deshbandhu

deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
deshbandu_logo
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Menu
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर
Facebook Twitter Youtube
  • भोपाल
  • इंदौर
  • उज्जैन
  • ग्वालियर
  • जबलपुर
  • रीवा
  • चंबल
  • नर्मदापुरम
  • शहडोल
  • सागर
  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
ADVERTISEMENT
Home राष्ट्रीय

दिल्ली की कोर्ट ने 2020 दंगों के मामले में नूर मोहम्मद को बरी किया, पुलिस की खिंचाई की

by
June 10, 2023
in राष्ट्रीय
0
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp
ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

READ ALSO

पाकिस्तान का साथ देना तुर्की को भारी पड़ेगा, आतंकवाद के समर्थकों से व्यापार नहीं : नरेंद्र कश्यप

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत को मिला इजरायल का साथ, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लिए दी बधाई

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

ADVERTISEMENT

नई दिल्ली, 10 जून (आईएएनएस)। यहां की एक अदालत ने 2020 के उत्तरी-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में एक शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी की पहचान करने का झूठा दावा करने के कारण दिल्ली पुलिस की खिंचाई की है, जबकि आरोपी नूर मोहम्मद को दंगा और गैरकानूनी जमावड़ा संबंधित अपराधों से बरी कर दिया है।

अदालत ने एक पुलिस गवाह की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा, उसका बयान झूठा और देर से लिया गया लगता है।

कड़कड़डूमा कोर्ट के मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट शिरीष अग्रवाल ने कहा, तथ्य यह है कि पुलिस ने शिकायतकर्ता को एक गवाह के रूप में गलत तरीके से उद्धृत किया है, जो इंगित करता है कि अभियोजन पक्ष का यह कहना कि नूर मोहम्मद ने अपराध किया था, झूठ है।

न्यायाधीश ने एक हेड कांस्टेबल द्वारा नूर मोहम्मद की पहचान के बारे में भी संदेह जताया और कहा कि हेड कांस्टेबल का यह दावा भी सही नहीं लगता कि वह दंगे का चश्मदीद था।

अदालत ने अपराध को देखने के बावजूद कार्रवाई करने या सबूत पेश करने में हेड कांस्टेबल की विफलता पर रोशनी डाली।

न्यायाधीश ने कहा, जब दंगा और लूटपाट हो रहा था तो पुलिस अधिकारी को भीड़ को रोकने का प्रयास करना चाहिए था, जबकि वह मूक दर्शक के रूप में वहां खड़ा था। इस पर गवाह द्वारा कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है। पुलिस अधिकारी खड़े होकर सिर्फ देख रहा था और घटना हो जाने का प्रतीक्षा कर रहा था। उसने अपराध किए जाने का वीडियो बनाना भी उचित नहीं समझा।

अभियोजन पक्ष का दूसरा गवाह एक हेड कांस्टेबल ने स्वीकार किया कि उसने अपराध की रिपोर्ट नहीं की और अपराधियों की पहचान नहीं की। विरोधाभासों के कारण कोर्ट ने हेड कांस्टेबल की गवाही को अविश्वसनीय माना।

न्यायाधीश को यह विश्वास करना कठिन लगा कि एक पुलिस अधिकारी के रूप में हेड कांस्टेबल ने अपराध की रिपोर्ट नहीं की या अपराधियों को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

अदालत ने कहा : यह विश्वास करना मुश्किल है कि जिस पुलिस अधिकारी ने अपने पोस्टिंग क्षेत्र में अपराध होते हुए देखा, उसने इस संबंध में कोई शिकायत नहीं की। उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए कभी भी अपने पुलिस स्टेशन को मामले की सूचना नहीं दी। उन्होंने तत्काल पुलिस सहायता लेने के लिए 100 नंबर पर कॉल नहीं किया। उन्होंने किसी भी अपराधी को गिरफ्तार करने का कोई प्रयास नहीं किया।

न्यायाधीश ने कहा, .. उसने दावा किया है कि उसने भीड़ को रोकने की कोशिश की, लेकिन उसे नियंत्रित नहीं कर सका। अगर उसमें भीड़ को रोकने का साहस था, तो वह अपराधियों को गिरफ्तार करने का प्रयास भी कर सकता था, मगर उसने ऐसा नहीं किया। शिकायतकर्ता से यह पूछने की जहमत उठाएं कि क्या शिकायतकर्ता ने मामले की सूचना पुलिस को दी थी।

अदालत ने यह भी कहा कि हेड कांस्टेबल और शिकायतकर्ता का नूर मोहम्मद से पूछताछ के दौरान पुलिस स्टेशन में मौजूद होना संयोग की बात लगती है।

अदालत ने कहा, जाहिर है, शिकायतकर्ता पुलिस स्टेशन नहीं आया और प्राथमिकी दर्ज होने के बाद यह पहली बार था, जब शिकायतकर्ता अपने मामले की पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन आया था।

अदालत ने कहा कि नूर मोहम्मद को सिर्फ संदेह के आधार पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि सजा के लिए सबूत की जरूरत आवश्यकता होती है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

