नई दिल्ली, 22 जनवरी (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित एक सौ से अधिक व्यक्तियों को बस चालक के रूप में नियुक्त करने पर सख्त रुख अपनाया है।
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह ने इस मामले को सार्वजनिक सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण बेहद गंभीर बताते हुए गहरी चिंता व्यक्त की।
डीटीसी द्वारा 2017 में भर्ती किए गए कलर ब्लाइंडनेस वाले ड्राइवर के संबंध में दायर एक याचिका के जवाब में अदालत ने विभाग द्वारा प्रदर्शित लापरवाही पर नाराजगी जताई।
अदालत ने डीटीसी के वकील से सवाल किया कि कलर ब्लाइंडनेस वाले व्यक्तियों को ड्राइवर के रूप में कैसे नियुक्त किया गया। अदालत ने कहा कि इस तरह की लापरवाही निराशाजनक है।
यह पता चला कि ये नियुक्तियाँ गुरु नानक अस्पताल द्वारा जारी किए गए ड्राइवर सहित व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत चिकित्सा प्रमाणपत्रों के आधार पर की गई थीं।
अदालत ने पाया कि डीटीसी ने कलर ब्लाइंडनेस के बावजूद ड्राइवर को एक मेडिकल प्रमाणपत्र पर भरोसा करते हुए नियुक्त किया था, जो डीटीसी के अपने चिकित्सा विभाग द्वारा जारी किए गए मेडिकल परीक्षण प्रमाणपत्र के विपरीत था।
यह स्थिति तीन साल तक जारी रही जब तक कि 2011 में एक दुर्घटना के कारण पीड़ित को 30 प्रतिशत विकलांगता होने के बाद ड्राइवर को बर्खास्त नहीं कर दिया गया।
अदालत ने डीटीसी के अध्यक्ष को गहन जांच के बाद व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें कलर ब्लाइंडनेस वाले व्यक्तियों या चिकित्सकीय रूप से अयोग्य लोगों को ड्राइवर के पद पर नियुक्त करने के लिए जिम्मेदार अधिकारी का विवरण दिया गया हो।
हलफनामे में यह बताने की उम्मीद है कि आवेदन के साथ संलग्न अतिरिक्त दस्तावेज पिछली ट्रिब्यूनल सुनवाई के दौरान क्यों प्रस्तुत नहीं किए गए थे।
अनुपालन की समय सीमा चार सप्ताह निर्धारित की गई है, और मामले की अगली सुनवाई 22 मार्च को निर्धारित है।
अदालत ने नियुक्ति प्रक्रिया में दिखाई गई लापरवाही पर निराशा व्यक्त करते हुए डीटीसी को सभी पहलुओं में अपने ड्राइवरों की फिटनेस सुनिश्चित करने में उचित सावधानी बरतने की आवश्यकता पर बल दिया।
–आईएएनएस
एकेजे/