नई दिल्ली, 27 दिसंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने परोपकार की भावना से कार्य करने वाले और सड़क दुर्घटना पीड़ितों की सहायता करने वाले व्यक्तियों के लिए कानूनी सुरक्षा की गंभीर जरूरत पर गौर किया है।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की टिप्पणी उस मामले के जवाब में आई, जिसमें एक विधवा को दुर्घटना पीड़ितों की मदद करते समय अपने पति की मौत होने पर मुआवजा देने से इनकार कर दिया गया था।
मृतक ट्रक चालक था जो राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक दुर्घटना पीड़ित की मदद करने के लिए रुका था। दुखद बात यह है कि अपने ट्रक पर लौटते समय एक तेज रफ्तार वाहन ने उसे टक्कर मार दी और चोटों के कारण उसकी मौत हो गई।
मुआवजा आयुक्त ने शुरू में यह तर्क देते हुए मुआवजा देने से इनकार कर दिया कि ड्राइवर की हरकतें उसके कर्तव्य का हिस्सा नहीं थीं।
हालांकि, अदालत ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि इसने उस व्यापक परिदृश्य की अनदेखी की है जिसमें सार्वजनिक सड़क पर किसी घायल व्यक्ति की मदद करना प्रत्येक नागरिक का प्रमुख कर्तव्य है।
न्यायमूर्ति शर्मा ने पवित्र बाइबिल से ‘अच्छे सामरी’ की अवधारणा का आह्वान करते हुए कहा कि व्यक्तियों को कानूनी नतीजों के डर के बिना सहायता करने के लिए प्रोत्साहित करने को कानूनी सुरक्षा महत्वपूर्ण है।
अदालत ने अच्छे सामरी कानूनों पर अंतर्राष्ट्रीय विचारों का जिक्र करते हुए उन लोगों की रक्षा करने में उनकी भूमिका का उल्लेख किया, जो परोपकार की नीयत से दूसरों की मदद करते हैं।
अदालत ने कहा, ऐसे कानूनी संरक्षण के बिना ‘दयालुता’ और ‘सहानुभूति’ जैसे गुण उनकी मानवता से छीन लिए जाएंगे, जिससे व्यक्तियों के लिए परोपकारी ढंग से कार्य करना असंभव हो जाएगा।
न्यायमूर्ति शर्मा के आदेश ने अनुच्छेद 51ए से अपना दृष्टिकोण प्राप्त किया, जो एक कल्याणकारी समाज को बढ़ावा देने वाले बुनियादी मानदंडों का पालन करने के लिए नागरिकों की जिम्मेदारी पर जोर देता है।
इसके बाद अदालत ने मुआवजे से इनकार करने वाले आदेश को रद्द कर दिया और दो महीने के भीतर मुआवजे की राशि का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश दिया।
अदालत ने विधवा के लंबे संघर्ष को देखते हुए उसे 5 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का भी आदेश दिया।
–आईएएनएस
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