नई दिल्ली, 16 अगस्त (आईएएनएस)। देशभर के विश्वविद्यालयों व विभिन्न कॉलेजों में पांडुलिपि अध्ययन के लिए कोर्स शुरू किए जाएंगे। यह पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए यूजीसी ने एक पैनल का गठन किया है जिसमें कुल 11 सदस्य होंगे।
पांडुलिपि पर आधारित यह पाठ्यक्रम, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप होगा।
यूजीसी के मुताबिक पांडुलिपि आधारित यह पाठ्यक्रम छात्रों को विशेषज्ञता या ऐच्छिक विषय के रूप में उपलब्ध कराया जा सकता है। शब्दावली में, ‘पांडुलिपि’ का अर्थ हस्तलिखित दस्तावेजों के उपयोग के माध्यम से इतिहास और साहित्य का अध्ययन है।
वहीं ‘पुरालेख’ शास्त्रीय और मध्ययुगीन काल में प्राचीन लेखन प्रणालियों या शिलालेखों का अध्ययन है।
यूजीसी के मुताबिक मॉडल पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के पूर्व निदेशक प्रफुल्ल मिश्रा की अध्यक्षता में ग्यारह सदस्यीय पैनल का गठन किया गया है। इसमें आईआईटी-मुंबई के प्रोफेसर मल्हार कुलकर्णी, स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज के वसंत भट्ट और एनसीईआरटी में संस्कृत के प्रोफेसर जतींद्र मोहन मिश्रा शामिल हैं।
यूजीसी के अध्यक्ष एम. जगदेश कुमार के मुताबिक भारतीय पांडुलिपियों का संरक्षण देश की विविधता को बनाए रखता है और बढ़ाता भी है। यह विरासत की गहरी समझ में योगदान देता है, जो सदियों पुराने ज्ञान, विचारों, विश्वासों और अतीत की प्रथाओं को दर्शाता है।
उन्होंने बताया कि ये पांडुलिपियां भारत के इतिहास, बौद्धिक योगदान और परंपराओं में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। यूजीसी के अध्यक्ष ने कहा कि हमें सांस्कृतिक खजाने की रक्षा करने, अकादमिक अनुसंधान को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करने की क्षमता के लिए भारतीय पांडुलिपि विज्ञान का समर्थन करना चाहिए।
यूजीसी के अध्यक्ष के मुताबिक वर्तमान में, भारत के राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम) के पास 80 प्राचीन लिपियों में अनुमानित 10 मिलियन पांडुलिपियां हैं, जो ताड़ के पत्ते, कागज, कपड़े और छाल जैसी सामग्रियों पर लिखी गई हैं। इनमें से 75 प्रतिशत पांडुलिपियां संस्कृत में हैं, और 25 प्रतिशत क्षेत्रीय भाषाओं में हैं।
यूजीसी ने इस संबंध में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन को एक प्रस्ताव भेजा था। इस प्रस्ताव में कहा है कि पांडुलिपि विज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के मानकीकरण के लिए समिति का गठन किया गया है। पत्र में यूजीसी की ओर से कहा गया है कि समिति से दोनों विषयों के पाठ्यक्रमों के लिए एक मॉडल पाठ्यक्रम विकसित करने की उम्मीद है।
–आईएएनएस
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