नई दिल्ली, 10 मई (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को जाति, धार्मिक, जातीय या भाषाई अर्थ वाले राजनीतिक दलों के नामों और तिरंगे से मिलते-जुलते झंडों पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अगुवाई वाली एक खंडपीठ याचिकाकर्ता वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही है।
याचिका में कहा गया है, धार्मिक, जातीय या भाषाई अर्थों के साथ पंजीकृत राजनीतिक दलों की समीक्षा करें और यह सुनिश्चित करें कि वे राष्ट्रीय ध्वज के समान ध्वज का उपयोग नहीं कर रहे हैं और यदि वे तीन महीने के भीतर इसे बदलने में विफल रहते हैं तो उनका पंजीकरण रद्द कर दें।
अदालत को अवगत कराया गया कि 2019 में जनहित याचिका पर नोटिस जारी करने के बावजूद केंद्र ने जवाब दाखिल नहीं किया है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने भी कहा कि केंद्र जनहित याचिका के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण पक्ष है।
केंद्र सरकार के वकील ने चार सप्ताह का समय देने की प्रार्थना की। अदालत ने इसे अनुमति दी और चुनाव आयोग के वकील को मामले में और निर्देश मांगने के लिए भी कहा। ईसीआई ने पहले ही याचिका पर जवाब दाखिल कर दिया है।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई नौ अगस्त को सूचीबद्ध की।
याचिका में हिंदू सेना, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसे राजनीतिक दलों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि यह आरपीए और आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करता है।
इसने कहा, इसके अलावा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दल हैं, जो राष्ट्रीय ध्वज के समान ध्वज का उपयोग करते हैं, जो कि आरपीए की भावना के भी खिलाफ है।
ईसीआई के 2019 के उत्तर के अनुसार, 2005 में उसने किसी भी राजनीतिक दल को पंजीकृत नहीं करने का नीतिगत निर्णय लिया, जिसका नाम धार्मिक अर्थों में है और तब से उसने ऐसी कोई पार्टी पंजीकृत नहीं की है।
इसमें कहा गया है कि 2005 से पहले पंजीकृत ऐसी कोई भी पार्टी धार्मिक अर्थ वाले नाम के लिए अपना पंजीकरण नहीं खोएगी।
–आईएएनएस
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