मुंबई, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)। संगीत की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं, जो समय की सीमाओं को लांघकर अनंत तक गूंजते हैं। पंडित राम चतुर मल्लिक ऐसा ही एक नाम है, जिनकी आवाज में ध्रुपद की प्राचीन आत्मा बसती थी। बिहार के दरभंगा जिले के अमटा गांव में 5 अक्टूबर, 1902 को जन्मे इस महान गायक ने न केवल दरभंगा घराने की समृद्ध परंपरा को सहेजा, बल्कि उसे विश्व पटल पर एक नई पहचान दी।
उनकी गायकी में वैदिक मंत्रों की पवित्रता थी, रागों की गहराई थी, और एक ऐसी लय थी जो सुनने वालों को तन्मय कर देती थी।
राम चतुर मल्लिक, मल्लिक परिवार की 14वीं पीढ़ी के संगीतकार थे, जो सदियों से दरभंगा राज दरबार के गौरव थे। उनके पिता, पंडित राजित राम, एक विख्यात गायक और कवि थे, जिन्होंने राग विनोद की रचना की और हजारों ध्रुपद रचनाएं वैदिक ग्रंथों से प्रेरित होकर रचीं। राम चतुर का बचपन संगीत की गोद में बीता। उनके पहले गुरु उनके पिता और फिर चाचा क्षितिज पाल मल्लिक रहे, जिन्होंने उन्हें ध्रुपद की बारीकियों से परिचित कराया। लेकिन राम चतुर ने ध्रुपद तक सीमित न रहकर खयाल और ठुमरी में भी अपनी अनूठी छाप छोड़ी। उनकी गायकी में शास्त्रीयता और भावनाओं का ऐसा संगम था कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठते।
दरभंगा राज के अंतिम प्रमुख दरबारी संगीतकार के रूप में राम चतुर मल्लिक महाराजा कामेश्वर सिंह के विश्वासपात्र थे। राज सभाओं में संगीत की हर जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी। वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय शास्त्रीय संगीत की पहचान बनाने वाले चुनिंदा कलाकारों में से एक थे। वह इंग्लैंड और फ्रांस की यात्रा पर गए और वहां अपने ध्रुपद-धमार गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
उनकी गायकी में एक लचीलापन था, जो ध्रुपद की कठोर संरचना को भी सहजता से मधुर बना देता था। उनको ध्रुपद सम्राट कहा जाता था। 1970 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था। इसके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कार मिले थे।
उस्ताद अमीर खान और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान जैसे दिग्गजों ने भी उनकी गायकी की तारीफ की थी। राम चतुर मल्लिक से जुड़े इस किस्से का जिक्र उनके कुछ आलेखों में मिलता है।
एक बार एक अनौपचारिक महफिल में सभी महान कलाकार मौजूद थे। राम चतुर मल्लिक ने अपने ध्रुपद गायन के बाद अचानक एक खूबसूरत ठुमरी गाना शुरू कर दिया। उनके इस अप्रत्याशित कदम से सब हैरान रह गए। ठुमरी गायन अपनी भावुकता और चंचलता के लिए जाना जाता है, जो ध्रुपद की गंभीरता से बिल्कुल अलग है।
जब उन्होंने अपना गायन समाप्त किया, तो उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, जिन्हें ख्याल और ठुमरी का बादशाह माना जाता था, खड़े हो गए। उन्होंने राम चतुर मल्लिक की ठुमरी में छिपी गहराई और दक्षता की खुले दिल से तारीफ की।
स्वर पंडित राम चतुर मल्लिक का जीवन संगीत की साधना का पर्याय था। उनकी आवाज में वह जादू था, जो रागों को आत्मा देता था। आज, जब ध्रुपद की गूंज धीमी पड़ती जा रही है, उनकी रचनाएं और रिकॉर्डिंग हमें याद दिलाती हैं कि सच्ची कला कभी मिटती नहीं।
–आईएएनएस
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