Related Posts

राष्ट्रीय

पाकिस्तान का साथ देना तुर्की को भारी पड़ेगा, आतंकवाद के समर्थकों से व्यापार नहीं : नरेंद्र कश्यप

May 15, 2025
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत को मिला इजरायल का साथ, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लिए दी बधाई
राष्ट्रीय

आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत को मिला इजरायल का साथ, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के लिए दी बधाई

May 15, 2025
राष्ट्रीय

मध्य प्रदेशः लाड़ली बहना योजना के दो साल पूरे, सवा करोड़ बहनों के खातों में राशि ट्रांसफर

May 15, 2025
राष्ट्रीय

मुख्यमंत्री नायब सैनी ने शहीद लांस नायक दिनेश शर्मा को दी श्रद्धांजलि, कहा- आतंकवाद को जड़ से खत्म किया जाएगा

May 15, 2025
राष्ट्रीय

भारतीय सेना की बहादुरी को सलाम, जवान ही असली नायक : वारिस पठान

May 15, 2025
राष्ट्रीय

‘कोई शुल्क नहीं! कोई सीमा नहीं!’, गौतम अदाणी ने शत-प्रतिशत रिजल्ट के लिए अदाणी विद्या मंदिर अहमदाबाद की तारीफ की

May 15, 2025
Next Post
दिल्ली : कमला मार्केट के गोदाम में आग लगी, कोई घायल नहीं

दिल्ली : कमला मार्केट के गोदाम में आग लगी, कोई घायल नहीं

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

POPULAR NEWS

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

बंदा प्रकाश तेलंगाना विधान परिषद के उप सभापति चुने गए

February 12, 2023
बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

बीएसएफ ने मेघालय में 40 मवेशियों को छुड़ाया, 3 तस्कर गिरफ्तार

February 12, 2023
चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

चीनी शताब्दी की दूर-दूर तक संभावना नहीं

February 12, 2023

बंगाल के जलपाईगुड़ी में बाढ़ जैसे हालात, शहर में घुसने लगा नदी का पानी

August 26, 2023
राधिका खेड़ा ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

राधिका खेड़ा ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, प्राथमिक सदस्यता से दिया इस्तीफा

May 5, 2024

EDITOR'S PICK

दक्षिण अफ्रीका, इजरायल से संबंध तोड़कर, महाद्वीप में अल्पमत में क्यों है?

दक्षिण अफ्रीका, इजरायल से संबंध तोड़कर, महाद्वीप में अल्पमत में क्यों है?

November 11, 2023
अदिति शेट्टी : ऐसी भूमिकाएं निभाना चाहती हूं जो मुझे कलाकार के तौर पर चुनौती दें

अदिति शेट्टी : ऐसी भूमिकाएं निभाना चाहती हूं जो मुझे कलाकार के तौर पर चुनौती दें

March 16, 2023

सैम पित्रोदा के बयान पर भड़की भाजपा, कहा- राहुल गांधी और उनकी पार्टी के नेताओं से यही है अपेक्षा

February 17, 2025
पश्चिम बंगाल में प्रेमिका के साथ वीडियो कॉल पर बात करने के दौरान युवक ने की आत्महत्या

पश्चिम बंगाल में प्रेमिका के साथ वीडियो कॉल पर बात करने के दौरान युवक ने की आत्महत्या

January 13, 2023
ADVERTISEMENT

Contact us

Address

Deshbandhu Complex, Naudra Bridge Jabalpur 482001

Mail

deshbandhump@gmail.com

Mobile

9425156056

Important links

  • राशि-भविष्य
  • वर्गीकृत विज्ञापन
  • लाइफ स्टाइल
  • मनोरंजन
  • ब्लॉग

Important links

  • देशबन्धु जनमत
  • पाठक प्रतिक्रियाएं
  • हमें जानें
  • विज्ञापन दरें
  • ई पेपर

Related Links

  • Mayaram Surjan
  • Swayamsiddha
  • Deshbandhu

Social Links

081401
Total views : 5874729
Powered By WPS Visitor Counter

Published by Abhas Surjan on behalf of Patrakar Prakashan Pvt.Ltd., Deshbandhu Complex, Naudra Bridge, Jabalpur – 482001 |T:+91 761 4006577 |M: +91 9425156056 Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions The contents of this website is for reading only. Any unauthorised attempt to temper / edit / change the contents of this website comes under cyber crime and is punishable.

Copyright @ 2022 Deshbandhu. All rights are reserved.

  • Disclaimer, Privacy Policy & Other Terms & Conditions
No Result
View All Result
  • राष्ट्रीय
  • अंतरराष्ट्रीय
  • लाइफ स्टाइल
  • अर्थजगत
  • मनोरंजन
  • खेल
  • अभिमत
  • धर्म
  • विचार
  • ई पेपर

Copyright @ 2022 Deshbandhu-MP All rights are reserved.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Create New Account!

Fill the forms below to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In