नई दिल्ली, 9 सितंबर (आईएएनएस)। जूडो एक ऐसा खेल जिसमें आत्म-नियंत्रण, रणनीति और सहनशीलता का मेल होता है। जब जूडोका मैट पर उतरते हैं, तो हर दांव में उनकी वर्षों की कड़ी मेहनत, समर्पण और अनुशासन झलकता है। यह खेल सिर्फ फिजिकल ताकत का नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता का भी प्रतीक है। जापान की धरती से जन्मा यह आधुनिक मार्शल आर्ट का रूप ओलंपिक खेलों का भी हिस्सा है। जहां पेरिस ओलंपिक में भारत की एकमात्र जूडोका थीं तूलिका मान, जिनका जन्म 9 सितंबर के दिन हुआ था।
तूलिका का बचपन मुश्किल भी था और दिलचस्प भी। साल 1998 में दिल्ली में जन्मी तूलिका का पालन-पोषण केवल उनकी मां ने किया था। मां अमृता मान दिल्ली पुलिस में एक सब-इंस्पेक्टर हैं। जब वह ड्यूटी पर होती तो बचपन में तूलिका को घर पर अकेला रहना होता। यह तूलिका के लिए काफी बोरियत भरा था। तूलिका ने अपना मन लगाने के लिए किसी गतिविधि में भाग लेने के लिए मां से बात की। यहीं से तूलिका ने जूडो क्लास में जाना शुरू कर दिया था। दिलचस्प बात यह है कि उनका आदर्श कोई जूडोका नहीं बल्कि फुटबॉल सुपरस्टार लियोनल मेसी थे।
मेसी की शांत रहने की क्षमता और मैच से पहले एक कोने में बैठकर खुद पर फोकस करने की आदत से तूलिका बहुत प्रभावित थीं। इन आदतों के अनुसरण ने उनको एक बेहतर जूडोका बनने में मदद की। चौथी क्लास से ही जूडो की प्रैक्टिस शुरू हो चुकी थी। भारत में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस खेल को आगे ले जाने वाले खिलाड़ी कम ही थे। तूलिका की मेहनत और लगन धीरे-धीरे उनको इस खेल में आगे बढ़ा रही थी। उन्होंने जूनियर स्तर पर कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया और मेडल भी जीतने शुरू किए।
नेशनल जूनियर लेवल पर सिल्वर मेडल जीतने वाली तूलिका के करियर की सही मायनों में शुरुआत हुई 2018 में, जब उन्होंने जयपुर में कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में जीत हासिल की थी। अगले ही साल उन्होंने फिर से कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप जीती और साउथ एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल भी अपने नाम किया। साल 2022 में बर्मिंघम में कॉमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीतना उनके करियर का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। इसने उनके करियर को जबरदस्त बूस्ट दिया लेकिन वह उस मैच के बाद चोटिल भी हो गई थीं।
यह चोट तूलिका के लिए आसान नहीं थी। जूडो प्लेयर होने के नाते उनको हमेशा डर रहता था कि चोट उनसे इस खेल को छीन न ले। एक ऐसा खेल जो तब तक तूलिका के लिए जिंदगी बन चुका था। तब उनके कोच ने समझाया था कि अगर बॉडी का निचला हिस्सा चोटिल हुआ है तो ऊपर के हिस्से की ट्रेनिंग करो और अगर ऊपर चोट लगे तो निचले हिस्से की ट्रेनिंग करते रहो। ताकि प्रैक्टिस कभी न छूटे। मेसी को फॉलो करना तूलिका के काम आया और उन्होंने धैर्य से रिकवरी टाइम को अच्छे रिहैबिलिटेशन में बिताया। उस साल इस खिलाड़ी ने चोट के बावजूद नेशनल गेम्स में गोल्ड जीता था। जूडो में शरीर को मजबूत करने के लिए फिजिकल ट्रेनिंग की जाती है तो मेंटल ट्रेनिंग भी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है। मानसिक तौर पर फिट रहने के लिए तूलिका योग करती हैं।
तूलिका मान पेरिस 2024 ओलंपिक में भारत की एकमात्र जूडो खिलाड़ी थीं। उन्होंने अपनी रैंकिंग के आधार पर पेरिस 2024 में जगह बनाई थी। ओलंपिक का सपना पूरा होने के बाद तूलिका की जिंदगी का सबसे यादगार पल आया, तब उनकी मां की आंखों में खुशी के आंसू थे। हालांकि जूडो में भारत का सफर अभी शुरुआती स्थिति में है। तूलिका मान को महिलाओं के +78 किग्रा वर्ग में शुरुआती दौर में ही क्यूबा की इडालिस ओर्टिज़ से हार का सामना करना पड़ा था। इससे पहले सुशीला देवी टोक्यो 2020 में जूडो में भारत की एकमात्र प्रतिभागी थीं, लेकिन वह भी महिलाओं के 48 किग्रा वर्ग में शुरुआती दौर से आगे नहीं बढ़ सकी थीं। अभी महज 25 साल की तूलिका से भारत को आगे काफी उम्मीद है।
–आईएएनएस
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