नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
–आईएएनएस
एकेजे
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
–आईएएनएस
एकेजे
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
–आईएएनएस
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।
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नई दिल्ली, 16 नवंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को विनियमित करने के लिए एक नीति बनाने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया।
अदालत ने अगस्त में केंद्र और आप सरकार दोनों को बिना वैध लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा (अब सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत) और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने केंद्र को उचित कदम उठाने और ऑनलाइन दवाओं की अवैध बिक्री पर अपने अंतिम रुख के बारे में अदालत को सूचित करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया था।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि यदि तय समय के भीतर नीति नहीं बनाई गई तो विषय से जुड़े संबंधित संयुक्त सचिव को सुनवाई की अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।
इसके बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 4 मार्च को तय की।
अदालत ने कहा, “यदि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर नीति आठ सप्ताह के भीतर नहीं बनाई जाती है, तो इस विषय के लिए जिम्मेदार संयुक्त सचिव को अगली तारीख पर अदालत में उपस्थित रहना होगा।”
पिछली बार केंद्र के वकील ने कोर्ट को बताया था कि दवाओं की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर अभी भी चर्चा चल रही है।
अदालत ने केंद्र को आवश्यक कार्रवाई करने और बाद में मामले पर अपनी अंतिम स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए समय दिया था।
अदालत ने कहा था, “अंतरिम में, भारत संघ और राज्य सरकार को 12 दिसंबर 2018 के अंतरिम आदेश का उल्लंघन करने वाले, यानी वैध लाइसेंस के बिना दवाओं की ऑनलाइन बिक्री में शामिल व्यक्तियों के संबंध में कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाता है।“
इससे पहले, केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि ई-फार्मेसी को विनियमित करने के लिए नियम बनाने का प्रस्ताव विचाराधीन है और कुछ और समय की आवश्यकता है।
याचिका में औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमों में और संशोधन करने के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मसौदा नियमों को चुनौती दी गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी थी कि पिछले पांच-छह साल से नियम बनाए जा रहे हैं लेकिन अभी तक कुछ ठोस नहीं किया गया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 दिसंबर 2018 को याचिकाकर्ता जहीर अहमद की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए फार्मेसियों द्वारा बिना लाइसेंस के दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगा दी थी।