नई दिल्ली, 18 सितंबर (आईएएनएस)। टाइप-5 डायबिटीज को औपचारिक रूप से मान्यता देना इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे कुपोषण संबंधित इस डायबिटीज के डायग्नोसिस में मदद मिलेगी और आगे चलकर इसको प्रभावी तरीके से मैनेज करने में आसानी होगी। गुरुवार को ‘द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल’ में प्रकाशित लेख के मुताबिक भारत में करीब 60 लाख तो वैश्विक तौर पर करीब 2.5 करोड़ लोग इससे जूझ रहे हैं।
टाइप-5 डायबिटीज एक प्रकार का मधुमेह है जिसकी चपेट में आमतौर पर निम्न और मध्यम आय वाले देशों के दुबले-पतले और कुपोषित किशोर या युवा आते हैं। अनुमान है कि दुनिया भर में, मुख्यतः एशिया और अफ्रीका में, करीब 20 से 25 मिलियन लोग इससे जूझ रहे हैं।
अमेरिका के न्यूयॉर्क स्थित अल्बर्ट आइंस्टीन कॉलेज ऑफ मेडिसिन के ग्लोबल डायबिटीज इंस्टीट्यूट में मेडिसिन की प्रोफेसर मेरेडिथ हॉकिन्स ने आईएएनएस को बताया, “यह कम संसाधन वाले क्षेत्रों और जहां कुपोषण अधिक है वहां के लिए आम है। इंट्रायूटरिन अंडरन्यूट्रिशन (गर्भाशय में पर्याप्त पोषण न मिलने से भ्रूण के ग्रोथ में रुकावट) और उसके बाद बड़े होने पर भी जरूरी पोषण न मिलने से टाइप 5 डायबिटीज का रिस्क हाई होता है।”
उन्होंने आगे कहा, “अनुमान है कि भारत में लगभग 6 मिलियन लोगों को टाइप 5 मधुमेह है (भारत में 101 मिलियन लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, जिनमें से लगभग 6 प्रतिशत मधुमेह से पीड़ित लोग अंडरवेट हैं)।”
पिछले 70 वर्षों में, भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, इथियोपिया, रवांडा, युगांडा, नाइजीरिया और इंडोनेशिया सहित कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में, जिसे अब ‘टाइप 5 डायबिटीज’ के रूप में जाना जाता है, इसकी सूचना मिली है। इसके कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1985 में इस स्थिति को कुपोषण-संबंधी मधुमेह के रूप में वर्गीकृत किया; हालांकि, 1999 में इस वर्गीकरण को हटा दिया गया।
परिणामस्वरूप, अनुसंधान और वित्तपोषण के अवसर सीमित हो गए, जिससे बाद में डाइग्नोस्टिक रिपोर्ट्स में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हुई।
हॉकिन्स ने कहा, “मानकीकृत नैदानिक मानदंडों (स्टैंडर्डाइज्ड डायग्नोस्टिक क्राइटीरिया) के माध्यम से इसकी पहचान कर विभिन्न हेल्थकेयर सेटिंग्स में इस बीमारी को लेकर स्पष्टता आएगी। इससे चिकित्सकों के बीच जागरूकता भी बढ़ेगी, नतीजतन बेहतर स्क्रीनिंग और डायग्नोसिस संभव होगा, खासकर उन व्यक्तियों में जिन्हें फिलहाल टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज के तौर पर क्लासिफाई किया जाता है जो गलत है। टाइप 5 मधुमेह की सटीक पहचान और प्रभावी प्रबंधन के लिए अच्छी तरह से बनाया गया और साक्ष्य-आधारित परिभाषा महत्वपूर्ण है।”
टाइप 5 मधुमेह के लक्षण क्या हैं?
हॉकिन्स ने बताया कि टाइप 5 डायबिटीज मुख्य रूप से 30 वर्ष से कम आयु के निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को प्रभावित करता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों पर असर पड़ता है जहां कुपोषण की दर ज्यादा है।
इन व्यक्तियों का बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) आमतौर पर 18.5 किग्रा/वर्ग मीटर से कम होता है, जबकि टाइप 2 मधुमेह वाले लोग अक्सर अधिक वजन वाले या मोटे होते हैं।
प्रसिद्ध शोधकर्ता ने आगे कहा, “चिकित्सकीय रूप से, टाइप 5 डायबिटीज के रोगियों में टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज दोनों के समान लक्षण दिखाई देते हैं, जिनमें अत्यधिक पेशाब (पॉलीयूरिया), अधिक भूख (पॉलीफेगिया) और अत्यधिक प्यास (पॉलीडिप्सिया) लगना शामिल हैं। हालांकि, टाइप 5 मधुमेह, टाइप 1 और 2 से भिन्न है, क्योंकि टाइप 5 मधुमेह के रोगियों में गंभीर कुपोषण और डिहाइड्रेशन (निर्जलीकरण) के लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जैसे कि धंसी हुई आंखें, बौनापन, दुर्बलता, पीलापन और थकान।”
इसके अलावा, टाइप 1 मधुमेह के विपरीत, टाइप 5 वाले व्यक्तियों में डायबिटिक कीटोएसिडोसिस (जिसमें एसीटोन की गंध आती है, इसके साथ तेज और गहरी सांस लेना, मतली और उल्टी होती है) का इतिहास नहीं होता है।
हॉकिन्स ने आईएएनएस को बताया, “जैव रासायनिक रूप से, ये रोगी इंसुलिन के प्रति संवेदनशील होते हैं, जबकि टाइप 2 मधुमेह वाले रोगी आमतौर पर इंसुलिन रेजिस्टेंट होते हैं। उनके सीरम इंसुलिन का स्तर टाइप 2 डायबिटीज से कम लेकिन टाइप 1 डायबिटीज से ज्यादा होता है। टाइप 1 डायबिटीज में आमतौर पर पाए जाने वाले आइलेट सेल एंटीबॉडी भी टाइप 5 डायबिटीज में अनुपस्थित होते हैं।”
गौरतलब है कि टाइप 5 डायबिटीज को कंट्रोल करना मुश्किल है इसलिए रोगियों में आमतौर पर गंभीर हाइपरग्लाइसीमिया होता है, जो विटामिन की कमी के अलावा, पेरिफेरल न्यूरोपैथी जैसी जटिलताओं का कारण बन सकता है।
हॉकिन्स ने कहा, “यदि टाइप 5 डायबिटीज से पीड़ित व्यक्तियों का टाइप 1 डायबिटीज के रूप में गलत निदान किया जाता है और उन्हें इंसुलिन की बड़ी खुराक दी जाती है, तो वे गंभीर हाइपोग्लाइसीमिया का शिकार हो सकते हैं। दूसरी ओर, यदि इन व्यक्तियों का टाइप 2 मधुमेह के रूप में गलत निदान किया जाता है और उन्हें जीएलपी-1 एगोनिस्ट जैसी दवाएं दी जाती हैं, तो अंडरवेट होने की वजह से उन्हें परेशानी हो सकती है। टाइप 5 मधुमेह की लॉन्ग-टर्म जटिलताओं को समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।”
अगर इसे औपचारिक मान्यता मिलती है तो टाइप 5 डायबिटीज के लिए एक नैदानिक मानदंड विकसित कर बड़ी आबादी पर लागू किया जा सकेगा। इतना ही नहीं, इसके प्रबंधन में भी मदद मिलेगी।
–आईएएनएस
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