नई दिल्ली, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)। भारतीय खेल जगत में ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने अपने-अपने खेलों में संघर्षों को पार करते हुए अपनी पहचान बनाई। सुतीर्था मुखर्जी और मंजीत सिंह भी उन्हीं में से हैं। जहां सुतीर्था ने टेबल टेनिस के सफर की शुरुआत फिटनेस के लिए की थी, वहीं मंजीत सिंह ने रोइंग जैसे कठिन खेल में कदम रखते हुए सीमित संसाधनों के बावजूद देश का गौरव बढ़ाया। दोनों ने अपने-अपने खेलों में कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उनके साहस और प्रतिबद्धता ने उन्हें ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
क्रिकेट को छोड़ दिया जाए तो भारत में अन्य खेलों को खेलने वाले खिलाड़ियों ने या तो शौकिया तौर पर उन खेलों में कदम रखा था या फिर फिटनेस के लिए। 10 अक्टूबर, 1995 को जन्मी सुतीर्था मुखर्जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उन्होंने स्कूल के दिनों में अपना वजन कम करने के लिए टेबल टेनिस की शुरुआत की थी।
सुतीर्था एशियन गेम्स 2023 में अपनी पार्टनर के साथ कांस्य पदक जीत चुकी हैं। लेकिन इस ऐतिहासिक उपलब्धि से पहले उनको कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। पश्चिम बंगाल के एक छोटे से शहर नैहाटी में उनका जन्म हुआ था। टेबल टेनिस को खेल के तौर पर अपनाने के बाद वह जूनियर डिवीजन में अपना पहचान बना रही थीं। आराम से चलती उनके सफर की गाड़ी के लिए साल 2015 एक बड़ा स्पीडब्रेकर साबित हुआ। तब उनको उम्र संबंधी धोखाधड़ी के आरोपों में दो साल के लिए बैन कर दिया गया था।
मुश्किल समय में मां, कोच, सीनियर खिलाड़ियों के अलावा सुतीर्था के हिम्मत और हौसलों ने उनका बड़ा साथ दिया। उन्होंने प्रैक्टिस नहीं छोड़ी और प्रतिबंध हटने के बाद 2017 में सीनियर नेशनल टेबल टेनिस चैंपियनशिप में खिताब जीतकर अपने गम को हमेशा के लिए मिटा दिया। अगले ही साल उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय टीम के साथ गोल्ड मेडल जीता। दो साल बाद उन्होंने दूसरा राष्ट्रीय खिताब भी जीत लिया था।
इसके बाद उनके करियर की दो बड़ी चर्चित जीत आई। उन्होंने कोविड से ठीक पहले आईटीटीएफ वर्ल्ड टीम क्वालिफिकेशन में बर्नाडेट स्ज़ोक्स को हराया और जब सुतीर्था ने एशियन क्वालीफायर में स्टार खिलाड़ी मनिका बत्रा को हराया तो वह सुर्खियों में आ गई थीं।
भारतीय रोवर मंजीत सिंह का जन्मदिन भी 10 अक्टूबर के दिन, 1988 में हुआ था। मंजीत दो बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उन्होंने बीजिंग ओलंपिक 2008 और लंदन ओलंपिक 2012 में भारत का प्रतिनिधित्व लाइटवेट डबल्स स्कल्स में किया था। लंदन में जहां वह 19वें स्थान पर रहे थे तो बीजिंग में उनको 18वां स्थान मिला था।
रोइंग ऐसा खेल है जहां भारत अभी ओलंपिक मेडल हासिल करने से बहुत पीछे है और ओलंपिक में प्रतिनिधित्व हासिल करना भी उल्लेखनीय उपलब्धि है। साल 2004 में रोइंग ट्रेनिंग सेंटर में उन्होंने अभ्यास शुरू किया था। इस तरह से उनकी ट्रेनिंग 16 से अधिक की उम्र में शुरू हुई थी। 2004 में वह रोइंग में आगे जाने के लिए चंडीगढ़ शिफ्ट कर चुके थे। इसके बाद उन्होंने नेशनल में जूनियर लेवल पर सिल्वर मेडल जीता। साल 2006 में सिंगापुर में एशियन जूनियर रोइंग चैंपियनशिप प्रतियोगिता में एक टीम के तौर पर सिल्वर मेडल मिला था। यह वह उपलब्धि थी जिसने उन्हें भारतीय की सीनियर टीम में जगह दिला दी थी।
2006 में, मनजीत ने दक्षिण एशियाई खेलों में चार सदस्यीय टीम के साथ स्वर्ण पदक जीता। 2007 में, मनजीत उस भारतीय टीम का हिस्सा थे, जिसने एशियाई चैंपियनशिप में दो पदक जीते। इसके बाद मनजीत ने देवेंद्र कुमार के साथ 2008 के ओलंपिक खेलों के लिए कोटा भी हासिल किया था। उन्होंने 2010 एशियन गेम्स में भी दो मेडल अपने नाम किए।
पंजाब के फिरोजपुर में सीमा के पास पंजग्रेन गांव के निवासी मंजीत को साल 2020 में रोइंग में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए खेलों में लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए ध्यान चंद अवॉर्ड दिया गया था। वह इस पुरस्कार को हासिल करने वाले देश के सबसे युवा खिलाड़ियों में एक हैं। पंजाब अधिकतर हॉकी खिलाड़ियों के जाना जाता है। इस पुरस्कार को हासिल करने के बाद मंजीत ने कहा था कि अगर इससे पंजाब में रोइंग के विकास में सहायता मिलेगी तो उनकी बड़ी खुशी होगी।
–आईएएनएस
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