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Home ताज़ा समाचार

दीवाली के बाद लखनऊ में तीन लाख मूर्तियां फेंकी गईं

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November 30, 2023
in ताज़ा समाचार
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दीवाली के बाद लखनऊ में तीन लाख मूर्तियां फेंकी गईं
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लखनऊ, 30 नवंबर (आईएएनएस)। त्योहारों के बाद शहरी स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए लखनऊ नगर निगम के साथ काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन के अनुसार, दीवाली के बाद लखनऊ में लगभग 60,000 किलोग्राम वजनी देवताओं की लगभग तीन लाख मूर्तियों को फेंक दिया गया था।

संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

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उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

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लखनऊ, 30 नवंबर (आईएएनएस)। त्योहारों के बाद शहरी स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए लखनऊ नगर निगम के साथ काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन के अनुसार, दीवाली के बाद लखनऊ में लगभग 60,000 किलोग्राम वजनी देवताओं की लगभग तीन लाख मूर्तियों को फेंक दिया गया था।

संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

–आईएएनएस

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लखनऊ, 30 नवंबर (आईएएनएस)। त्योहारों के बाद शहरी स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए लखनऊ नगर निगम के साथ काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन के अनुसार, दीवाली के बाद लखनऊ में लगभग 60,000 किलोग्राम वजनी देवताओं की लगभग तीन लाख मूर्तियों को फेंक दिया गया था।

संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

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संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

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संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

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संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

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संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

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संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

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तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

लखनऊ, 30 नवंबर (आईएएनएस)। त्योहारों के बाद शहरी स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए लखनऊ नगर निगम के साथ काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन के अनुसार, दीवाली के बाद लखनऊ में लगभग 60,000 किलोग्राम वजनी देवताओं की लगभग तीन लाख मूर्तियों को फेंक दिया गया था।

संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

–आईएएनएस

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लखनऊ, 30 नवंबर (आईएएनएस)। त्योहारों के बाद शहरी स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए लखनऊ नगर निगम के साथ काम करने वाले एक गैर-लाभकारी संगठन के अनुसार, दीवाली के बाद लखनऊ में लगभग 60,000 किलोग्राम वजनी देवताओं की लगभग तीन लाख मूर्तियों को फेंक दिया गया था।

संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

–आईएएनएस

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संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

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संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

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संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

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संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

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संस्थापक राम कुमार तिवारी ने कहा, ”एनजीओ मंगलमन ने 151 जगहों से ज्यादातर गणेश तथा लक्ष्मी की मूर्तियां, और सड़कों के किनारे तथा जंक्शनों एवं फ्लाईओवरों के पास फेंकी गई मूर्तियां भी एकत्र की।”

उन्होंने कहा, “मूर्तियों के अलावा, एनजीओ ने सड़कों पर फेंकी गई मालाएं, तस्वीरें और अन्य पूजा सामग्री को भी साफ किया।”

एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

सिर्फ उनका कलेक्शन ही नहीं, एनजीओ यह भी सुनिश्चित करता है कि मूर्तियों को औपचारिक रूप से मिट्टी में दबाया जाए, जिसके लिए वह ‘अभिनंदन समारोह’ का आयोजन करता है। पिछले कुछ हफ्तों में ऐसे छह अभिनंदन समारोह आयोजित किए गए हैं। राम कुमार तिवारी ने कहा कि इस तरह का आखिरी समारोह तीन दिसंबर को होगा।

तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

उन्होंने आगे कहा कि उनके प्रोजेक्ट की सफलता लगभग 500 स्वयंसेवकों और दर्जनों संबद्ध संगठनों द्वारा सुनिश्चित की गई थी। तथ्य यह है कि फेंकी गई अधिकांश मूर्तियां या तो पक्की मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी थी। यह इस बात का पर्याप्त प्रमाण है कि लोग अभी भी पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्याप्त जागरूक नहीं हैं, ये दोनों सामग्रियां पानी में आसानी से नहीं घुलती हैं।

कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

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एलएमसी ड्राइवर शिवेंद्र श्रीवास्तव को मूर्तियां इकट्ठा करने का काम सौंपा गया था। उन्होंने कहा, “पिछले पांच दिनों में मैंने लगभग 30,000 मूर्तियां उठाईं। अकेले मंगलवार को मैंने 3,000 मूर्तियां इकट्ठी की। इसके अलावा वहां बुद्ध की मूर्तियां, सिख गुरुओं और साईं बाबा की पुरानी-फटी तस्वीरें भी थी।”

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तिवारी ने कहा, “इकट्ठी की गई मूर्तियों को एक साथ मिट्टी में दबाया जाता है। छह ऐसे स्थानों पर गड्ढे खोदे गए हैं जहां 151 केंद्रों से एकत्र की गई मूर्तियों को हर रविवार को एक साथ दबाया जाता है। ये स्थान कुकरैल पिकनिक स्पॉट, ऐशबाग रामलीला मैदान, ऐशाना में खजानाबाजार और लक्ष्मण झूला मैदान में हैं।”

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कच्ची मिट्टी से बनी मूर्तियां पानी में आसानी से घुल जाती हैं इसलिए इन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। समूह से जुड़े विज्ञान पेशेवरों का एक अलग समूह मूर्तियों को खाद में बदलने की तकनीक पर काम कर रहा है।

नगर निगम आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कहा, “पुरानी मूर्तियों और मूर्तियों को लेने के लिए आठ चिन्हित स्थानों पर वाहन भेजे गए थे। इसके लिए, एक जूनियर नगर निगम आयुक्त को नोडल अधिकारी बनाया गया था। जागरूकता फैलाने के लिए होर्डिंग्स और डिस्प्ले लगाए गए थे।”

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