नई दिल्ली, 14 सितंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा है कि तलाकशुदा बेटी को हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (एचएएमए) के तहत “आश्रित” नहीं माना जाता है, इसलिए मृत पिता की संपत्ति से भरण-पोषण के उसके दावे के अधिकार को रद्द किया जाता है।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और नीना कुमार बंसल की खंडपीठ एक पारिवारिक अदालत के उस आदेश के खिलाफ एक तलाकशुदा बेटी की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अपनी मां और भाई से भरण-पोषण का दावा करने के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।
पीठ ने कहा कि एचएएमए अविवाहित या विधवा बेटियों के अपने पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा करने के अधिकारों को मान्यता देता है, लेकिन यह इस प्रावधान को तलाकशुदा बेटियों तक नहीं बढ़ाता है।
अदालत ने कहा, “एक अविवाहित या विधवा बेटी को मृतक की संपत्ति में दावा करने के लिए मान्यता दी गई है, लेकिन एक “तलाकशुदा बेटी” रखरखाव के हकदार आश्रितों की श्रेणी में शामिल नहीं है।”
इस मामले में महिला को नवंबर 2014 तक अपने परिवार से गुजारा भत्ता मिलता था, लेकिन बाद में उसने दावा किया कि उसे यह मिलना जारी रहना चाहिए, क्योंकि उसके पति ने उसे छोड़ दिया है।
हालांकि, अदालत ने बताया कि एचएएमए के तहत तलाकशुदा बेटियों को आश्रित नहीं माना जाता है और इसलिए वे अपने परिवार के सदस्यों से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं हैं।
अदालत ने कहा, “चाहे कितनी भी कठिन परिस्थिति क्यों न हो, लेकिन वह एचएएमए अधिनियम के तहत परिभाषित “आश्रित” नहीं है और इस तरह अपनी मां और भाई से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है।”
अदालत ने पारिवारिक अदालत के इस फैसले को बरकरार रखा कि उसे अपने पिता की संपत्ति से अपना हिस्सा पहले ही मिल चुका है और वह दोबारा भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती।
–आईएएनएस
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