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Home Today's Special News

डीयू : नया सत्र शुरू होने से पहले जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग

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January 15, 2023
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डीयू : नया सत्र शुरू होने से पहले जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग
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नई दिल्ली, 15 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने वाले छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग की जा रही है। बता दें कि इस वर्ष अंडरग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सिज में एडमिशन 31 दिसम्बर 2022 तक हुए हैं। शिक्षक संगठनों ने विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग की है कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच के लिए कॉलेज प्रिंसिपलों को सर्कुलर जारी किए जाएं और एक महीने के अंदर यह जांच हो।

जिन छात्रों ने गत वर्ष कॉलेजों में ऑन लाइन एडमिशन लिया था बहुत से कॉलेजों ने अभी तक उनके एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं कराई है। यही कारण है कि अब दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने आगामी शैक्षिक सत्र 2023-24 के आरंभ होने से पूर्व जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग दोहराई है।

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दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ हंसराज सुमन ने बताया कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग इसलिए की जा रही है कि देखने में आया है कि पिछले कई वर्षों से फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर छात्र एडमिशन पा जाते हैं। पहले कोरोना महामारी के चलते भी जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं हो पाई है। उन्होंने बताया है कि 2012 से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्पेशल सेल एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराता था लेकिन अब डीयू से केंद्रीयकृत प्रवेश प्रणाली समाप्त होने पर यह कॉलेजों की जिम्मेदारी है।

शिक्षकों का कहना है कि पिछले कई सालों से देखने में आया है कि कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए हैं। वह भी तब संभव हो पाया कि जब संदेह हुआ और जांच के बाद फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए। बाद में ऐसे छात्रों का एडमिशन रदद् कर दिया गया।

उनका कहना है कि वर्ष 2020-21 में छात्र फिजिकली कॉलेज आए ही नहीं जिससे उनके जाति प्रमाण पत्रों की जांच की जा सके, उसने ऑन लाइन एडमिशन लेते समय जाति प्रमाण पत्र की अपनी फोटो कॉपी कॉलेज व विश्वविद्यालय को भेजी। अब ऑनलाइन एडमिशन पाए छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग भी दोहराई गई है।

–आईएएनएस

जीसीबी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 15 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने वाले छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग की जा रही है। बता दें कि इस वर्ष अंडरग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सिज में एडमिशन 31 दिसम्बर 2022 तक हुए हैं। शिक्षक संगठनों ने विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग की है कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच के लिए कॉलेज प्रिंसिपलों को सर्कुलर जारी किए जाएं और एक महीने के अंदर यह जांच हो।

जिन छात्रों ने गत वर्ष कॉलेजों में ऑन लाइन एडमिशन लिया था बहुत से कॉलेजों ने अभी तक उनके एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं कराई है। यही कारण है कि अब दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने आगामी शैक्षिक सत्र 2023-24 के आरंभ होने से पूर्व जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग दोहराई है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ हंसराज सुमन ने बताया कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग इसलिए की जा रही है कि देखने में आया है कि पिछले कई वर्षों से फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर छात्र एडमिशन पा जाते हैं। पहले कोरोना महामारी के चलते भी जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं हो पाई है। उन्होंने बताया है कि 2012 से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्पेशल सेल एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराता था लेकिन अब डीयू से केंद्रीयकृत प्रवेश प्रणाली समाप्त होने पर यह कॉलेजों की जिम्मेदारी है।

शिक्षकों का कहना है कि पिछले कई सालों से देखने में आया है कि कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए हैं। वह भी तब संभव हो पाया कि जब संदेह हुआ और जांच के बाद फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए। बाद में ऐसे छात्रों का एडमिशन रदद् कर दिया गया।

उनका कहना है कि वर्ष 2020-21 में छात्र फिजिकली कॉलेज आए ही नहीं जिससे उनके जाति प्रमाण पत्रों की जांच की जा सके, उसने ऑन लाइन एडमिशन लेते समय जाति प्रमाण पत्र की अपनी फोटो कॉपी कॉलेज व विश्वविद्यालय को भेजी। अब ऑनलाइन एडमिशन पाए छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग भी दोहराई गई है।

–आईएएनएस

जीसीबी/एसकेपी

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नई दिल्ली, 15 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने वाले छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग की जा रही है। बता दें कि इस वर्ष अंडरग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सिज में एडमिशन 31 दिसम्बर 2022 तक हुए हैं। शिक्षक संगठनों ने विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग की है कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच के लिए कॉलेज प्रिंसिपलों को सर्कुलर जारी किए जाएं और एक महीने के अंदर यह जांच हो।

