गांधीग्राम. धान के बाद दूसरी फसलों की बोनी करने की होड़ में किसान पर्यावरण और जीव जंतुओं से साथ खिलवाड़ कर पराली आग हैं. किसान खेतों का कचरा नष्ट करने के लिए आग लगाना सरल उपाय समझता है. जिससे किसानों की खेतों में खड़ी फसल जल रही है. वर्तमान में गांधीग्राम क्षेत्र के सिहोरा विकासखण्ड समेत ग्रामीण क्षेत्रों में रोज खेतों में पराली में आग लगाई जा रही है.
खेतों के नुकसान से अनजान किसान-
पराली की आग से जहां खेतों में फैलती आग आसपास खेतों तक पहुंच जाती है, वहीं खेत भी खेती की दृष्टि से ऊसर होते जा रहे हैं. कृषि वैज्ञानिकों की सलाह को किसान नहीं मान रहे हैं. जिसके कारण सिहोरा विकासखंड के अधिकांश खेत धान की फसल के बाद काले ही नजर आते हैं.
खर्च और समय की बचत कर रहे किसान-
विकासखंड में फसल काटने के लिए दो प्रकार का सहारा लिया जाता है. एक फसल काटने के लिए मजदूर आते हैं और दूसरा हार्वेस्टर का सहारा लिया जाता है. मजदूर फसल काटते हैं, उसमें कचरा कम हो पाता है. लेकिन हार्वेस्टर की कटाई से खेतों में फसल के डंठल खड़े रहते हैं. जिसे पराली कहा जाता है. इस पराली को हटाने के लिए किसानों को अधिक धन राशि खर्च करना पड़ती है.
जबकि आग लगाने में उन्हें सिर्फ एक तीली का सहारा लेना पड़ता हैं. किसान के लिए आग लगाना सबसे सरल उपाय लगता है. प्रतिबंध के बाद भी इसमें कमी नहीं आई है.
इस संबंध में कृषि जानकारों ने बताया कि किसान यदि चाहें तो रोटाबेटर कृषि यंत्र के माध्यम से जो पराली खड़ी है, उसे ही खाद के रूप में उपयोग में ले सकते हैं.
पराली जलाने पर जुर्माना-
पर्यावरण को नुकसान पहुंचने के कारण फसल कटाई के बाद बची फसल यानी नपराली को जलाना प्रतिबंधित है. इसमें जुर्माने का प्रावधान है. पराली जलाने पर यह जुर्माना पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में है.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी पर्यावरण प्रदूषण एवं नियंत्रण अधिनियम 1981 के तहत धान व गेहूं की फसल कटाई के बाद बची फसल को जलाने पर प्रतिबंध लगाया है. पराली में आग लगाने से जमीन की उर्वरा शक्ति पर विपरीत असर पड़ता है. साथ ही प्रदूषण भी फैलता है.