प्रयागराज, 6 अप्रैल (आईएएनएस)। नवरात्रि के पावन अवसर पर देशभर के सिद्धपीठ और शक्तिपीठों में मां दुर्गा के भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है। मां के विभिन्न रूपों के दर्शन के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से मंदिरों का रुख कर रहे हैं। प्रयागराज के अलोपीबाग स्थित मां अलोप शंकरी के दर्शनार्थ पहुंच रहे हैं।
मां अलोप शंकरी देवी शक्तिपीठ की अपनी अनूठी पहचान है। यह शक्तिपीठ एक ऐसा अद्भुत मंदिर है, जहां न तो मां की कोई मूर्ति है और न ही किसी अंग का निशान। यहां मां के प्रतीक के रूप में एक पालने की पूजा की जाती है, जो इसे देश-दुनिया में विख्यात बनाता है।
प्रयागराज के चुंगी क्षेत्र के पास स्थित मां अलोप शंकरी देवी मंदिर में नवरात्रि के दौरान भक्तों का तांता लगा हुआ है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां मां की मूर्ति के बजाय एक पालना स्थापित है, जिसे श्रद्धालु पूरे भाव और श्रद्धा के साथ स्पर्श कर पूजा-अर्चना करते हैं। यह इकलौता शक्तिपीठ है जहां ऐसी परंपरा देखने को मिलती है। मान्यता है कि इस पालने के दर्शन और स्पर्श से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
नवरात्रि के नौ दिनों तक यहां भोर से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जुटने लगती है। देश के कोने-कोने से, खासकर दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में भक्त मां के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। इतना ही नहीं, विदेशों से भी श्रद्धालु इस अनूठे शक्तिपीठ के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने आते हैं। मंदिर परिसर में भक्ति और उल्लास का माहौल देखते ही बनता है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, मां अलोप शंकरी देवी का यह मंदिर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। नवरात्रि के दौरान यहां विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं, जो भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। मंदिर प्रशासन ने भी श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यापक इंतजाम किए हैं, ताकि दर्शन और पूजन में किसी को असुविधा न हो।
तीर्थराज प्रयागराज के संगम क्षेत्र में स्थित श्री अलोप शंकरी शक्तिपीठ सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस पवित्र स्थल के प्रबंधक महंत यमुना पुरी ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस से बातचीत में इस शक्तिपीठ की महिमा और नवरात्रि के महत्व के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा, “यह शक्तिपीठ संगम तट से एक कोस की दूरी पर पश्चिम दिशा में रक्षाभट सेवाय कोण में अवस्थित है, जहां देवी पुराण के अनुसार भगवती सती की करांगुलियां (हाथ की उंगलियां) गिरी थीं।”
महंत यमुना पुरी जी ने बताया, “इस शक्तिपीठ में भगवती की कोई प्रतिमा नहीं है, बल्कि यहां एक प्राचीन वेदी है, जिस पर श्रीयंत्र स्थापित है और उसके ऊपर एक पालना रखा गया है। इसी पालने की पूजा की जाती है, जो भगवती की उपस्थिति का प्रतीक मानी जाती है। यह पालना माता और पुत्र के वात्सल्यपूर्ण संबंध को दर्शाता है, जो सनातन परंपरा में मां और बच्चे के गहरे बंधन का प्रतीक है।”
उन्होंने कहा, “पूरे जगत के लिए माता एक पुत्रवत है। यह शक्तिपीठ दक्षिण प्रयागराज का प्रमुख केंद्र है और दक्षिण भारत के भक्त इसे ‘माध्वीश्वरी’ के नाम से भी जानते हैं, जो अठारह मूल शक्तिपीठों में से एक है।”
यहां भगवती को ‘ललिता लोक शंकरी’ या ‘ललिता लोक देवी’ के रूप में पूजा जाता है। महंत जी ने बताया कि भगवती को माधवेश्वरी भी कहा जाता है। पास ही में भगवान शिव ‘भाव भैरव’ के रूप में विराजमान हैं। उन्होंने कहा, “शक्तिपीठों के साथ भैरव की उपस्थिति अनिवार्य है। दोनों के दर्शन से ही यात्रा सफल मानी जाती है। संगम स्नान के बाद भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।”
महंत यमुना पुरी ने चैत्र नवरात्रि के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह सनातन धर्म का नव संवत्सर भी है। चैत्र प्रतिपदा से नवरात्रि शुरू होती है और शक्ति उपासना के साथ हम नए वर्ष में प्रवेश करते हैं। सृष्टि का प्रथम बीज जौ को बोकर और उसके ऊपर घट स्थापित कर इसकी शुरुआत की जाती है। उन्होंने बताया कि मंदिर प्रबंधन श्रद्धालुओं के लिए हर संभव सुविधा उपलब्ध कराता है। इस बार मुख्यमंत्री के निर्देश पर अखंड कीर्तन का आयोजन भी हो रहा है।
उन्होंने राज्य सरकार और प्रशासन के सहयोग की सराहना की। उन्होंने कहा कि सरकार का सहयोग पुण्य का कार्य है। शक्तिपीठों से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, जो अधिकारियों और सरकार के लिए भी लाभकारी है। प्रशासन और पुलिस भीड़ प्रबंधन और अनुशासित दर्शन में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
महंत जी ने बताया कि इस शक्तिपीठ में पालने के प्रतीक के कारण संतान की कामना करने वाले भक्त मन्नत मांगते हैं। संतान प्राप्ति के बाद यहां बच्चों का मुंडन संस्कार किया जाता है। “सनातन धर्म में सोलह संस्कारों में मुंडन प्रमुख है। नवजात शिशुओं का प्रथम मुंडन यहीं होता है।” इसके अलावा नवविवाहित जोड़े भी सुख-समृद्धि की कामना के लिए यहां आते हैं। यह मूल श्री महाविद्या का स्थल है, जहां भगवती का आशीर्वाद सभी को प्राप्त होता है।
–आईएएनएस
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