नई दिल्ली , 11 फरवरी (आईएएनएस)। जमीयत उलमा-ए-हिंद के 34वें तीन दिवसीय आम अधिवेशन (10-12 फरवरी) में मुल्क और कौम के मौजूदा हालात पर व्यापक बहस-मुबाहिसा हुआ। अधिवेशन की मुख्य चिंता यह थी कि देश में इस्लामोफोबिया खड़ा किया जा रहा है और केंद्र सरकार खामोश है, जबकि उसे ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। मुसलमानों की धार्मिक शिक्षा, आधुनिक शिक्षा और रोजगार के अवसर सीमित किए जा रहे हैं।
वक्ताओं ने कहा कि देश में इस्लाम व मुसलमानों के खिलाफ नफरत का अभियान चलाया जा रहा है और समान नागरिक संहिता के जरिए देश की एकता व अखंडता पर चोट पहुंचाई जा रही है।
अधिवेशन के दूसरे दिन 11 फरवरी को वक्ताओं ने कहा कि किसी भी मुल्क के हालात बदलते रहे हैं और आज की स्थितियां भी बदलेंगी। ऐसे में इस्लाम सिखाता है कि सभी लोग मिलजुल कर, साथ रहें।
आम अधिवेशन में पारित 15 प्रस्तावों में कहा गया है कि मदरसों और इस्लाम पर एक बड़ा तबका लगातार हमला कर रहा है और उसकी धार्मिक, नैतिक और सामाजिक शिक्षाओं की आलोचना की जा रही है, जबकि मदरसे गरीब मुसलमानों को मुफ्त शिक्षा पाने का अवसर देते हैं। मदरसों से निकले छात्रों और उलेमाओं ने आजादी की जंग लड़ी थी और आज भी देश निर्माण में वह अहम भूमिका निभाते हैं, जबकि मौजूदा फासीवादी सरकार उन्हें झूठे मामलों में गिरफ्तार कर रही है।
प्रस्ताव में कहा गया है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद मदरसों में आधुनिक शिक्षा का पक्षधर है और वह इसके लिए निरंतर प्रयासरत है, लेकिन वह मदरसों की शिक्षा में सरकारी हस्तक्षेप के भी खिलाफ है।
देश में बढ़ते नफरती अभियान और इस्लामिक फोबिया की रोकथाम पर जारी मसौदा प्रस्ताव में कहा गया है कि सरकार इस पर तुरंत रोक लगाए और नफरत फैलाने वाले तत्वों एवं मीडिया पर अंकुश लगाए। अधिवेशन ने सभी दलों और देश प्रेमियों से अपील की है कि वह फासीवादी ताकतों से राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मुकाबला करें।
देश में लंबे समय से समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड) के क्रियान्वयन को लेकर चर्चा चल रही है। इस पर पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि नागरिक संहिता केवल मुसलमानों की समस्या नहीं है, बल्कि इससे सभी सामाजिक समूहों, संप्रदायों, जातियों और धर्मो के लोगों को इसका सामना करना पड़ेगा। संविधान निर्माताओं ने गारंटी दी थी कि मुसलमानों के धार्मिक मामलों मुस्लिम पर्सनल लॉ में छेड़छाड़ नहीं होगी, लेकिन वोट बैंक की राजनीति के लिए तीन तलाक, खुला और हिजाब मामलों में बदलाव किया गया और अदालत ने भी सकारात्मक रुख नहीं रखा।
कॉमन सिविल कोड देश की एकता अखंडता पर सीधा प्रभाव डालेगा। साथ ही जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने संपत्ति में महिलाओं को हिस्सेदारी देने और तलाक के मामले में शरीयत कानूनों को पूरी तरह से लागू न किए जाने पर आपत्ति करते हुए मुस्लिम समुदाय से अपील की कि यदि वह शरीयत नियमों का पालन करें, तो कोई भी सरकारी कानून उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
–आईएएनएस
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