अगरतला, 18 मई (आईएएनएस)। त्रिपुरा की एक अदालत ने निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के तीन नेताओं को अदालत कक्ष के भीतर हंगामा करने और एक महिला न्यायाधीश का अपमान करने के कारण दो साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी।
यह घटना आठ साल पहले वाम दलों द्वारा बुलाए गए राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान हुई थी।
दक्षिण त्रिपुरा जिला और सत्र न्यायालय के न्यायाधीश आशुतोष पांडे ने बुधवार को ट्रायल कोर्ट के पहले के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें माकपा के तीन नेताओं – तापस दत्ता, त्रिलोकेश सिन्हा और बाबुल देबनाथ को दो साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई थी। निचली अदालत ने उन पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
2 सितंबर, 2015 को घटना के बाद पुलिस ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया और जांच शुरू की। पुलिस ने माकपा के तीनों नेताओं के खिलाफ आरोपपत्र भी दाखिल किया।
एक प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने वामपंथी नेताओं को कैद कर लिया, जिन्होंने बाद में निचली अदालत के फैसले के खिलाफ जिला अदालत में एक समीक्षा याचिका दायर की।
ट्रायल कोर्ट ने पिछले साल माकपा के तीन नेताओं को तत्कालीन दक्षिण त्रिपुरा जिला और सत्र न्यायालय के न्यायाधीश रूही दास पॉल का अपमान करने और आधिकारिक कर्तव्यों में बाधा डालने का दोषी ठहराया था।
तीनों आरोपियों के वकील ने अदालत में दलील दी कि माकपा के तीनों नेता इस मामले में दोषी नहीं हैं।
वकील ने गुरुवार को कहा कि माकपा नेता 60 दिनों के भीतर त्रिपुरा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे।
दत्ता माकपा राज्य समिति के सदस्य हैं, जबकि देबनाथ अखिल भारतीय किसान सभा के नेता हैं और सिन्हा माकपा बेलोनिया सब-डिविजनल कमेटी के सचिवालय सदस्य हैं।
–आईएएनएस
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