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द्रविड़ पार्टियों का ‘हिंदी विरोध’ तमिल पहचान फिर से स्थापित करने का जरिया…

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August 5, 2023
in राष्ट्रीय
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द्रविड़ पार्टियों का ‘हिंदी विरोध’ तमिल पहचान फिर से स्थापित करने का जरिया…
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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

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यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

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राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

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राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

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चेन्नई, 5 अगस्त (आईएएनएस)। तमिलनाडु में 20वीं सदी की शुरुआत से ही समय-समय पर हिंदी विरोधी आंदोलन देखे गए हैं। अक्सर यह प्रदर्शन राज्य में छात्र और राजनीतिक आंदोलनों द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन में बदल गए हैं।

राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

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राज्य में इस तरह का पहला आंदोलन 1937 में तब किया गया था जब सी. राजगोपालचारी के नेतृत्व वाली राज्य की पहली कांग्रेस सरकार द्वारा तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी शिक्षण अनिवार्य कर दिया गया था। इस कदम का द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाने वाले ईवीएस रामासामी पेरियार या थंथई पेरियार ने विरोध किया था। उन दिनों की प्रमुख विपक्षी पार्टी जस्टिस पार्टी ने भी हिंदी शिक्षण थोपे जाने का विरोध शुरू कर दिया था।

यह आंदोलन तीन साल की अवधि तक जारी रहा और इसमें सम्मेलनों, उपवासों, सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन और धरने शामिल थे। अक्सर हिंसक हो जाने वाले इस आंदोलन में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी और महिलाओं एवं बच्चों सहित 1,198 लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

1939 में कांग्रेस सरकार के इस्तीफा देने के बाद फरवरी 1940 में मद्रास प्रेसीडेंसी के ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड एर्स्किन ने तमिलनाडु में हिंदी की अनिवार्यता को वापस ले लिया था। स्वतंत्रता के बाद, हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा बनाया गया और अंग्रेजी 15 वर्षों तक सहयोगी आधिकारिक भाषा के रूप में जारी रही।

हिंदी को 26 जनवरी 1965 को अस्तित्व में आना था। जब हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाने का दिन करीब आया, तो तमिलनाडु में आंदोलन शुरू हो गए। 25 जनवरी 1965 को मदुरै में बड़े पैमाने पर दंगा भड़क उठा। इस बीच, अगले दो महीनों तक पूरे तमिलनाडु में दंगे फैल गए और हिंसा, आगजनी, लूटपाट, पुलिस फायरिंग और लाठी चार्ज हुए।

अर्धसैनिक बलों को बुलाया गया और इसके बाद हुई गोलीबारी में 70 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे। आंदोलन तब समाप्त हुआ जब तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने यह आश्वासन दिया कि जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य चाहेंगे तब तक अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी।

दिलचस्प बात यह है कि 1965 के दंगों के कारण राज्य में बड़े राजनीतिक परिवर्तन हुए। 1967 के विधानसभा चुनाव में डीएमके सरकार सत्ता में आई और इसके बाद कांग्रेस कभी भी तमिलनाडु राज्य की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी।

1986 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की जिसके कारण देश भर में नवोदय विद्यालयों की स्थापना हुई। द्रमुक, जो उस समय विपक्ष में थी, ने कहा कि नवोदय विद्यालयों से तमिलनाडु में फिर से हिंदी थोपी जाएगी।

उस दौरान अभिनेता से नेता बने एमजी रामचंद्रन (एमजीआर) के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सत्ता में थी और द्रमुक विपक्ष में थी। 17 नवंबर 1986 को द्रमुक ने एक बड़े आंदोलन का आह्वान किया और एम करुणानिधि सहित 20,000 पार्टी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि, जो उस समय विपक्ष के नेता थे, को 10 सप्ताह की कठोर सजा सुनाई गई।

आत्मदाह से इक्कीस लोगों की मौत हो गई और द्रमुक सदस्यों को विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया, जिनमें वरिष्ठ नेता के. अनबज़ागन भी शामिल थे। राजीव गांधी ने तमिलनाडु के सांसदों को आश्वासन दिया कि तमिलनाडु में नवोदय विद्यालय स्थापित नहीं किये जायेंगे। तब से आज तक तमिलनाडु भारत का एकमात्र राज्य है जहां नवोदय विद्यालय नहीं है।

विरोध का अगला दौर 2014 में आया जब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आदेश दिया कि सभी मंत्रालयों, विभागों, निगमों या बैंकों के सभी सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों, जिन्होंने सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आधिकारिक खाते बनाए हैं, उन्हें हिंदी या हिंदी और अंग्रेजी दोनों का उपयोग करना चाहिए।

इसे तमिलनाडु के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा और तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने इस कदम को राजभाषा अधिनियम की भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि इससे तमिलनाडु के लोगों में परेशानी होगी जो अपनी भाषाई विरासत के प्रति बहुत भावुक और गौरवान्वित हैं।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से निर्देशों में उपयुक्त संशोधन करने को कहा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सोशल मीडिया पर संचार की भाषा अंग्रेजी हो। विरोध प्रदर्शनों के कारण अंग्रेजी भाषा का आधिकारिक उपयोग जारी रहा।

2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व वाले संसदीय पैनल द्वारा केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की घोषणा के खिलाफ डीएमके युवा विंग ने कड़े विरोध की घोषणा की। द्रमुक नेताओं ने कहा कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी राज्यों की भावनाओं के खिलाफ है और दावा किया कि सभी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी के मुकाबले हिंदी को प्राथमिकता देने की सिफारिश की गई थी।

नेताओं ने यह भी कहा कि इससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाएगी, जिसमें केवल हिंदी जानने वाले लोग ही ऐसी परीक्षाओं में भाग लेंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किए गए हिंदी विरोधी आंदोलन के पुराने दिनों को याद करने की चेतावनी भी दी और कहा कि सरकार अतीत के हिंदी विरोधी आंदोलनों से सबक लेगी।

स्टालिन ने कहा है कि डीएमके किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं है। लेकिन, हिंदी को समाज पर थोपने का कड़ा विरोध किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है और अगर भारत सरकार की ओर से हिंदी थोपने के लिए कोई कदम उठाया गया तो द्रमुक 2024 के लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को फिर से उठाने की कोशिश करेगी।

सामाजिक वैज्ञानिक और तिरुचि के राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर अरविंदन ने आईएएनएस को बताया कि तमिल पहचान अलग है, जिसे नीति निर्माताओं को पहले समझना होगा। हम हिंदी के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन इस भाषा को ज़बरदस्ती थोपने के ख़िलाफ़ हैं, जिसे हम कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

तमिलनाडु, हमारे राज्य के लोगों पर हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेगा और इसके लिए सभी द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं।

–आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

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