चेन्नई, 2 फरवरी (आईएएनएस)। तमिलनाडु के 21 अधिवक्ताओं के एक समूह ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है। पत्र में वकीलों (अधिवक्ताओं) ने अधिवक्ता लक्ष्मण चंद्रा विक्टोरिया गौरी को मद्रास होईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने की सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश वापस करने का आग्रह किया है।
राष्ट्रपित को पत्र लिखने वालों में अधिवक्ता आर वैगई, वी सुरेश और एनजीआर प्रसाद जैसे वरिष्ठ भी शामिल हैं। वकीलों के समूह ने अपने पत्र में लिखा है कि विक्टोरिया गौरी ने भाजपा नेता के रूप में अल्पसंख्यकों के खिलाफ कई नफरत भरे भाषण दिए हैं। अधिवक्ताओं ने कहा कि ये नफरत भरे भाषण यूट्यूब के साथ-साथ आरएसएस से जुड़े प्रकाशनों में भी उपलब्ध हैं।
वकीलों ने विक्टोरिया गौरी के ट्विटर अकाउंट का एक स्क्रीनशॉट भी संलग्न किया जिसमें उन्होंने खुद को महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महासचिव होने का दावा किया था। पत्र में अधिवक्ताओं ने कहा कि स्क्रीनशॉट कुछ दिन पहले लिया गया था और उन्होंने हाल ही में अपना ट्विटर अकाउंट डिलीट कर दिया था।
आगे कहा गया कहा कि उन्होंने लव-जिहाद और धर्मांतरण के बारे में टिप्पणी की थी और रोमन कैथोलिकों पर नापाक गतिविधियों का आरोप लगाया था। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से यहां तक कहा था कि ईसाई गीतों के दौरान भरतनाट्यम नहीं बजाना चाहिए।
अधिवक्ताओं ने कहा कि विक्टोरिया गौरी अपने प्रतिगामी विचारों के कारण उच्च न्यायालय की न्यायाधीश बनने के योग्य नहीं थीं, जो मूलभूत संवैधानिक मूल्यों के लिए पूरी तरह से विरोधी थे। अधिवक्ताओं ने यह भी कहा कि उनके विचार उनकी गहरी धार्मिक कट्टरता को दर्शातें हैं।
अधिवक्ताओं ने यह भी पूछा कि अगर विक्टोरिया गौरी को न्यायाधीश बनाया जाता है तो क्या ईसाई या मुस्लिम समुदाय के किसी भी अल्पसंख्यक को उनकी पीठ में न्याय मिलेगा।
–आईएएनएस
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