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न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटाए जाने का स्वागत करना चाहिए : पप्पू यादव

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October 26, 2024
in राष्ट्रीय
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न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटाए जाने का स्वागत करना चाहिए : पप्पू यादव
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पटना, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट परिसर में लगी न्याय की देवी की आंखों की पट्टी हटाने का फैसला किया था। पूर्णिया सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने इस फैसले का स्वागत किया है।

उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। जब कोई नया कानून बनता है, तो उसका उद्देश्य उस समय की आवश्यकताओं के अनुसार होता है। लेकिन यदि वह कानून सही से लागू नहीं होता है, तो उसे एक नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत होती है, और फिर नए कानूनों का निर्माण किया जाता है। बाबा साहब और गांधी जी ने कहा था कि ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाएड’।”

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उन्होंने आगे कहा, “बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि संविधान को गीता, कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों के समान समझना चाहिए। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस संविधान को लागू करने के लिए इस देश में मजबूत नेता की जरूरत है, जैसे कि सरदार पटेल, नेहरू, या लाल बहादुर शास्त्री। लेकिन आज संविधान और कानून लोकतंत्र से भी ऊपर हो गए हैं।”

उन्होंने कहा, “यह कहा जाता है कि संविधान से ऊपर न तो कोई प्रधानमंत्री है, न न्यायालय, न कोई अन्य संस्थान। सभी कानून के मुताबिक कार्य कर रहे हैं। हमें कानून के दायरे में रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस अवधारणा के साथ कानून को स्थापित किया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। हम देख सकते हैं कि नेता शपथ लेते हैं, लेकिन अक्सर वे उस शपथ का पालन नहीं करते। जब वे संविधान की शपथ लेते हैं, तो नफरत फैलाने, दंगों को भड़काने, और जातिवाद को बढ़ावा देने वाले कार्य करते हैं। यह बात चिंताजनक है, क्योंकि वे एक दूसरे का सम्मान करने का वादा करते हैं, लेकिन उनके कार्य इसके विपरीत होते हैं।”

उन्होंने कहा, “समय के अनुसार जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि हम कानून और संविधान को सही तरीके से लागू करने के लिए एकजुट हों और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करें।”

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

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पटना, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट परिसर में लगी न्याय की देवी की आंखों की पट्टी हटाने का फैसला किया था। पूर्णिया सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने इस फैसले का स्वागत किया है।

उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। जब कोई नया कानून बनता है, तो उसका उद्देश्य उस समय की आवश्यकताओं के अनुसार होता है। लेकिन यदि वह कानून सही से लागू नहीं होता है, तो उसे एक नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत होती है, और फिर नए कानूनों का निर्माण किया जाता है। बाबा साहब और गांधी जी ने कहा था कि ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाएड’।”

उन्होंने आगे कहा, “बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि संविधान को गीता, कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों के समान समझना चाहिए। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस संविधान को लागू करने के लिए इस देश में मजबूत नेता की जरूरत है, जैसे कि सरदार पटेल, नेहरू, या लाल बहादुर शास्त्री। लेकिन आज संविधान और कानून लोकतंत्र से भी ऊपर हो गए हैं।”

उन्होंने कहा, “यह कहा जाता है कि संविधान से ऊपर न तो कोई प्रधानमंत्री है, न न्यायालय, न कोई अन्य संस्थान। सभी कानून के मुताबिक कार्य कर रहे हैं। हमें कानून के दायरे में रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस अवधारणा के साथ कानून को स्थापित किया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। हम देख सकते हैं कि नेता शपथ लेते हैं, लेकिन अक्सर वे उस शपथ का पालन नहीं करते। जब वे संविधान की शपथ लेते हैं, तो नफरत फैलाने, दंगों को भड़काने, और जातिवाद को बढ़ावा देने वाले कार्य करते हैं। यह बात चिंताजनक है, क्योंकि वे एक दूसरे का सम्मान करने का वादा करते हैं, लेकिन उनके कार्य इसके विपरीत होते हैं।”

उन्होंने कहा, “समय के अनुसार जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि हम कानून और संविधान को सही तरीके से लागू करने के लिए एकजुट हों और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करें।”

–आईएएनएस

पीएसएम/केआर

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पटना, 26 अक्टूबर (आईएएनएस)। उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट परिसर में लगी न्याय की देवी की आंखों की पट्टी हटाने का फैसला किया था। पूर्णिया सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने इस फैसले का स्वागत किया है।

उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। जब कोई नया कानून बनता है, तो उसका उद्देश्य उस समय की आवश्यकताओं के अनुसार होता है। लेकिन यदि वह कानून सही से लागू नहीं होता है, तो उसे एक नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत होती है, और फिर नए कानूनों का निर्माण किया जाता है। बाबा साहब और गांधी जी ने कहा था कि ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाएड’।”

उन्होंने आगे कहा, “बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि संविधान को गीता, कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों के समान समझना चाहिए। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस संविधान को लागू करने के लिए इस देश में मजबूत नेता की जरूरत है, जैसे कि सरदार पटेल, नेहरू, या लाल बहादुर शास्त्री। लेकिन आज संविधान और कानून लोकतंत्र से भी ऊपर हो गए हैं।”

उन्होंने कहा, “यह कहा जाता है कि संविधान से ऊपर न तो कोई प्रधानमंत्री है, न न्यायालय, न कोई अन्य संस्थान। सभी कानून के मुताबिक कार्य कर रहे हैं। हमें कानून के दायरे में रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस अवधारणा के साथ कानून को स्थापित किया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। हम देख सकते हैं कि नेता शपथ लेते हैं, लेकिन अक्सर वे उस शपथ का पालन नहीं करते। जब वे संविधान की शपथ लेते हैं, तो नफरत फैलाने, दंगों को भड़काने, और जातिवाद को बढ़ावा देने वाले कार्य करते हैं। यह बात चिंताजनक है, क्योंकि वे एक दूसरे का सम्मान करने का वादा करते हैं, लेकिन उनके कार्य इसके विपरीत होते हैं।”

उन्होंने कहा, “समय के अनुसार जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि हम कानून और संविधान को सही तरीके से लागू करने के लिए एकजुट हों और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करें।”

–आईएएनएस

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उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। जब कोई नया कानून बनता है, तो उसका उद्देश्य उस समय की आवश्यकताओं के अनुसार होता है। लेकिन यदि वह कानून सही से लागू नहीं होता है, तो उसे एक नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत होती है, और फिर नए कानूनों का निर्माण किया जाता है। बाबा साहब और गांधी जी ने कहा था कि ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाएड’।”

उन्होंने आगे कहा, “बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि संविधान को गीता, कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों के समान समझना चाहिए। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस संविधान को लागू करने के लिए इस देश में मजबूत नेता की जरूरत है, जैसे कि सरदार पटेल, नेहरू, या लाल बहादुर शास्त्री। लेकिन आज संविधान और कानून लोकतंत्र से भी ऊपर हो गए हैं।”

उन्होंने कहा, “यह कहा जाता है कि संविधान से ऊपर न तो कोई प्रधानमंत्री है, न न्यायालय, न कोई अन्य संस्थान। सभी कानून के मुताबिक कार्य कर रहे हैं। हमें कानून के दायरे में रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस अवधारणा के साथ कानून को स्थापित किया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। हम देख सकते हैं कि नेता शपथ लेते हैं, लेकिन अक्सर वे उस शपथ का पालन नहीं करते। जब वे संविधान की शपथ लेते हैं, तो नफरत फैलाने, दंगों को भड़काने, और जातिवाद को बढ़ावा देने वाले कार्य करते हैं। यह बात चिंताजनक है, क्योंकि वे एक दूसरे का सम्मान करने का वादा करते हैं, लेकिन उनके कार्य इसके विपरीत होते हैं।”

उन्होंने कहा, “समय के अनुसार जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि हम कानून और संविधान को सही तरीके से लागू करने के लिए एकजुट हों और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करें।”

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उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। जब कोई नया कानून बनता है, तो उसका उद्देश्य उस समय की आवश्यकताओं के अनुसार होता है। लेकिन यदि वह कानून सही से लागू नहीं होता है, तो उसे एक नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत होती है, और फिर नए कानूनों का निर्माण किया जाता है। बाबा साहब और गांधी जी ने कहा था कि ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाएड’।”

उन्होंने आगे कहा, “बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि संविधान को गीता, कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों के समान समझना चाहिए। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस संविधान को लागू करने के लिए इस देश में मजबूत नेता की जरूरत है, जैसे कि सरदार पटेल, नेहरू, या लाल बहादुर शास्त्री। लेकिन आज संविधान और कानून लोकतंत्र से भी ऊपर हो गए हैं।”

