नई दिल्ली, 27 मार्च (आईएएनएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से 2018 में शुरू की गई पहल आकांक्षी जिला अभियान (एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स प्रोग्राम) के तहत देश भर के 112 सबसे अविकसित जिलों को जल्दी और प्रभावी ढंग से विकास के पथ पर लाने का लक्ष्य था। केंद्र सरकार ने विकास से कोसों दूर रहे इन जिलों को ‘आकांक्षी जिले’ की संज्ञा दी।
नीति आयोग ने 2018 में 112 जिलों में आकांक्षी जिला अभियान की शुरुआत की। वर्ष 2023 में आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम के तहत 500 ब्लॉक और 329 जिलों पर फोकस शुरू हुआ जिसका लक्ष्य अविकसित क्षेत्र के विकास को तेज गति प्रदान करना था। इसमें देश के 50 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सों को कवर किया गया है।
इस अभियान के तहत, उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के वुड हैंडीक्राफ्ट उद्योग को जीआई टैग मिला जो पिछली सरकारों की उपेक्षा के कारण सिमटता जा रहा था। धीरे-धीरे बिजनौर के वुड हैंडीक्राफ्ट दुनियाभर में भेजे जाने लगे। इसी तरह असम के बारपेटा जिले का मांडिया गांव विकसित गांव बना जहां जल जीवन मिशन के तहत वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया जिससे लोगों को शुद्ध पीने का पानी मिल रहा है। झारखंड के गुमला जिले के डुमरी प्रखंड में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं एवं पोषण (आंगनवाड़ी) के जरिए मिल रहे हैं। छत्तीसगढ़ के ओरछा में पीएम किसान योजना के तहत किसान उत्पादक संगठन को मिली सहायता के जरिए कृषि एवं पशुपालन पर फोकस कर यहां के लोगों ने अपने जीवनस्तर में परिवर्तन लाया। ऐसे कई उदाहरण और भी हैं।
उत्तर प्रदेश के ब्लॉक कोतवाली में नगीना अपने हस्तशिल्प और कलाकृतियों के कारण राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध हो गया है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, यहां के अधिकांश गांवों को शौचालय युक्त घोषित कर दिया गया है, जबकि 98 प्रतिशत घरों का निर्माण प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के तहत किया गया है। मोदी सरकार के वोकल फॉर लोकल पर जोर से स्वयं सहायता समूहों को भी फायदा हुआ है।
असम के मांडिया ब्लॉक में पिछले कुछ वर्षों में बड़े पैमाने पर बदलाव आया है, खासकर घरों तक साफ नल के पानी की पहुंच में। स्थानीय प्रशासन द्वारा नियुक्त ‘जल मित्रों’ के सहयोग से क्षेत्र के 80 प्रतिशत से अधिक घरों में स्वच्छ नल का पानी उपलब्ध है। ‘जल मित्र’ पानी की गुणवत्ता की जांच करते हैं और ब्लॉक के निवासियों को पीने के पानी की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं।
झारखंड में आकांक्षी जिला गुमला के अंतर्गत डुमरी ब्लॉक ने स्वास्थ्य और पोषण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति दिखाई है, जो इसका सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला आर्थिक संकेतक है। बच्चों में कुपोषण से निपटने और पौष्टिक भोजन के साथ उनके स्वास्थ्य में सुधार पर जोर देने से बेहतरीन परिणाम मिले हैं। यहां के सरकारी केंद्र, अपने पैरामेडिक्स के माध्यम से स्वस्थ शिशुओं के लिए गर्भवती महिलाओं को चिकित्सा सलाह भी प्रदान कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के ओरछा ब्लॉक में, ‘पशुपालन’ कार्यक्रम और कृषि पर जोर बेहतरीन परिणाम दे रहा है। आंध्र प्रदेश के मद्दीकेरा पूर्व ने ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने और क्षेत्र में अच्छे शैक्षिक बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए बेहतरीन पहचान बनाई है।
