नई दिल्ली, 29 मार्च (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की प्रोफेसर अमिता सिंह द्वारा समाचार प्रकाशन द वायर के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक मानहानि की कार्यवाही में मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा जारी समन आदेश को रद्द कर दिया।
2016 में, सिंह ने द वायर, इसके संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और रिपोर्टर अजॉय आशीर्वाद महाप्रशस्त के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया था।
मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने यह कहते हुए इसे पारित कर दिया कि मजिस्ट्रेट के समक्ष समन आदेश के समर्थन में कोई मटेरियल नहीं है।
एकल-न्यायाधीश बेंच ने कहा, उपर्युक्त के अनुक्रम के रूप में, सीसी नंबर 32203/2016 वाली आपराधिक शिकायत में विद्वान मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा किए गए सम्मन आदेश दिनांक 07.01.2017 को कानून में कायम नहीं रखा जा सकता है और तदनुसार इसे रद्द कर दिया जाता है।
न्यायमूर्ति भंभानी ने यह भी कहा कि प्रकाशन ने न तो यह दावा किया कि सिंह किसी गलत काम में शामिल थे और न ही इसने प्रतिवादी (सिंह) के बारे में किसी अपमानजनक या उपहासपूर्ण शब्दों में बात की।
सिंह का मामला समाचार पोर्टल द्वारा प्रकाशित एक कहानी से पैदा हुआ, जिसमें कहा गया है कि जेएनयू के प्रोफेसरों के एक समूह ने विश्वविद्यालय को संगठित सेक्स रैकेट का अड्डा बताते हुए 200 पन्नों का डोजियर तैयार किया है।
द वायर के अनुसार, डोजियर का टाइटल जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय: अलगाववाद और आतंकवाद का अड्डा था और यह कहा गया कि सिंह, जो सेंटर फॉर लॉ एंड गवर्नेंस में प्रोफेसर हैं, रिपोर्ट तैयार करने वाले शिक्षकों के समूह का नेतृत्व कर रहे थे।
द वायर की कहानी में कहा गया है कि विचाराधीन रिपोर्ट विश्वविद्यालय के प्रशासन को सौंपी गई थी और इसने अपने कुछ शिक्षकों पर जेएनयू में एक पतनशील संस्कृति को प्रोत्साहित करने और भारत में अलगाववादी आंदोलनों को वैध बनाने का आरोप लगाया था।
द वायर का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन के साथ-साथ अधिवक्ता राहुल कृपलानी, री भल्ला और सुप्रजा वी ने किया और प्रतिवादी के लिए अधिवक्ता आलोक कुमार राय पेश हुए।
–आईएएनएस
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