बेंगलुरु, 14 जुलाई (आईएएनएस)। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक लड़की पर उसके पिता द्वारा यौन उत्पीड़न के मामले की उचित जांच नहीं करने के लिए पुलिस को फटकार लगाई है और बेंगलुरु पुलिस आयुक्त को एक नया जांच अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति एम. नागाप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को पीड़िता की मां द्वारा मामले की अतिरिक्त जांच के लिए निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। याचिका पर विचार करते हुए और बेंगलुरु में कोरमंगला पुलिस द्वारा प्रस्तुत आरोप पत्र में खामियों को देखने के बाद, पीठ ने एक नए जांच अधिकारी की नियुक्ति के निर्देश दिए।
पीठ ने निर्देश दिये कि नवनियुक्त जांच अधिकारी अतिरिक्त जांच कर 10 सप्ताह में अदालत में आरोप पत्र दाखिल करें, तब तक इस मामले को देख रही निचली अदालत को इस मामले में पुलिस द्वारा पहले ही दाखिल की गई चार्जशीट पर विचार करते हुए कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। पीठ ने कहा, अदालत नवीनतम आरोप पत्र दाखिल होने के बाद ही मामले को आगे बढ़ा सकती है।
इस जोड़े ने 2014 में शादी की और बाद में उनकी एक बेटी हुई। पत्नी ने 24 अगस्त को कोरमंगला पुलिस स्टेशन में अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने आरोप लगाया कि उनका पति उनकी चार साल की बेटी के कपड़े उतारता था और उसे नहलाते समय गलत तरीके से छूता था।
उसने आरोप लगाया कि उसके पति ने बच्चे के सामने यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया। उसने बच्ची द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे आई-पैड में अश्लील वीडियो अपलोड किए और उसे देखने के लिए मजबूर किया।
पुलिस ने पति के खिलाफ पॉक्सो का मामला दर्ज किया था और अक्टूबर, 2020 में स्थानीय अदालत में आरोप पत्र दायर किया था। मां ने इस पर आपत्ति जताई थी और दावा किया था कि आरोपपत्र में खामियां हैं. हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने उनकी याचिका रद्द कर दी थी। इस पर मां ने हाईकोर्ट में अपील याचिका दायर की थी।
अदालत ने कहा कि पुलिस द्वारा प्रस्तुत आरोप पत्र से पता चलता है कि उन्होंने जांच के लिए आवश्यक दस्तावेज एकत्र नहीं किए हैं। पीठ ने कहा, जांच अधिकारियों ने जानबूझकर दस्तावेज एकत्र करने से इनकार कर दिया था और जांच अनुचित थी।
पीड़िता ने बयान में आरोपी का नाम लिया था और इसे चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया है। डॉक्टरों के सामने पीड़िता का बयान भी नहीं दिखाया गया है। पुलिस ने पीड़िता की मां से पूछताछ नहीं की है और न ही उनका बयान दर्ज किया है। पीठ ने कहा कि फोन और लैपटॉप, जिसमें अश्लील वीडियो थे, को हिरासत में ले लिया गया और आरोप पत्र में उनका कोई संदर्भ नहीं है।
पुलिस को आरोपी के मनोरोगी व्यवहार के संबंध में परिजनों का बयान भी नहीं मिला है। बच्चे की पीड़ा के बारे में मनोवैज्ञानिकों का बयान भी आरोप पत्र में शामिल नहीं किया गया। जानबूझ कर आरोपियों पर आरोप तय किये गये। अदालत ने कहा कि आई-पैड के संबंध में फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल) की रिपोर्ट उपलब्ध नहीं कराई गई और इन सबके बावजूद आरोप पत्र दाखिल किया गया है।
–आईएएनएस
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