भुवनेश्वर, 4 फरवरी (आईएएनएस)। ओडिशा 2 अक्टूबर 2009 को अधिनियम के प्रभावी होने के बाद ग्राम अदालतें शुरू करने वाले शुरुआती राज्यों में से एक था।
उस पहल के लगभग 15 साल बाद, उन लोगों के लिए त्वरित न्याय सुनिश्चित करना तो दूर जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है, पुलिस, वकीलों और राज्य सरकार सहित प्रमुख हितधारकों की उदासीनता के कारण इन ग्राम अदालतों में लंबित मामलों के ढेर लग गए हैं।
विधि आयोग ने 1986 में अपनी 114वीं रिपोर्ट में प्रस्ताव दिया था कि समाज के कमजोर वर्गों के लिए न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने और न्याय मिलने में देरी को कम करने के लिए पूरे देश में ग्राम अदालतें स्थापित की जाएं।
ग्राम न्यायालय विधेयक 22 दिसंबर, 2008 को संसद द्वारा पारित किया गया और यह अधिनियम 2 अक्टूबर 2009 को लागू हुआ।
हालाँकि यह अधिनियम राज्यों के लिए ग्राम न्यायालय स्थापित करना अनिवार्य नहीं बनाता है, फिर भी ओडिशा 2009 में इस अवधारणा को लागू करने वाले चुनिंदा राज्यों में से एक था, जिससे नागरिकों को उनके दरवाजे पर न्याय प्रदान करने की उम्मीद की गई थी।
ओडिशा में अब तक राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित 24 में से 20 ग्राम अदालतें कार्यरत हैं।
केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय के तहत न्याय विभाग के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार, ओडिशा को ग्राम अदालतों की स्थापना के लिए केंद्र सरकार से 5.244 करोड़ रुपये मिले।
लेकिन ग्राम अदालतें अभी भी उन उद्देश्यों को पूरी तरह से हासिल नहीं कर पाई हैं जिनके लिए उनकी स्थापना की गई थी। उनसे अपेक्षा की गई थी कि वे अधीनस्थ न्यायालयों में लंबित मामलों को कम करेंगी, लेकिन इसकी बजाय वे लंबित मामलों के भारी बोझ से दबी हुई हैं।
उत्तर प्रदेश के बाद ओडिशा में ग्राम अदालतों में सबसे अधिक लंबित मामले दर्ज किए गए।
न्याय विभाग के ग्राम न्यायालय पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि ओडिशा भर में 20 कार्यात्मक ग्राम न्यायालयों में 1,124 सिविल मामले और 44,750 आपराधिक मामले सहित 45,874 मामले लंबित हैं।
इस बीच, देश भर में ग्राम अदालतों के खराब प्रदर्शन के लिए कई अन्य कारण भी जिम्मेदार हैं।
पूर्व कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले साल फरवरी में राज्यसभा में कहा था, “अधिकांश राज्यों ने अब तालुका स्तर पर नियमित अदालतें स्थापित की हैं। हालाँकि किसी भी राज्य ने ग्राम अदालत की स्थापना का विरोध नहीं किया है, तथापि ग्राम अदालत के अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने में पुलिस अधिकारियों और अन्य राज्य पदाधिकारियों की अनिच्छा, बार की उदासीन प्रतिक्रिया, नोटरी और स्टाम्प विक्रेताओं की अनुपलब्धता, नियमित अदालतों के समवर्ती क्षेत्राधिकार की समस्या राज्यों द्वारा बताए गए अन्य मुद्दे हैं, जो योजना के संचालन में आड़े आ रहे हैं।”
–आईएएनएस
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