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Home ताज़ा समाचार

दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र के फैसले के खिलाफ वक्फ बोर्ड की याचिका पर सुनवाई टाली

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March 8, 2023
in ताज़ा समाचार
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दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र के फैसले के खिलाफ वक्फ बोर्ड की याचिका पर सुनवाई टाली
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नई दिल्ली, 8 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड (डीडब्ल्यूबी) की 123 संपत्तियों से संबंधित सभी मामलों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया।

इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

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न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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नई दिल्ली, 8 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड (डीडब्ल्यूबी) की 123 संपत्तियों से संबंधित सभी मामलों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया।

इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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नई दिल्ली, 8 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड (डीडब्ल्यूबी) की 123 संपत्तियों से संबंधित सभी मामलों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया।

इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 8 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड (डीडब्ल्यूबी) की 123 संपत्तियों से संबंधित सभी मामलों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया।

इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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नई दिल्ली, 8 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड (डीडब्ल्यूबी) की 123 संपत्तियों से संबंधित सभी मामलों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया।

इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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नई दिल्ली, 8 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड (डीडब्ल्यूबी) की 123 संपत्तियों से संबंधित सभी मामलों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया।

इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 8 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड (डीडब्ल्यूबी) की 123 संपत्तियों से संबंधित सभी मामलों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को 15 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया।

इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

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बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

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8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

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उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

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8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

बोर्ड ने पिछले साल याचिका दायर की थी।

बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

वकील ने अगली सुनवाई तक मामले में यथास्थिति बनाए रखने की मांग की, लेकिन केंद्र ने उनकी प्रार्थना का विरोध किया।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ओहरी ने यह भी कहा कि अदालत दूसरे पक्ष को सुने बिना इस स्तर पर ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती और मामले को अगले सप्ताह सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

उन्होंने कहा, मुझे उन्हें भी सुनना है.. कुछ नहीं होने वाला है। अंतरिम राहत के लिए क्या मैं उन्हें नहीं सुन रहा हूं?

8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

शर्मा ने कहा था : समिति की रिपोर्ट को एक बार चुनौती मिलने के बाद हम इसे पूरा करेंगे। यह इस आवेदन द्वारा नहीं किया जा सकता। यह एक मूल रिट याचिका है।

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इससे पहले, हाईकोर्ट ने डीडब्ल्यूबी को केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली एक अलग याचिका दायर करने के लिए कहा था।

न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने 123 संपत्तियों को हटाने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ लंबित याचिका के लिए बोर्ड द्वारा दायर एक आवेदन में एक तत्काल आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।

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बोर्ड की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने तर्क दिया था कि संपत्ति वैधानिक प्राधिकरण के कब्जे में है और केंद्र के फैसले को पूरी तरह से अवैध करार दिया।

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8 फरवरी को वक्फ बोर्ड ने केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पत्र को चुनौती देते हुए एक आवेदन दायर किया था।

मेहरा ने पहले तर्क दिया था कि उपर्युक्त संपत्तियों से बोर्ड को दोषमुक्त करने के लिए केंद्र के पास शक्ति का कोई स्रोत नहीं है।

उन्होंने कहा था, अगर आपके पास ताकत नहीं है तो आप वैधानिक योजना के तहत कुछ नहीं कर सकते।

उन्होंने कहा था, 1911 से और उसके बाद से आज तक जब पत्र आया है, तो ये संपत्तियां वक्फ संपत्तियों से संबंधित हैं, जो वक्फ बोर्ड से संबंधित हैं, जिन्हें अधिनियम (दिल्ली वक्फ अधिनियम) के तहत बोर्ड द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित किया जाता है।

उन्होंने कहा था कि पूरी वैधानिक योजना के मुताबिक संपत्तियों को बोर्ड से मुक्त करने की केंद्र या राज्य सरकार की कोई अवधारणा नहीं है।

केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने प्रस्तुत किया था कि आवेदन में बोर्ड की प्रार्थनाएं लंबित याचिका के दायरे से पूरी तरह बाहर हैं।

उन्होंने संपत्तियों की स्थिति की जांच करने वाली दो सदस्यीय समिति के बोर्ड के आवेदन को खारिज करते हुए अदालत द्वारा पारित विभिन्न आदेशों और एक पुनरीक्षण याचिका का हवाला दिया था।

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