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Home ताज़ा समाचार

पाकिस्तान की गठबंधन सरकार सत्ता में बने रहने के लिए लोकतंत्र को कर रही कमजोर

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December 29, 2022
in ताज़ा समाचार
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पाकिस्तान की गठबंधन सरकार सत्ता में बने रहने के लिए लोकतंत्र को कर रही कमजोर
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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

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इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

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13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

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13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

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13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

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मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

–आईएएनएस

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इस्लामाबाद, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) की मौजूदा सरकार, जो अविश्वास मत के जरिए इमरान खान के हटाकर सत्ता में आई है, अपना एजेंडा और इस प्रक्रिया में अपनी विश्वसनीयता खोती नजर आ रही है।

13 दलों का गठबंधन लोकतंत्र के रक्षक होने का दावा करते हुए सत्ता में आया। हालांकि, अब यह देश के लोगों को अपने भाग्य का फैसला करने देने के बजाय अपनी शक्ति को बनाए रखने और अपना कार्यकाल पूरा करने के लिए हर संभव अलोकतांत्रिक चाल और रणनीति को अमल में लाने पर अधिक केंद्रित लगता है।

इस साल अप्रैल में जब पीडीएम सरकार ने पदभार संभाला था, तो उसके नेतृत्व को यह विश्वास हो गया था कि सरकार छह महीने की अवधि के लिए आई है, जिसमें वह प्रासंगिक चुनाव सुधार लाएगी और फिर देश में जल्दी आम चुनाव की ओर बढ़ेगी, क्योंकि लोगों का दावा है कि 2018 के चुनावों के दौरान वोट देने के उनके अधिकार को लूट लिया गया था।

हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता गया और इमरान खान और उनके सत्ता परिवर्तन के कड़े प्रतिरोध ने उनके सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना शुरू किया, सरकार को अपना सिद्धांत बदलना पड़ा, जिस पर उसने इमरान खान को हटाने का विचार बनाया।

अब ऐसा लगता है कि सरकार अपना कार्यकाल पूरा करने पर अड़ी हुई है, जिसका उद्देश्य उस समय का उपयोग कर इमरान खान की चकाचौंध भरी लोकप्रियता को कम करना है। विदेशी फंडिंग, तोशाखाना मामले, अदालत की अवमानना जैसे कानूनी मामलों के माध्यम से खान की सार्वजनिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा है। मगर इमरान खान का लक्ष्य अगले चुनाव के जरिए फिर से सत्ता हासिल करना है।

मौजूदा सरकार हालांकि खान के सभी प्रयासों को विफल करने में लगी है। खान देश में जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, इसके अलावा वह मतदान के जरिए जन भागीदारी से नई सरकार बनाना चाहते हैं।

पूर्व विदेश मंत्री और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के सह-अध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी के सामूहिक इस्तीफे की घोषणा के बाद मौजूदा सरकार ने पीटीआई के सभी सदस्यों के इस्तीफे मंजूर किए जाने से रोक दिया है। नेशनल असेंबली के कम से कम 131 सदस्यों ने संसद के पटल पर सामूहिक इस्तीफे पेश किए थे।

नेशनल असेंबली के अध्यक्ष राजा परवेज अशरफ ने अब तक सिर्फ 11 इस्तीफे मंजूर किए हैं, जबकि अन्य 120 इस्तीफे अभी भी अध्यक्ष के पास विचाराधीन हैं।

पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा में विधानसभाओं को भंग करने की धमकी के बावजूद सरकार ने खान की जल्द चुनाव कराने की मांग को भी खारिज कर दिया है। पंजाब विधानसभा को भंग करने पर स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने को कहा गया है और पंजाब के राज्यपाल को कहा गया है कि वह मुख्यमंत्री परवेज इलाही को प्रांतीय विधानसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए कहें। इस मामले को अब लाहौर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है और इस पर अदालत का फैसला आना अभी बाकी है।

ऐसा लगता है कि पीडीएम सरकार अपनी सारी ऊर्जा इस बात पर लगा रही है कि देश में जल्द चुनाव कराने के लिए पर्याप्त राजनीतिक दबाव पैदा करने के खान के प्रयासों से कैसे निपटा जाए।

सरकार अब सत्ता को बनाए रखने और अपना पूरा कार्यकाल पूरा करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है।

एक स्थानीय अखबार के संपादकीय में कहा गया है, पीडीएम सरकार जानती है कि यह इमरान खान से नैरेटिव वार हार गई है। सत्तारूढ़ दल अब जनता के वोट पर कुछ भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। चुनाव कराने का विरोध स्पष्ट रूप से अलोकतांत्रिक और जनता की भावनाओं के खिलाफ है। हमारे संविधान में राजनीतिक व्यवस्था की कल्पना की गई है।

सरकार के इर्द-गिर्द लिपटी मौजूदा राजनीतिक अनिश्चितता वोट की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने और सत्ता बनाए रखने के बदले हुए एजेंडे से अब इसकी लोकतांत्रिक साख का नुकसान हो रहा है। इसे हर मुमकिन तरीके से खान को हराने के जुनून के रूप में देखा जा रहा है।

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