नई दिल्ली, 9 जनवरी (आईएएनएस)। एक शोध में यह बात सामने आई है कि फेफड़ों का ट्रांसप्लांट कराने वाली महिलाओं की पांच साल तक जीवित रहने की संभावना पुरुषों की तुलना में अधिक होती है।
हालांकि, ईआरजे ओपन रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार महिलाओं में फेफड़े के प्रत्यारोपण की संभावना कम होती है और उन्हें प्रतीक्षा सूची में औसतन छह सप्ताह अधिक समय बिताना पड़ता है।
शोधकर्ता इस असमानता को दूर करने के लिए रेगुलेशन एंड क्लिनिकल गाइडलाइन्स में बदलाव को प्रोत्साहित करते हैं।
फ्रांस के नैनटेस यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. एड्रियन टिसोट ने कहा, “यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्रत्यारोपण के लिए प्रतीक्षा सूची में शामिल लोगों का जीवन स्तर बहुत खराब होता है, कभी-कभी वे अपने घर से बाहर निकलने के लिए भी स्वस्थ नहीं होते हैं और उनकी मृत्यु का जोखिम बहुत अधिक होता है।”
आखिरी दिनों में रेस्पिरेटरी फेलियर वाले लोगों के लिए फेफड़ों का ट्रांसप्लांट ही एकमात्र उपचार है और प्रतीक्षा सूची में शामिल रोगियों की मृत्यु का जोखिम बहुत अधिक होता है। ट्रांसप्लांट से फेफड़ों की सामान्य कार्यप्रणाली बहाल हो सकती है, जिससे रोगियों का जीवन बेहतर हो सकता है।
इस अध्ययन में 1,710 प्रतिभागियों को शामिल किया गया, जिसमें 802 महिलाएं और 908 पुरुष शामिल है।
रोगियों के ट्रांसप्लांट के बाद लगभग छह साल तक परीक्षण किया गया। मरीजों को प्रभावित करने वाली मुख्य अंतर्निहित बीमारियां क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, सिस्टिक फाइब्रोसिस और इंटरस्टीशियल लंग डिजीज थीं।
डॉ. टिसॉट के शोध में पाया गया कि महिलाओं को फेफड़े के ट्रांसप्लांट के लिए औसतन 115 दिन इंतजार करना पड़ता है, जबकि पुरुषों को 73 दिन तक इंतजार करना पड़ा।”
ट्रांसप्लांट बाद, महिलाओं के लिए जीवित रहने की दर पुरुषों की तुलना में अधिक थी, जिसमें 70 प्रतिशत महिला प्राप्तकर्ता ट्रांसप्लांट के पांच साल बाद भी जीवित थीं, जबकि पुरुषों में यह दर 61 प्रतिशत थी।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि अधिकांश महिलाओं को जेंडर और हाइट के अनुसार डोनर मिला।
शोधकर्ताओं के अनुसार, चिकित्सकों, रोगियों और नीति निर्माताओं को इस लिंग अंतर को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि यह उचित कदम उठाने के लिए आवश्यक है।
–आईएएनएस
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