लखनऊ, 18 अगस्त (आईएएनएस)। उत्तराखंड कैबिनेट की ओर से अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025 को मंजूरी दिए जाने पर मौलाना सूफियान निजामी ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में धर्म के आधार पर मुसलमानों के साथ भेदभाव हो रहा है।
मौलाना सूफियान निजामी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि प्रदेश में सरकार की ओर से लगातार ऐसे फैसले लिए जा रहे हैं, जिससे मुसलमानों के अधिकारों को कुचला जाए।
उन्होंने तर्क दिया कि यह संविधान के खिलाफ है कि किसी मजहब के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव किया जाए और शैक्षिक संस्थानों को बंद किया जाए।
केंद्र सरकार का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि एक तरफ हमारी केंद्र सरकार मुसलमानों के उत्थान का वादा करते हुए मदरसा आधुनिकीकरण योजना शुरू करती है, एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में लैपटॉप लेकर चलने की बात करती है। कहा जाता है कि इसका मकसद मदरसों का आधुनिकीकरण और उनकी शिक्षा व्यवस्था में सुधार करना है। लेकिन, दूसरी तरफ उत्तराखंड ने मदरसा बोर्ड को खत्म करने का फैसला किया है। यह जाहिर करता है कि सरकार मुसलमानों को किस तरह से देखती है। यह अफसोस की बात है।
उन्होंने मांग की है कि उत्तराखंड में राज्य सरकार की ओर से जो फैसले लिए जा रहे हैं, केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना चाहिए। उत्तराखंड सरकार ने जो फैसला लिया है, हम मांग करते हैं कि इसे वापिस लिया जाए।
बता दें कि उत्तराखंड सरकार ने जहां अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025 को मंजूरी दी, वहीं मानसून सत्र में इसे विधानसभा में पेश किया जाएगा। अभी तक अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का दर्जा केवल मुस्लिम समुदाय को मिलता था। प्रस्तावित विधेयक के अंतर्गत अब अन्य अल्पसंख्यक समुदायों जैसे सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध एवं पारसी को भी अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान का दर्जा प्राप्त होगा।
यह देश का पहला ऐसा अधिनियम होगा जिसका उद्देश्य राज्य में अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्थानों को मान्यता प्रदान करने हेतु पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित करना है, साथ ही शिक्षा में गुणवत्ता और उत्कृष्टता सुनिश्चित करना है।
–आईएएनएस
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