडा स्मृति पार्क में दो दिवसीय भव्य और विशाल आयोजन हुआ।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस आयोजन के केंद्र में रहे, जबकि सरकार में शामिल कांग्रेस के तमाम मंत्रियों की इस कार्यक्रम से दूरी रही।
दरअसल, 9 अगस्त को कांग्रेस ने सरकार के आयोजन से इतर रांची में बनहौरा नामक जगह पर आदिवासी समागम कार्यक्रम किया।
इसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडेय, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, सरकार में शामिल कांग्रेस के मंत्री बन्ना गुप्ता, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर, कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की सहित कई नेता शामिल रहे।
सरकार से अलग कांग्रेस के इस आयोजन को दोनों दलों के बीच किसी मतभेद का नतीजा भले न माना जाए, लेकिन इसके सियासी मायने-मतलब तो हैं ही।
इसके पहले भी सरकार के कई फैसलों को लेकर झामुमो और कांग्रेस के बीच असहमति के हालात पैदा होते रहे हैं।
राज्य में “इंडिया” के सामने बड़ी चुनौती लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे को लेकर पेश आने वाली है। राज्य के मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन में तीन पार्टियां झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल शामिल हैं।
वर्ष 2019 में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इन तीनों ही पार्टियों ने आपस में सीटों का बंटवारा किया था।
अब नवगठित “इंडिया” अगर झारखंड में एक साथ चुनावी मैदान में जाने का संकल्प लेता है तो गठबंधन की छतरी के नीचे आने वाली पार्टियों की संख्या तीन से बढ़कर पांच से छह हो जाएगी और तब सीटों की हिस्सेदारी-दावेदारी का सवाल बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
राज्य के मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और वाम पार्टियों की कोई हिस्सेदारी नहीं है।
राज्य में फिलहाल जदयू का कोई विधायक नहीं है, जबकि वामपंथी दलों में से सीपीआई-एमएल का मात्र एक विधायक है।
नए गठबंधन इंडिया के भीतर जदयू और वाम पार्टियां भी लोकसभा और विधानसभा सीटों पर दावेदारी पेश करेंगी।
राज्य में लोकसभा की 14 सीटें हैं, जिनके बंटवारे के लिए इंडिया के घटक दलों के बीच सर्वसम्मत फार्मूला बना पाना बेहद टेढ़ी खीर होगा।
2019 के चुनाव में यहां चार दलों कांग्रेस, जेएमएम, जेवीएम और राजद का गठबंधन बना तो था, लेकिन सीटों के बंटवारे पर भारी जिच हुई थी।
गठबंधन के भीतर कांग्रेस को सात, झामुमो को चार, बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा को दो और राष्ट्रीय जनता दल को एक सीट मिली थी।
13 सीटों पर एकजुटता कायम रही, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल मात्र एक सीट मिलने से संतुष्ट नहीं था। उसने दो सीटों पलामू और चतरा में अपने उम्मीदवार उतार दिए थे।
इस बार “इंडिया” गठबंधन में झामुमो, कांग्रेस और राजद के अलावा जदयू और वाम पार्टियां भी लोकसभा सीटों पर दावेदारी करेंगी।
इन पार्टियों की अपनी-अपनी बैठकों में सीटों की दावेदारी-हिस्सेदारी को लेकर चर्चा भी शुरू हो गई है।
कांग्रेस इस बार नौ लोकसभा सीटों पर दावेदारी कर रही है, जबकि पिछली बार वह सात सीटों पर चुनाव लड़ी थी। पार्टी का कहना है कि 2019 में उसने अंदरूनी समझौते के तहत दो सीटें उस वक्त बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (लोकतांत्रिक) के लिए छोड़ी थी।
अब झारखंड विकास मोर्चा विघटित हो चुका है और बाबूलाल मरांडी भाजपा में हैं।
उधर झारखंड मुक्ति मोर्चा पांच से छह सीटों पर दावेदारी करने की तैयारी में है, जबकि पिछली बार उसने चार सीटों पर चुनाव लड़ा था।
राजद भी कम से कम दो सीटों पर फिर से दावा करने के मूड में है, जबकि गठबंधन में पिछली बार उसे सिर्फ एक सीट देने पर सहमति बनी थी।
वामपंथी पार्टियां अपने लिए कम से कम एक सीट चाहती हैं। उनका दावा हजारीबाग सीट पर सबसे ज्यादा है, जहां से वर्ष 2004 में सीपीआई के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता सांसद रह चुके हैं।
भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव डी. राजा ने इस बार हजारीबाग से चुनाव लड़ने की इच्छा जता दी है।