उन्होंने कहा, “यह कहा जाता है कि संविधान से ऊपर न तो कोई प्रधानमंत्री है, न न्यायालय, न कोई अन्य संस्थान। सभी कानून के मुताबिक कार्य कर रहे हैं। हमें कानून के दायरे में रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस अवधारणा के साथ कानून को स्थापित किया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। हम देख सकते हैं कि नेता शपथ लेते हैं, लेकिन अक्सर वे उस शपथ का पालन नहीं करते। जब वे संविधान की शपथ लेते हैं, तो नफरत फैलाने, दंगों को भड़काने, और जातिवाद को बढ़ावा देने वाले कार्य करते हैं। यह बात चिंताजनक है, क्योंकि वे एक दूसरे का सम्मान करने का वादा करते हैं, लेकिन उनके कार्य इसके विपरीत होते हैं।”

उन्होंने कहा, “समय के अनुसार जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि हम कानून और संविधान को सही तरीके से लागू करने के लिए एकजुट हों और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करें।”

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उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। जब कोई नया कानून बनता है, तो उसका उद्देश्य उस समय की आवश्यकताओं के अनुसार होता है। लेकिन यदि वह कानून सही से लागू नहीं होता है, तो उसे एक नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत होती है, और फिर नए कानूनों का निर्माण किया जाता है। बाबा साहब और गांधी जी ने कहा था कि ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाएड’।”

उन्होंने आगे कहा, “बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि संविधान को गीता, कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों के समान समझना चाहिए। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस संविधान को लागू करने के लिए इस देश में मजबूत नेता की जरूरत है, जैसे कि सरदार पटेल, नेहरू, या लाल बहादुर शास्त्री। लेकिन आज संविधान और कानून लोकतंत्र से भी ऊपर हो गए हैं।”

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उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। जब कोई नया कानून बनता है, तो उसका उद्देश्य उस समय की आवश्यकताओं के अनुसार होता है। लेकिन यदि वह कानून सही से लागू नहीं होता है, तो उसे एक नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत होती है, और फिर नए कानूनों का निर्माण किया जाता है। बाबा साहब और गांधी जी ने कहा था कि ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाएड’।”

उन्होंने आगे कहा, “बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि संविधान को गीता, कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों के समान समझना चाहिए। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस संविधान को लागू करने के लिए इस देश में मजबूत नेता की जरूरत है, जैसे कि सरदार पटेल, नेहरू, या लाल बहादुर शास्त्री। लेकिन आज संविधान और कानून लोकतंत्र से भी ऊपर हो गए हैं।”

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उन्होंने कहा, “समय के अनुसार जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि हम कानून और संविधान को सही तरीके से लागू करने के लिए एकजुट हों और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करें।”

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उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, “समय के साथ चीजें बदलती रहती हैं। जब कोई नया कानून बनता है, तो उसका उद्देश्य उस समय की आवश्यकताओं के अनुसार होता है। लेकिन यदि वह कानून सही से लागू नहीं होता है, तो उसे एक नए दृष्टिकोण से देखने की जरूरत होती है, और फिर नए कानूनों का निर्माण किया जाता है। बाबा साहब और गांधी जी ने कहा था कि ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाएड’।”

उन्होंने आगे कहा, “बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि संविधान को गीता, कुरान और अन्य धार्मिक ग्रंथों के समान समझना चाहिए। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस संविधान को लागू करने के लिए इस देश में मजबूत नेता की जरूरत है, जैसे कि सरदार पटेल, नेहरू, या लाल बहादुर शास्त्री। लेकिन आज संविधान और कानून लोकतंत्र से भी ऊपर हो गए हैं।”

उन्होंने कहा, “यह कहा जाता है कि संविधान से ऊपर न तो कोई प्रधानमंत्री है, न न्यायालय, न कोई अन्य संस्थान। सभी कानून के मुताबिक कार्य कर रहे हैं। हमें कानून के दायरे में रहकर कार्य करने की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस अवधारणा के साथ कानून को स्थापित किया है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। हम देख सकते हैं कि नेता शपथ लेते हैं, लेकिन अक्सर वे उस शपथ का पालन नहीं करते। जब वे संविधान की शपथ लेते हैं, तो नफरत फैलाने, दंगों को भड़काने, और जातिवाद को बढ़ावा देने वाले कार्य करते हैं। यह बात चिंताजनक है, क्योंकि वे एक दूसरे का सम्मान करने का वादा करते हैं, लेकिन उनके कार्य इसके विपरीत होते हैं।”

उन्होंने कहा, “समय के अनुसार जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं, उनका स्वागत किया जाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि हम कानून और संविधान को सही तरीके से लागू करने के लिए एकजुट हों और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करें।”

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