जब 2014 में मोदी सरकार बनी तो देश भर में विकास की योजनाओं ने रफ्तार पकड़ी। पीएम जनधन योजना के तहत करोड़ों की संख्या में बैंक अकाउंट खोले गये। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत सरकार ने करोड़ों की संख्या में शौचालय बनवाये। देश का इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत स्थिति की तरफ बढ़ा। किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार की तरफ से हरसंभव प्रयास किए गये। पारंपरिक खेती के साथ नकदी खेती की तरफ किसानों को प्रोत्साहित किया गया। शिक्षा नीति में बदलाव हुआ। इस सब के बीच देश के कुछ हिस्से ऐसे थे जो पिछली सरकारों के उदासीन रवैये की वजह से विकास की दौड़ से एकदम बाहर थे।
ऐसे में आकांक्षी जिला अभियान (एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स प्रोग्राम) के जरिए सरकार एक ऐसा विकास मॉडल तैयार करना चाहती थी जिसके जरिए ना सिर्फ विकास की गति को रफ्तार मिले, बल्कि भारत का समान विकास भी हो। इस अभियान से मेट्रो सिटी ही नहीं, जिला, ब्लॉक और ग्राम पंचायतों तक विकास की समान बयार पहुंची। आकांक्षी जिला अभियान की सफलता को ही आकांक्षी ब्लॉक अभियान का आधार बनाया गया।
वर्ष 2023 में शुरू आकांक्षी ब्लॉक अभियान का सीधा मकसद जमीनी स्तर तक विकास को पहुंचाना और लोगों के जीवन को समाज के सबसे निचले स्तर तक बेहतर बनाना था।
मोदी सरकार ने तब देखा कि इन अविकसित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण के साथ विकास योजनाओं की रोशनी तक नहीं पहुंच पाई थी। ऐसे में मोदी सरकार ने 2014 के बाद इन क्षेत्रों के विकास की गति तेज करने के लिए काम शुरू किया। कई राज्यों में वोकल फॉर लोकल के जरिए जिलों के विशेष उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए सरकारी प्रयास तेज किये गये। इसी का नतीजा रहा कि इन जिलों के विशेष उत्पाद एक्सपोर्ट किए जाने लगे।
आकांक्षी जिला अभियान के तहत अविकसित जिलों को पांच मापदंडों के आधार पर रैंकिंग दी जाने लगी। इसमें स्वास्थ्य और पोषण के लिए 31 डाटा प्वाइंट्स और 30 प्रतिशत का वेटेज दिया गया। शिक्षा के लिए 14 डाटा प्वाइंट और 30 प्रतिशत के वेटेज, खेती और सिंचाई (जल) की व्यवस्था के लिए 12 डाटा प्वाइंट और 20 प्रतिशत के वेटेज, वित्तीय समावेशन और स्किल डेवलपमेंट के लिए 16 प्वाइंट और 10 प्रतिशत के वेटेज के साथ बुनियादी ढांचे के लिए आठ डाटा प्वाइंट और 10 प्रतिशत का वेटेज निर्धारित किया गया। ऐसे में जिलों के विकास को मापने के लिए डेल्टा रैंकिंग सिस्टम की शुरुआत की गई।
वहीं, 2023 में शुरू किए गए आकांक्षी ब्लॉक अभियान के तहत विकास को आंकने के लिए 40 मुख्य इंडिकेटर्स तय किए गए। स्वास्थ्य और पोषण के लिए 14, शिक्षा के लिए 11, स्वास्थ्य एवं संबद्ध सेवाओं के लिए पांच, बुनियादी ढांचे के लिए पांच और सामाजिक विकास के लिए पांच इंडिकेटर्स तय किए गए। इस प्रोग्राम के जरिए देश के जिलों और ब्लॉकों की सेहत में सुधार आया। रोजगार के अवसर बढ़े, उनके रहन-सहन के स्तर में सुधार हुआ। देश के पूर्वोत्तर राज्यों पर ज्यादा फोकस नजर आया जिन पर पहले की सरकारों ने कभी ध्यान नहीं दिया था।
गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी आदिवासी बाहुल्य केवडिया जिले की तस्वीर इसी योजना के तहत बदल चुके थे। केवडिया में बाद में बना ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि कैसे इस जिले की तस्वीर बदली गई। पीएम की तरफ से देश के आकांक्षी जिलों में विकास को गति देने के लिए इसी मॉडल को आधार बनाया गया और इसे देश के 112 जिलों और 500 ब्लॉक पर लागू किया गया। सरकार चाहती तो फंड के जरिए इन क्षेत्रों का विकास कर सकती थी लेकिन सरकार ने इन क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने की भी ठानी थी। सरकार ने जैसे विकलांगों के लिए ‘दिव्यांग’ शब्द का प्रयोग कर लोगों का नजरिया बदल दिया था। वैसे ही इन जिलों को आकांक्षी जिला बताकर इन जिलों के प्रति लोगों की सोच बदलने की कोशिश की गई।
–आईएएनएस
जीकेटी/एकेजे