इधर जदयू नेताओं और प्रदेश कमेटी की हाल के दिनों में बढ़ी सक्रियता बता रही है कि वह झारखंड में गठबंधन के भीतर अपने लिए लोकसभा की सीट चाहेगी।
वह हजारीबाग, कोडरमा और गिरिडीह सीट पर दावेदारी के मूड में है। इसके लिए वह राज्य में अपने पुराने जनाधार और जातीय वोट बैंक का हवाला देगी।
हालांकि, यह तय माना जा रहा है कि जदयू की दावेदारी का वजन बहुत ज्यादा नहीं होगा।
सीटों के बंटवारे में सबसे ज्यादा जिच कांग्रेस और झामुमो के बीच ही होगी। चाईबासा और हजारीबाग – ये दो लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन्हें लेकर इन दोनों पार्टियों के बीच सबसे ज्यादा खींचतान होगी।
चाईबासा सीट फिलहाल कांग्रेस के कब्जे में है। वहां से गीता कोड़ा सांसद हैं। इसके बावजूद झामुमो इस सीट पर अभी से दावा कर रहा है।
पार्टी की जिला कमेटी ने इस आशय का प्रस्ताव पारित कर सेंट्रल कमिटी को भेजा है।
इसके पीछे पार्टी की दलील यह है कि जिले की सभी विधानसभा सीटों में एक को छोड़कर बाकी सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का विधायक है। यानी कांग्रेस की तुलना में यहां झामुमो का ज्यादा बड़ा जनाधार है।
कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने झामुमो की इस मांग पर विरोध दर्ज कराया है। हजारीबाग सीट पर पिछली बार कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारा था, लेकिन उसे यहां शिकस्त खानी पड़ी थी। इस बार झामुमो यहां भी दावेदारी पेश कर रहा है।
वर्ष 2024 में लोकसभा के साथ ही झारखंड में विधानसभा के भी चुनाव होने हैं। ऐसे में यहां लोकसभा सीटों के लिए कोई भी फार्मूला तय करते वक्त विधानसभा की 81 सीटों के बंटवारे पर भी अनिवार्य तौर पर चर्चा होगी और तब आपसी समझौते के तार उलझ सकते हैं।
–आईएएनएस
एसएनसी/एबीएम
रांची, 12 अगस्त (आईएएनएस)। “इंडिया” में शामिल पार्टियां “हम साथ-साथ हैं” का राग अलाप रही हैं। लेकिन, झारखंड जैसे राज्य में भी आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान इस “एकजुटता” पर अडिग रह पाना कतई आसान नहीं होगा।
झारखंड में “इंडिया” के दो सबसे महत्वपूर्ण घटक दल झामुमो और कांग्रेस हैं।
राज्य की मौजूदा सरकार की अगुवाई झामुमो कर रहा है, जबकि कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी साझीदार है।
ऊपर से दोनों दलों के रिश्ते कमोबेश सामान्य दिखते हैं, लेकिन अंदरूनी तौर पर खींचतान कई मौकों पर साफ दिख जाती है।
9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर झारखंड सरकार की ओर से रांची के बिरसा मुंडा स्मृति पार्क में दो दिवसीय भव्य और विशाल आयोजन हुआ।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस आयोजन के केंद्र में रहे, जबकि सरकार में शामिल कांग्रेस के तमाम मंत्रियों की इस कार्यक्रम से दूरी रही।
दरअसल, 9 अगस्त को कांग्रेस ने सरकार के आयोजन से इतर रांची में बनहौरा नामक जगह पर आदिवासी समागम कार्यक्रम किया।
इसमें कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडेय, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय, सरकार में शामिल कांग्रेस के मंत्री बन्ना गुप्ता, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर, कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की सहित कई नेता शामिल रहे।
सरकार से अलग कांग्रेस के इस आयोजन को दोनों दलों के बीच किसी मतभेद का नतीजा भले न माना जाए, लेकिन इसके सियासी मायने-मतलब तो हैं ही।
इसके पहले भी सरकार के कई फैसलों को लेकर झामुमो और कांग्रेस के बीच असहमति के हालात पैदा होते रहे हैं।
राज्य में “इंडिया” के सामने बड़ी चुनौती लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे को लेकर पेश आने वाली है। राज्य के मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन में तीन पार्टियां झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल शामिल हैं।
वर्ष 2019 में हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इन तीनों ही पार्टियों ने आपस में सीटों का बंटवारा किया था।
अब नवगठित “इंडिया” अगर झारखंड में एक साथ चुनावी मैदान में जाने का संकल्प लेता है तो गठबंधन की छतरी के नीचे आने वाली पार्टियों की संख्या तीन से बढ़कर पांच से छह हो जाएगी और तब सीटों की हिस्सेदारी-दावेदारी का सवाल बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
