गाजियाबाद, 8 जून (आईएएनएस)। गाजियाबाद में सामने आए धर्मांतरण के मामले के बाद कई अन्य पहलुओं पर भी जांच शुरू हो गई है। पहले युवक और युवतियों को धर्मांतरण के जाल में फंसाया जाता था और अब बच्चे इसका शिकार हो रहे हैं। बच्चों का कोमल मन आसानी से किसी भी चमकदार दुनिया में फंस जाता है और घर में मिली उपेक्षा और अकेलेपन की वजह से वह वर्चुअल दुनिया को ही अपनी असली दुनिया समझने लगते हैं और अपना एक अलग संसार बनाने लगते हैं।
इस मामले में आईएएनएस ने साइकैटरिस्ट डॉक्टर अनुनीत सबरवाल एमबीबीएस, एमडी से खास बातचीत की है और पता लगाने की कोशिश की है कि आखिर वह कौन सी वजह होती है जिसकी वजह से बालमन इस तरीके के प्रलोभन और चमकदार दुनिया में फंस जाता है।
डॉ. अनुनीत सबरवाल ने बताया की अक्सर यह देखने को मिलता है कि घर में अगर माहौल शुरूआत से अच्छा नहीं है और बच्चे को उपेक्षा मिल रही है और वह अकेलेपन का शिकार हो रहा है तो कहीं ना कहीं वह मोबाइल और टीवी को ज्यादा तवज्जो देने लगता है। उन्होंने बताया कि कुछ लोगों के साथ उनका जीवन ट्रामेटिक होता है और मान लीजिए उनके साथ किसी प्रकार का कोई यौन शोषण हुआ होता है और उन्होंने जो आसपास अपने चीजें देखी होती उसी के अनुरूप बच्चों का दिमाग विकसित होने लगता है। बच्चों का दिमाग फॉरमेशन स्टेज में होता है इसीलिए जो कुछ भी हो देखते और समझते हैं उसी को वह वास्तविक स्वरूप समझने लगते हैं। कम उम्र में बच्चों को कोई भी अगर बहला-फुसलाकर कुछ भी बताता है तो वह उनके दिमाग पर चिपकने लगती है और असर करने लगती है। धर्मांतरण जैसे मुद्दे पर भी अब जो गैंग है वह ऐसे ही बच्चों की तलाश कर रहा है जिनका स्क्रीन टाइम बहुत ज्यादा रहता है घर परिवार से वह कटे रहते हैं और सोशल गैदरिंग में कम इन वॉल होते हैं। यह गैंग ऐसे बच्चों पर पूरा फोकस करता है और उन्हें अपने जाल में फंसा लेता है।
गेम पहले भी बनते थे और अभी भी बन रहे हैं लेकिन अब बन रहे गेम में काफी अंतर आ चुका है पहले गेम सिर्फ इंटरटेनमेंट के लिए हुआ करते थे लेकिन अब गेम आपको आपको रियल दुनिया से वर्चुअल दुनिया में बहुत आसानी से ट्रांसफार्म कर देते हैं और इनमें अब्दुल ने फीचर्स आ रहे हैं, जिनके जरिए आप ग्रुप बना कर चैटिंग कर भी कर सकते हैं वह काफी घातक हो सकते हैं जिसमें आपको पता नहीं होता कि फेक आईडी के जरिए आपसे कौन बात कर रहा है और आप किसके इंस्ट्रक्शंस फॉलो कर रहे हैं। डॉक्टर अनुनीत ने बताया कि अब जो नए गेमिंग एप आ रहे हैं उनमें यूजर्स को काफी देर तक लग गए, रोकने के लिए नए नए फीचर्स भी डाले जा रहे हैं जिनमें चैटिंग का भी फीचर है और यह सब यूजर को काफी देर तक गेमिंग एप पर इंगेज रखने के लिए किया जाता है।
डॉक्टर अनुनीत के मुताबिक ऐसे बच्चे जो मोबाइल पर गेमिंग एप में जुड़ गए हैं उनमें कई तरीके के बदलाव देखने को मिलते हैं। बच्चे सामाजिक आयोजनों से काफी दूर होने लगते हैं। साथ ही साथ वह बिना मतलब को बाते करने लगते हैं। उन्हें अकेले में रहना ज्यादा पसंद आता हैं। बच्चों के स्कूल से कंप्लेन आनी शुरू हो जाती है। उनकी दुनिया पूरी तरह अलग होती है। ऐसे में बच्चों पर नजर रखना बेहद जरूरी है और उन्हें समझाना मां बाप का पहला काम होना चाहिए। आजकल जो बच्चे एक गेमिंग एप पर वर्चुअल वल्र्ड में देखते हैं उसे ही वह रियल वल्र्ड में देखना चाहते हैं जो काफी खतरनाक होता जा रहा है।
पैरेंट्स का अपने बच्चों को बचाने के लिए बेहद जरूरी है कि बच्चे के तीसरी चौथी क्लास यानी 8 से 9 साल की उम्र से ही उन पर नजर रखी जाए और यह देखा जाए कि वह किन चीजों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। अगर उनका स्क्रीन टाइम मोबाइल में बहुत ज्यादा हो रहा है तो किस तरीके की चीजें उसमें देख रहे हैं इस पर मॉनिटर करना बेहद जरूरी हो गया है। क्योंकि धीरे-धीरे यही वह उम्र है जिससे बच्चों को काफी कुछ देखने और सीखने को मिलता है अगर वह गलत दिशा में जा रहे होंगे तो परिजनों ने आसानी से समझा कर उन्हें वापस सही दिशा में ला सकते हैं।
–आईएएनएस
पीकेटी/एएनएम