नई दिल्ली, 14 जनवरी (आईएएनएस)। विश्व आर्थिक मंच द्वारा इस सप्ताह के शुरू में ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2023 शीर्षक से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन संकट एक वैश्विक समस्या हो सकती है, लेकिन भारत के लिए जीवन यापन की लागत का संकट भी उभर सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ डिजिटल असमानता और रहने की लागत का संकट भारत के लिए लघु और मध्यम अवधि में प्रमुख जोखिम होने जा रहा है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष इससे अधिक उपयुक्त समय पर नहीं आ सकते थे, क्योंकि उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में भू-धंसाव संकट आ गया है।
अगले दो वर्षों में रहने की लागत का संकट सबसे बड़े जोखिमों में से एक होने जा रहा है।
जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा प्राकृतिक आपदाएं और चरम मौसम की घटनाएं, भू-आर्थिक टकराव, जलवायु परिवर्तन को कम करने में विफलता और बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति की घटनाएं, भारत के लिए कुछ अन्य अल्पकालिक जोखिम हैं।
साथ ही दीर्घकालिक आधार पर, यानी 10 साल बाद, भारत के लिए कुछ प्रमुख जोखिमों में जलवायु परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन को कम करने में विफलता, जैव विविधता हानि, बड़े पैमाने पर अनैच्छिक प्रवास और प्राकृतिक संसाधन संकट शामिल हैं।
रिपोर्ट में कहा गया, जैसे ही 2023 शुरू हुआ है, दुनिया जोखिमों के एक समूह का सामना कर रही है। हमने पुराने जोखिमों- मुद्रास्फीति, रहने की लागत का संकट, व्यापार युद्ध, उभरते बाजारों से पूंजी का बहिर्वाह, व्यापक सामाजिक अशांति, भू-राजनीतिक टकराव और परमाणु युद्ध के काले साए की वापसी देखी है, जो इस पीढ़ी के व्यवसाय में से कुछ नेताओं और सार्वजनिक नीति निर्माताओं ने अनुभव किया है।
इसने नोट किया कि इन जोखिमों को ऋण के अस्थिर स्तरों, कम विकास के एक नए युग, कम वैश्विक निवेश और डी-ग्लोबलाइजेशन, दशकों की प्रगति के बाद मानव विकास में गिरावट, दोहरे उपयोग के तेजी से और अनियंत्रित विकास जैसे पहलुओं से बढ़ाया जाएगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और अंतमुर्खी रुख आर्थिक बाधाओं को बढ़ाएंगे और लघु और दीर्घकालिक दोनों जोखिमों को और बढ़ाएंगे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन उन प्रमुख जोखिमों में से एक है जिसका वैश्विक अर्थव्यवस्था सामना कर रही है और यह ऐसी चुनौती है जिसके लिए मानवता सबसे कम तैयार है।
–आईएएनएस
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