राज्य के मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और वाम पार्टियों की कोई हिस्सेदारी नहीं है।
राज्य में फिलहाल जदयू का कोई विधायक नहीं है, जबकि वामपंथी दलों में से सीपीआई-एमएल का मात्र एक विधायक है।
नए गठबंधन इंडिया के भीतर जदयू और वाम पार्टियां भी लोकसभा और विधानसभा सीटों पर दावेदारी पेश करेंगी।
राज्य में लोकसभा की 14 सीटें हैं, जिनके बंटवारे के लिए इंडिया के घटक दलों के बीच सर्वसम्मत फार्मूला बना पाना बेहद टेढ़ी खीर होगा।
2019 के चुनाव में यहां चार दलों कांग्रेस, जेएमएम, जेवीएम और राजद का गठबंधन बना तो था, लेकिन सीटों के बंटवारे पर भारी जिच हुई थी।
गठबंधन के भीतर कांग्रेस को सात, झामुमो को चार, बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा को दो और राष्ट्रीय जनता दल को एक सीट मिली थी।
13 सीटों पर एकजुटता कायम रही, लेकिन राष्ट्रीय जनता दल मात्र एक सीट मिलने से संतुष्ट नहीं था। उसने दो सीटों पलामू और चतरा में अपने उम्मीदवार उतार दिए थे।
इस बार “इंडिया” गठबंधन में झामुमो, कांग्रेस और राजद के अलावा जदयू और वाम पार्टियां भी लोकसभा सीटों पर दावेदारी करेंगी।
इन पार्टियों की अपनी-अपनी बैठकों में सीटों की दावेदारी-हिस्सेदारी को लेकर चर्चा भी शुरू हो गई है।
कांग्रेस इस बार नौ लोकसभा सीटों पर दावेदारी कर रही है, जबकि पिछली बार वह सात सीटों पर चुनाव लड़ी थी। पार्टी का कहना है कि 2019 में उसने अंदरूनी समझौते के तहत दो सीटें उस वक्त बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (लोकतांत्रिक) के लिए छोड़ी थी।
अब झारखंड विकास मोर्चा विघटित हो चुका है और बाबूलाल मरांडी भाजपा में हैं।
उधर झारखंड मुक्ति मोर्चा पांच से छह सीटों पर दावेदारी करने की तैयारी में है, जबकि पिछली बार उसने चार सीटों पर चुनाव लड़ा था।
राजद भी कम से कम दो सीटों पर फिर से दावा करने के मूड में है, जबकि गठबंधन में पिछली बार उसे सिर्फ एक सीट देने पर सहमति बनी थी।
वामपंथी पार्टियां अपने लिए कम से कम एक सीट चाहती हैं। उनका दावा हजारीबाग सीट पर सबसे ज्यादा है, जहां से वर्ष 2004 में सीपीआई के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता सांसद रह चुके हैं।
भाकपा के राष्ट्रीय महासचिव डी. राजा ने इस बार हजारीबाग से चुनाव लड़ने की इच्छा जता दी है।
इधर जदयू नेताओं और प्रदेश कमेटी की हाल के दिनों में बढ़ी सक्रियता बता रही है कि वह झारखंड में गठबंधन के भीतर अपने लिए लोकसभा की सीट चाहेगी।
वह हजारीबाग, कोडरमा और गिरिडीह सीट पर दावेदारी के मूड में है। इसके लिए वह राज्य में अपने पुराने जनाधार और जातीय वोट बैंक का हवाला देगी।
हालांकि, यह तय माना जा रहा है कि जदयू की दावेदारी का वजन बहुत ज्यादा नहीं होगा।
सीटों के बंटवारे में सबसे ज्यादा जिच कांग्रेस और झामुमो के बीच ही होगी। चाईबासा और हजारीबाग – ये दो लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जिन्हें लेकर इन दोनों पार्टियों के बीच सबसे ज्यादा खींचतान होगी।
चाईबासा सीट फिलहाल कांग्रेस के कब्जे में है। वहां से गीता कोड़ा सांसद हैं। इसके बावजूद झामुमो इस सीट पर अभी से दावा कर रहा है।
पार्टी की जिला कमेटी ने इस आशय का प्रस्ताव पारित कर सेंट्रल कमिटी को भेजा है।
इसके पीछे पार्टी की दलील यह है कि जिले की सभी विधानसभा सीटों में एक को छोड़कर बाकी सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का विधायक है। यानी कांग्रेस की तुलना में यहां झामुमो का ज्यादा बड़ा जनाधार है।
कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा ने झामुमो की इस मांग पर विरोध दर्ज कराया है। हजारीबाग सीट पर पिछली बार कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारा था, लेकिन उसे यहां शिकस्त खानी पड़ी थी। इस बार झामुमो यहां भी दावेदारी पेश कर रहा है।
वर्ष 2024 में लोकसभा के साथ ही झारखंड में विधानसभा के भी चुनाव होने हैं। ऐसे में यहां लोकसभा सीटों के लिए कोई भी फार्मूला तय करते वक्त विधानसभा की 81 सीटों के बंटवारे पर भी अनिवार्य तौर पर चर्चा होगी और तब आपसी समझौते के तार उलझ सकते हैं।
–आईएएनएस
एसएनसी/एबीएम