नई दिल्ली, 15 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के एक अब मृत बस कंडक्टर की बहाली के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसे 1992 में 15 दिनों की अनधिकृत अनुपस्थिति के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
कोर्ट ने निष्कासन की सज़ा को आश्चर्यजनक रूप से असंगत माना और कहा कि दंड पर पुनर्विचार करना व्यर्थ होगा क्योंकि कंडक्टर की दुर्भाग्य से मृत्यु हो गई है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब एससी में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2003 के श्रम न्यायालय के फैसले के खिलाफ डीटीसी की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें कंडक्टर की बकाया वेतन के साथ बहाली का समर्थन किया गया था।
मृत कर्मचारी को डीटीसी की जांच के बाद 1992 में सेवा से बर्खास्तगी का सामना करना पड़ा। औद्योगिक विवाद कानून के तहत उनकी बर्खास्तगी के खिलाफ कार्यवाही के दौरान कंडक्टर का निधन हो गया।
अदालत ने कहा कि जांच में केवल एक गवाह शामिल था, उसने कंडक्टर के उस दावे पर विश्वास नहीं किया कि उसके भाई के माध्यम से चिकित्सा प्रमाण पत्र जमा करने के बावजूद बीमारी के कारण छुट्टी लेने के लिए मजबूर किया गया था।
अदालत ने 15 दिन की अनुपस्थिति के लिए निष्कासन की सज़ा को असंगत पाया, जिससे कामगार राहत का हकदार था। अदालत ने कहा कि मामले का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू श्रमिक की मृत्यु है, जिससे दंड पर कोई भी पुनर्विचार व्यर्थ हो जाता है।
हालांकि, अदालत ने स्वीकार किया कि डीटीसी ने बहाली को लागू करते हुए मृतक कंडक्टर की पत्नी और कानूनी उत्तराधिकारियों को सभी बकाया का भुगतान कर दिया था। तदनुसार, अपील खारिज की जाती है।
–आईएएनएस
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