नई दिल्ली, 2 जून (आईएएनएस)। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इन्फ्लूएंजा बी के खिलाफ ह्यूमन मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को अलग कर लिया है। यह एक ऐसी बीमारी के लिए यूनिवर्सल वैक्सीन का मार्ग प्रशस्त कर सकती है जो मुख्य रूप से बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों को प्रभावित करती है।
वांडरबिल्ट यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर (वीयूएमसी) के शोधकर्ताओं ने इन्फ्लूएंजा के खिलाफ पहले से वैक्सीन (टीका) लगाए गए एक व्यक्ति के अस्थि मज्जा (बोन मैरो) से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी के दो समूहों को अलग किया, जो इन्फ्लूएंजा बी की सतह (सरफेस) पर इन्फ्लूएंजा वायरस के एक प्रमुख सतह ग्लाइकोप्रोटीन, न्यूरामिनिडेस के अलग-अलग हिस्सों से जुड़े थे।
इम्यूनिटी जर्नल में प्रकाशित शोध दल ने बताया, “फ्लूबी-400 नामक एंटीबॉडी ने ह्यूमन रेस्पिरेटरी एपिथेलियल सेल की लेबोरेटरी कल्चर में वायरस रेपलिकेशन को व्यापक रूप से बाधित किया।”
शोधकर्ताओं को पता चला कि यह एंटीबॉडी इंजेक्शन या नाक के जरिए दिए जाने पर जानवरों में इन्फ्लूएंजा बी से भी सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, नाक के अंदर बूंदें डालना ज़्यादा कारगर हो सकता है। इसके साथ ही, नसों में इंजेक्शन या मांसपेशियों में इंजेक्शन लगाने की तुलना में इसके कम सिस्टमिक साइड इफेक्ट होने की संभावना है। ऐसा इसलिए क्योंकि नाक के अंदर एंटीबॉडी नाक के बलगम में वायरस को फंसा सकती है, जिससे अंडरलाइंग एपिथेलियल सरफेस के संक्रमण को रोका जा सकता है।
टीम ने अपने शोध पत्र में कहा, “ये निष्कर्ष इन्फ्लूएंजा बी की रोकथाम और इलाज के लिए फ्लूबी-400 के विकास का समर्थन करते हैं और यूनिवर्सल इन्फ्लूएंजा वैक्सीन विकसित करने के प्रयासों को दिशा देने में मदद करेंगे।
वांडरबिल्ट वैक्सीन सेंटर के निदेशक और बाल चिकित्सा के प्रोफेसर जेम्स क्रो जूनियर ने कहा, “वायरल संक्रमण को रोकने या उसका इलाज करने के लिए एंटीबॉडीज तेजी से एक मेडिकल टूल बन गए हैं।”
–आईएएनएस
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