नई दिल्ली, 29 मई (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बलात्कार और हत्या के एक मामले में एक व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा को बिना किसी छूट के 20 साल की अवधि के सश्रम कारावास में बदल दिया है।
उच्च न्यायालय का फैसला दोषी राम तेज द्वारा मई 2018 में एक निचली अदालत द्वारा बलात्कार और हत्या के मामले में सुनाई गई अपनी सजा और उम्रकैद की सजा को चुनौती देने के बाद आया है।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता और पूनम ए. बंबा की खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में कम करने वाली परिस्थितियां हैं कि अपीलकर्ता की उम्र इस समय 38 साल है, वह 8 साल की कैद काट चुका है और उसके दो नाबालिग बच्चे और एक पत्नी की देखभाल करने के लिए उसके परिवार में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है।
भारत संघ बनाम वी. श्रीहरन मामले में शीर्ष अदालत के फैसले को आधार बनाते हुए, अदालत ने कहा: इसके साथ ही जिस शैतानी और अनैतिक तरीके से अपीलकर्ता पीड़िता को एकांत स्थान पर ले गया और न केवल उसे यौन प्रताड़ना दी, बल्कि उसके निजी अंगों में टूटी हुई लकड़ियां डालने के बाद गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी, यह बिना छूट के एक निश्चित अवधि के लिए कारावास की हकदार है।
अदालत ने कहा कि शमन करने वाली और कम करने वाली परिस्थितियों पर विचार करते हुए बिना छूट के 20 साल की अवधि के कारावास की सजा उद्देश्य की पूर्ति करेगी।
पीठ ने कहा, नतीजतन, ट्रायल कोर्ट द्वारा अपीलकर्ता को दी गई सजा को बिना किसी छूट के 20 साल की अवधि के कठोर कारावास में संशोधित किया गया है।
अदालत ने अपीलकर्ता को धारा 376ए आईपीसी और 302 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए 50,000 रुपये का जुमार्ना और धारा 404 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए 10,000 रुपये का जुमार्ना जमा करने को भी कहा।
अदालत ने कहा, अगर यह राशि जमा की गई तो मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों के पक्ष में मुआवजे के रूप में जारी की जाएगी।
अपीलकर्ता परिवार का एकमात्र कमाने वाला है जिसके 10 वर्ष और 11 वर्ष के दो पुत्र हैं। चूंकि उसके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी है, इसलिए दोनों बच्चे अपने नाना-नानी के साथ रह रहे हैं।
अपीलकर्ता की ओर से पेश वकील और राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त लोक अभियोजक पृथु गर्ग को सुनने के बाद अदालत ने मुकेश बनाम राज्य (दिल्ली एनसीटी) में शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लेख किया जिसमें अदालत ने कहा, समाज की उचित अपेक्षा यह है कि निवारक अपराध की गंभीरता के अनुरूप सजा दी जाए। जब अपराध क्रूर हो, समुदाय की सामूहिक अंतरात्मा को झकझोरता हो, तो किसी भी रूप में सहानुभूति गलत होगी और यह आपराधिक-न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को हिला देगा।
–आईएएनएस
एकेजे