जिन छात्रों ने गत वर्ष कॉलेजों में ऑन लाइन एडमिशन लिया था बहुत से कॉलेजों ने अभी तक उनके एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं कराई है। यही कारण है कि अब दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने आगामी शैक्षिक सत्र 2023-24 के आरंभ होने से पूर्व जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग दोहराई है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ हंसराज सुमन ने बताया कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग इसलिए की जा रही है कि देखने में आया है कि पिछले कई वर्षों से फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर छात्र एडमिशन पा जाते हैं। पहले कोरोना महामारी के चलते भी जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं हो पाई है। उन्होंने बताया है कि 2012 से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्पेशल सेल एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराता था लेकिन अब डीयू से केंद्रीयकृत प्रवेश प्रणाली समाप्त होने पर यह कॉलेजों की जिम्मेदारी है।

शिक्षकों का कहना है कि पिछले कई सालों से देखने में आया है कि कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए हैं। वह भी तब संभव हो पाया कि जब संदेह हुआ और जांच के बाद फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए। बाद में ऐसे छात्रों का एडमिशन रदद् कर दिया गया।

उनका कहना है कि वर्ष 2020-21 में छात्र फिजिकली कॉलेज आए ही नहीं जिससे उनके जाति प्रमाण पत्रों की जांच की जा सके, उसने ऑन लाइन एडमिशन लेते समय जाति प्रमाण पत्र की अपनी फोटो कॉपी कॉलेज व विश्वविद्यालय को भेजी। अब ऑनलाइन एडमिशन पाए छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग भी दोहराई गई है।

–आईएएनएस

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जिन छात्रों ने गत वर्ष कॉलेजों में ऑन लाइन एडमिशन लिया था बहुत से कॉलेजों ने अभी तक उनके एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं कराई है। यही कारण है कि अब दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने आगामी शैक्षिक सत्र 2023-24 के आरंभ होने से पूर्व जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग दोहराई है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ हंसराज सुमन ने बताया कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग इसलिए की जा रही है कि देखने में आया है कि पिछले कई वर्षों से फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर छात्र एडमिशन पा जाते हैं। पहले कोरोना महामारी के चलते भी जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं हो पाई है। उन्होंने बताया है कि 2012 से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्पेशल सेल एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराता था लेकिन अब डीयू से केंद्रीयकृत प्रवेश प्रणाली समाप्त होने पर यह कॉलेजों की जिम्मेदारी है।

शिक्षकों का कहना है कि पिछले कई सालों से देखने में आया है कि कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए हैं। वह भी तब संभव हो पाया कि जब संदेह हुआ और जांच के बाद फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए। बाद में ऐसे छात्रों का एडमिशन रदद् कर दिया गया।

उनका कहना है कि वर्ष 2020-21 में छात्र फिजिकली कॉलेज आए ही नहीं जिससे उनके जाति प्रमाण पत्रों की जांच की जा सके, उसने ऑन लाइन एडमिशन लेते समय जाति प्रमाण पत्र की अपनी फोटो कॉपी कॉलेज व विश्वविद्यालय को भेजी। अब ऑनलाइन एडमिशन पाए छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग भी दोहराई गई है।

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जिन छात्रों ने गत वर्ष कॉलेजों में ऑन लाइन एडमिशन लिया था बहुत से कॉलेजों ने अभी तक उनके एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं कराई है। यही कारण है कि अब दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने आगामी शैक्षिक सत्र 2023-24 के आरंभ होने से पूर्व जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग दोहराई है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ हंसराज सुमन ने बताया कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग इसलिए की जा रही है कि देखने में आया है कि पिछले कई वर्षों से फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर छात्र एडमिशन पा जाते हैं। पहले कोरोना महामारी के चलते भी जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं हो पाई है। उन्होंने बताया है कि 2012 से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्पेशल सेल एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराता था लेकिन अब डीयू से केंद्रीयकृत प्रवेश प्रणाली समाप्त होने पर यह कॉलेजों की जिम्मेदारी है।

शिक्षकों का कहना है कि पिछले कई सालों से देखने में आया है कि कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए हैं। वह भी तब संभव हो पाया कि जब संदेह हुआ और जांच के बाद फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए। बाद में ऐसे छात्रों का एडमिशन रदद् कर दिया गया।

उनका कहना है कि वर्ष 2020-21 में छात्र फिजिकली कॉलेज आए ही नहीं जिससे उनके जाति प्रमाण पत्रों की जांच की जा सके, उसने ऑन लाइन एडमिशन लेते समय जाति प्रमाण पत्र की अपनी फोटो कॉपी कॉलेज व विश्वविद्यालय को भेजी। अब ऑनलाइन एडमिशन पाए छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग भी दोहराई गई है।

