नई दिल्ली, 8 जुलाई (आईएएनएस)। लाइफस्टाल, स्थानीय और मौसमी खाद्य पदार्थों के गायब होने, नियमित व्यायाम की कमी के अलावा, अन्य विशिष्ट कारणों से, हृदय संबंधी बीमारियों में बढ़ोतरी हो रही है।
विकसित देशों में हृदय रोग, मृत्यु दर और रोगों की बढ़ती संख्या के प्रमुख कारणों में से एक हैं, इसका प्रभाव न केवल पीड़ित परिवारों पर पड़ता है, बल्कि बड़े पैमाने पर वर्कफोर्स पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
हृदय रोग जीवन की गुणवत्ता को काफी कम करने के अलावा, बड़ी बीमारियों और यहां तक कि दिव्यांगता का कारण बन सकता है। एक स्ट्रोक बोलने में कठिनाई और इमोशनल डिसऑर्डर जैसी परेशानी ला सकता है।
डब्ल्यूएचओ के एक पार्टनर वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन की एक स्टडी में अनुमान लगाया गया है कि 2035 तक, दुनिया की आधी से अधिक आबादी ज्यादा वजन या मोटापे से ग्रस्त होगी और अगर पॉलिसी के जरिए कोई इंटरवेंशन नहीं होता है और मौजूदा रुझान जारी रहते हैं, तो हाई बीएमआई का आर्थिक प्रभाव सालाना 4.32 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।
2035 तक भारत में मोटापे की अनुमानित आर्थिक लागत प्रत्यक्ष स्वास्थ्य देखभाल लागत के संदर्भ में 8.43 बिलियन डॉलर बताई गई है। जबकि, अन्य लागतों में $109.38 बिलियन (समय से पहले मृत्यु दर), $176.32 मिलियन (प्रत्यक्ष गैर-चिकित्सा लागत के रूप में), $2.23 बिलियन (अनुपस्थिति) और कम उत्पादकता के लिए $9.10 बिलियन शामिल हैं।
बीमारी का आर्थिक बोझ लोगों के खराब स्वास्थ्य के चलते होने वाली मानवीय और आर्थिक लागत को संदर्भित करता है।
अमेरिका में, हृदय रोगों की लागत 2015 में 555 बिलियन डॉलर थी, जिसमें 318 बिलियन डॉलर की प्रत्यक्ष लागत और 237 बिलियन डॉलर की अप्रत्यक्ष लागत थी। यह आंकड़ा 2035 तक 1.1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।
हृदय रोग और आर्थिक बोझ से संबंधित 83 स्टडी का मूल्यांकन करने वाले रिसर्च में, हाइपरटेंशन की प्रति एपिसोड लागत 500-1500 अमरीकी डॉलर के बीच थी। कोरोनरी हृदय रोग और स्ट्रोक की लागत 5,000 डॉलर से अधिक निर्धारित की गई थी।
एक अन्य स्टडी में अनुमान लगाया गया कि यूरोपीय अर्थव्यवस्था में कोरोनरी हृदय रोगों की वार्षिक लागत 49 बिलियन यूरो थी, जो सभी यूरोपीय देशों के कुल स्वास्थ्य व्यय का लगभग 2.6 प्रतिशत थी।
2015 में, 45-64 वर्ष की आयु के 6,700 लोगों ने इस्केमिक हृदय रोगों के कारण वर्कफोर्स छोड़ दिया था। इस्केमिक हृदय रोग एक ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर के एक निश्चित हिस्से में रक्त का प्रवाह बंद या कम हो जाता है।
जिसके चलते, 263 मिलियन डॉलर की आय का नुकसान हुआ और कहा जाता है कि 2030 में ये लागत बढ़कर 426 मिलियन डॉलर हो जाएगी।
अधिक उम्र वाले लोगों में हृदय संबंधी रोग ज्यादा देखें गए है। हालांकि, यह कम उम्र में भी विकसित हो सकता है और समय से पहले मौत का कारण बन सकता है।
इस स्थिति में योगदान देने वाले पर्यावरणीय कारणों ने सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का अनुपात बढ़ा दिया है, जिसमें अशुद्ध हवा में सांस लेना शामिल है, चाहे वह निजी स्थान हो या सार्वजनिक।
जंगल की आग या पराली जलाने (क्षेत्र के आधार पर) से निकलने वाला धुआं, यहां तक कि धूम्रपान का भी सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।
जब कोई क्षेत्र प्रदूषण से घिर जाता है, तो स्कूलों और बाहरी गतिविधियों पर तुरंत रोक लगा दी जाती है, जहां भी संभव हो, लोग अपने घरों से काम करते हैं और यह लेबर फोर्स की गतिशीलता में बदलाव में महत्वपूर्ण योगदान देता है। ऐसे में हृदय संबंधी बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है।
अगर हृदय रोगों का उपचार न किया जाए तो क्या होगा? इससे गंभीर एनजाइना हो सकता है (हृदय की मांसपेशियों में पर्याप्त रक्त प्रवाह नहीं होने पर सीने में दर्द या बेचैनी महसूस होती है), हल्की गतिविधियों में भी सांस लेने में तकलीफ और हार्ट फेल भी हो सकता है, जिससे मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
हृदय रोग और स्ट्रोक के प्रमुख जोखिम कारक हाई ब्लड प्रेशर, हाई लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज, स्मोकिंग, मोटापा, गलत आहार और सुस्त शारीरिक निष्क्रियता हैं।
बढ़ते हृदय रोगों की चिंता को दूर करने के लिए पहला कदम उन कारणों को नियंत्रित करना होगा जो इसके कारण बनते हैं, ताकि इसके प्रभाव पर अंकुश लगाया जा सके और समस्या का समाधान किया जा सके।
–आईएएनएस
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