हेग, 8 जुलाई (आईएएनएस)। नीदरलैंड के प्रधानमंत्री मार्क रूट ने चार गठबंधन पार्टियों के बीच आव्रजन नीति पर एक समझौते वार्ता में सहमति नहीं बनने के बाद अपनी सरकार के पतन की घोषणा की है। अब देश में इस साल के अंत में चुनाव होंगे।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, प्रधानमंत्री रूट ने ने अपने मंत्रियों के साथ बैठक के बाद शुक्रवार देर रात हेग में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “यह कोई राज नहीं है कि आव्रजन नीति पर गठबंधन सहयोगियों के बहुत अलग विचार हैं। आज दुर्भाग्य से यही निष्कर्ष है कि वे मतभेद पाटे जाने लायक नहीं हैं।”
उन्होंने कहा, “यह निर्णय हम सभी के लिए कठिन है और व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए भी। यह अफसोस की बात है कि यह सफल नहीं रहा।”
चारों पार्टियों का मानना है कि आव्रजन के मुद्दों पर उपाय किए जाने की जरूरत है, लेकिन दृष्टिकोण की सख्ती को लेकर उनके बीच अभी भी विवाद हैं।
सबसे जटिल मुद्दा पारिवारिक पुनर्मिलन है।
रूट की पीपुल्स पार्टी फॉर फ्रीडम एंड डेमोक्रेसी और क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक अपील ने जोर देकर कहा कि परिवार के पुनर्मिलन पर प्रतिबंध आव्रजन प्रवाह को कम करने का एक तरीका है, लेकिन डेमोक्रेट 66 और क्रिश्चियन यूनियन ने इस पर बिल्कुल भी तैयार नहीं हुए।
सरकार ने बाद में एक बयान में कहा कि रुट ने किंग विलेम-अलेक्जेंडर के सभी मंत्रियों और राज्य सचिवों के इस्तीफे के लिए एक आवेदन दायर किया है।
इसमें कहा गया, “राजा ने बर्खास्तगी के आवेदन पर विचार किया है और प्रधानमंत्री, मंत्रियों और राज्य सचिवों से अनुरोध किया है कि वे राज्य के हित में जो भी आवश्यक समझें, करते रहें।”
इसमें कहा गया है कि मंत्रिमंडल के इस्तीफे के आवेदन पर स्पष्टीकरण के लिए सम्राट शनिवार को रुट से मिलेंगे।
स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, वर्तमान सरकार के पतन का मतलब है कि शायद नवंबर में नए चुनावों की योजना बनाई जाएगी।
56 वर्षीय रूट डच इतिहास में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले सरकारी नेता हैं और हंगरी के विक्टर ओर्बन के बाद यूरोपीय संघ में सबसे वरिष्ठ हैं।
उम्मीद की जा रही है कि वह अगले चुनाव में फिर से अपनी वीवीडी पार्टी का नेतृत्व करेंगे।
रूट का वर्तमान गठबंधन, जो 10 जनवरी 2022 को सत्ता में आया, अक्टूबर 2010 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनका लगातार चौथा प्रशासन था।
सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, नीदरलैंड में पहले से ही यूरोप की सबसे कठिन आव्रजन नीतियों में से एक लागू है, लेकिन दक्षिणपंथी पार्टियों के दबाव में रूटे महीनों से शरण चाहने वालों की आमद को और कम करने के तरीकों की तलाश कर रहे थे।
–आईएएनएस
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