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जिन छात्रों ने गत वर्ष कॉलेजों में ऑन लाइन एडमिशन लिया था बहुत से कॉलेजों ने अभी तक उनके एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं कराई है। यही कारण है कि अब दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने आगामी शैक्षिक सत्र 2023-24 के आरंभ होने से पूर्व जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग दोहराई है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ हंसराज सुमन ने बताया कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग इसलिए की जा रही है कि देखने में आया है कि पिछले कई वर्षों से फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर छात्र एडमिशन पा जाते हैं। पहले कोरोना महामारी के चलते भी जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं हो पाई है। उन्होंने बताया है कि 2012 से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्पेशल सेल एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराता था लेकिन अब डीयू से केंद्रीयकृत प्रवेश प्रणाली समाप्त होने पर यह कॉलेजों की जिम्मेदारी है।

शिक्षकों का कहना है कि पिछले कई सालों से देखने में आया है कि कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए हैं। वह भी तब संभव हो पाया कि जब संदेह हुआ और जांच के बाद फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए। बाद में ऐसे छात्रों का एडमिशन रदद् कर दिया गया।

उनका कहना है कि वर्ष 2020-21 में छात्र फिजिकली कॉलेज आए ही नहीं जिससे उनके जाति प्रमाण पत्रों की जांच की जा सके, उसने ऑन लाइन एडमिशन लेते समय जाति प्रमाण पत्र की अपनी फोटो कॉपी कॉलेज व विश्वविद्यालय को भेजी। अब ऑनलाइन एडमिशन पाए छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग भी दोहराई गई है।

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जिन छात्रों ने गत वर्ष कॉलेजों में ऑन लाइन एडमिशन लिया था बहुत से कॉलेजों ने अभी तक उनके एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं कराई है। यही कारण है कि अब दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने आगामी शैक्षिक सत्र 2023-24 के आरंभ होने से पूर्व जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग दोहराई है।

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शिक्षकों का कहना है कि पिछले कई सालों से देखने में आया है कि कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए हैं। वह भी तब संभव हो पाया कि जब संदेह हुआ और जांच के बाद फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए। बाद में ऐसे छात्रों का एडमिशन रदद् कर दिया गया।

उनका कहना है कि वर्ष 2020-21 में छात्र फिजिकली कॉलेज आए ही नहीं जिससे उनके जाति प्रमाण पत्रों की जांच की जा सके, उसने ऑन लाइन एडमिशन लेते समय जाति प्रमाण पत्र की अपनी फोटो कॉपी कॉलेज व विश्वविद्यालय को भेजी। अब ऑनलाइन एडमिशन पाए छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग भी दोहराई गई है।

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जिन छात्रों ने गत वर्ष कॉलेजों में ऑन लाइन एडमिशन लिया था बहुत से कॉलेजों ने अभी तक उनके एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं कराई है। यही कारण है कि अब दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने आगामी शैक्षिक सत्र 2023-24 के आरंभ होने से पूर्व जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग दोहराई है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ हंसराज सुमन ने बताया कि जाति प्रमाण पत्रों की जांच की मांग इसलिए की जा रही है कि देखने में आया है कि पिछले कई वर्षों से फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर छात्र एडमिशन पा जाते हैं। पहले कोरोना महामारी के चलते भी जाति प्रमाण पत्रों की जांच नहीं हो पाई है। उन्होंने बताया है कि 2012 से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी का स्पेशल सेल एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराता था लेकिन अब डीयू से केंद्रीयकृत प्रवेश प्रणाली समाप्त होने पर यह कॉलेजों की जिम्मेदारी है।

शिक्षकों का कहना है कि पिछले कई सालों से देखने में आया है कि कॉलेजों में एससी, एसटी और ओबीसी कोटे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए हैं। वह भी तब संभव हो पाया कि जब संदेह हुआ और जांच के बाद फर्जी जाति प्रमाण पत्र पाए गए। बाद में ऐसे छात्रों का एडमिशन रदद् कर दिया गया।

उनका कहना है कि वर्ष 2020-21 में छात्र फिजिकली कॉलेज आए ही नहीं जिससे उनके जाति प्रमाण पत्रों की जांच की जा सके, उसने ऑन लाइन एडमिशन लेते समय जाति प्रमाण पत्र की अपनी फोटो कॉपी कॉलेज व विश्वविद्यालय को भेजी। अब ऑनलाइन एडमिशन पाए छात्रों के जाति प्रमाण पत्रों की जांच कराने की मांग भी दोहराई गई है।

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