कोलकाता, 9 जनवरी (आईएएनएस)। पोस्टमॉर्टम के लिए लाए गए शवों को पुलिस की अनुमति के बिना छात्रों को प्रशिक्षण देने के लिए कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में लाया गया। जिसके बाद अस्पताल विवादों में आ गया है।
आरोप है कि प्रैक्टिकल कक्षाओं के लिए शवों का विच्छेदित (डिसेक्शन) किया गया था और इसके बाद उन्हें वापस मुर्दाघर में भेज दिया गया था। पीड़ितों के परिवारों के कुछ सदस्यों के आरोपों के बाद मामला सामने आया। परिजनों का आरोप है कि प्रैक्टिकल कक्षाओं के लिए यह डिसेक्शन उनकी सहमति के बगैर किया गया।
पता चला है कि पांच जनवरी को पांच शव पोस्टमार्टम के लिए मेडिकल कॉलेज व अस्पताल के मुर्दाघर में आए थे। इससे पहले, ईएनटी डिवीजन ने एंडोस्कोपिक साइनस सर्जरी वर्कशॉप में उपयोग के उद्देश्य से पांच शवो के लिए प्राचार्य डॉ संदीप घोष को एक अनुरोध दिया था।
डॉ घोष ने उस अनुरोध को मेडिकल कॉलेज के फोरेंसिक मेडिसिन विभाग को भेज दिया। अब आरोप है कि जो शव पोस्टमार्टम के लिए आए थे उन्हें वर्कशॉप में भेज दिया गया था, जहां पर छात्रों के प्रशिक्षण के लिए उनका डिसेक्शन किया गया था। वर्कशॉप के बाद शवों को फिर से अस्पताल के मुर्दाघर में रख दिया गया, जिसके बाद शवों का पोस्टमार्टम किया गया।
हालांकि, कानून के जानकारों का कहना है कि पोस्टमार्टम के लिए आने वाले शवों का उपयोग अदालत, पुलिस और महत्वपूर्ण रूप से पीड़ितों के परिवार के सदस्यों की पूर्व अनुमति के बिना अन्य प्रैक्टिकल उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता है। ऐसे मामलों में मानदंडों के अनुसार, ऑटोप्सी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए कि पोस्टमॉर्टम से पहले एंडोस्कोपिक सर्जरी की गई थी।
हालांकि, ऐसे दो पीड़ितों के परिजनों ने आरोप लगाया है कि संबंधित अधिकारियों ने इसके लिए उनसे कोई अनुमति नहीं ली। डॉ घोष ने पत्रकारों से कहा कि मामले की आंतरिक जांच की जाएगी।
–आईएएनएस
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