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Home ताज़ा समाचार

फेल होने के डर से 2021 में 13,089 छात्रों ने की आत्महत्या

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December 18, 2022
in ताज़ा समाचार
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फेल होने के डर से 2021 में 13,089 छात्रों ने की आत्महत्या
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नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के कोचिंग हब कोटा (राजस्थान) में मेडिसिन या इंजीनियरिंग में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों द्वारा आत्महत्या के हालिया मामलों ने भले ही कड़ी प्रतिस्पर्धा और अंतहीन दबाव पर बहस छेड़ दी हो, लेकिन ये इक्का-दुक्का घटनाएं नहीं हैं। देश भर से ऐसे कई उदाहरण हैं जहां युवाओं ने अकादमिक करियर में उत्कृष्टता हासिल करने की इच्छा रखते हुए विभिन्न कारणों से हार मान ली और अपनी जीवन समाप्त कर ली।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आत्महत्या पर केंद्रीकृत डेटा से पता चला है कि हाल के वर्षों में छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है।

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छात्रों द्वारा आत्महत्या के 13,089 मामलों के साथ नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 की तुलना में 2021 में इसकी संख्या में लगभग 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उनमें से लगभग आधे पांच राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा से हैं।

आंकड़ों के अनुसार छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं में से 14.0 प्रतिशत (1,834) महाराष्ट्र में, मध्य प्रदेश में 10.0 प्रतिशत (1,308), तमिलनाडु में 9.5 प्रतिशत (1,246) और कर्नाटक में 6.5 (855)प्रतिशत दर्ज की गई।

हालांकि रिपोर्ट में आत्महत्या के पीछे किसी विशेष कारण का जिक्र नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि परीक्षा में असफलता एक कारण है।

8 सितंबर को 22 वर्षीय मेडिकल आकांक्षी छात्रा ने एक टावर की उन्नीसवीं मंजिल से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। क्योंकि वह राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा परीक्षा को पास नहीं कर पाई थी। यह घटना ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 151 में जेपी अमन सोसाइटी की है। रिपोर्ट के अनुसार प्रारंभिक जांच से पता चला है कि लड़की अपने नीट के परिणाम से नाखुश थी।

इसी तरह की एक घटना में चेन्नई की एक 19 वर्षीय लड़की ने कथित तौर पर तमिलनाडु के अंबत्तूर में नीट परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली। रिजल्ट घोषित होने के कुछ घंटे बाद ही छात्रा ने यह कदम उठाया।

30 जून को नीट में फेल होने के डर से एक मेडिकल उम्मीदवार ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। चूलाइमेडु (तमिलनाडु) की 19 वर्षीय युवती मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी।

इसी तरह 30 अप्रैल को, मध्य प्रदेश के बालाघाट और टीकमगढ़ जिलों में 17 वर्षीय दो लड़कियों ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार सरकार और यूजीसी ने छात्रों के उत्पीड़न और भेदभाव की घटनाओं की जांच के लिए कई पहल की है। छात्रों के हितों की रक्षा के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (छात्रों की शिकायतों का निवारण) विनियम, 2019 तैयार किया गया है।

यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने पर यूजीसी विनियम, 2009 को भी अधिसूचित किया है और विनियमों के सख्त अनुपालन के लिए परिपत्र जारी किया है।

इसके अलावा मंत्रालय ने अकादमिक तनाव को कम करने के लिए छात्रों के लिए सहकर्मी सहायता सीखने, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की शुरुआत जैसे कई कदम उठाए हैं। सरकार की मनोदर्पण पहल, छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को कोविड प्रकोप और उसके बाद के दौरान मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई है।

इसके अलावा संस्थाएं हैप्पीनेस और वेलनेस पर कार्यशालाएं/सेमिनार, योग पर नियमित सत्र, इंडक्शन प्रोग्राम, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित पाठ्येतर गतिविधियां और समग्र व्यक्तित्व विकास और छात्रों को तनाव मुक्त करने के लिए छात्र परामर्शदाताओं की नियुक्ति करती हैं।

इसके अलावा छात्रों, वार्डन और देखभाल करने वालों को छात्रों में अवसाद के लक्षणों को नोटिस करने के लिए संवेदनशील बनाया जाता है ताकि समय पर नैदानिक परामर्श प्रदान किया जा सके।

–आईएएनएस

सीबीटी

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नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के कोचिंग हब कोटा (राजस्थान) में मेडिसिन या इंजीनियरिंग में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों द्वारा आत्महत्या के हालिया मामलों ने भले ही कड़ी प्रतिस्पर्धा और अंतहीन दबाव पर बहस छेड़ दी हो, लेकिन ये इक्का-दुक्का घटनाएं नहीं हैं। देश भर से ऐसे कई उदाहरण हैं जहां युवाओं ने अकादमिक करियर में उत्कृष्टता हासिल करने की इच्छा रखते हुए विभिन्न कारणों से हार मान ली और अपनी जीवन समाप्त कर ली।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आत्महत्या पर केंद्रीकृत डेटा से पता चला है कि हाल के वर्षों में छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है।

छात्रों द्वारा आत्महत्या के 13,089 मामलों के साथ नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 की तुलना में 2021 में इसकी संख्या में लगभग 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उनमें से लगभग आधे पांच राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा से हैं।

आंकड़ों के अनुसार छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं में से 14.0 प्रतिशत (1,834) महाराष्ट्र में, मध्य प्रदेश में 10.0 प्रतिशत (1,308), तमिलनाडु में 9.5 प्रतिशत (1,246) और कर्नाटक में 6.5 (855)प्रतिशत दर्ज की गई।

हालांकि रिपोर्ट में आत्महत्या के पीछे किसी विशेष कारण का जिक्र नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि परीक्षा में असफलता एक कारण है।

8 सितंबर को 22 वर्षीय मेडिकल आकांक्षी छात्रा ने एक टावर की उन्नीसवीं मंजिल से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। क्योंकि वह राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा परीक्षा को पास नहीं कर पाई थी। यह घटना ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 151 में जेपी अमन सोसाइटी की है। रिपोर्ट के अनुसार प्रारंभिक जांच से पता चला है कि लड़की अपने नीट के परिणाम से नाखुश थी।

इसी तरह की एक घटना में चेन्नई की एक 19 वर्षीय लड़की ने कथित तौर पर तमिलनाडु के अंबत्तूर में नीट परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली। रिजल्ट घोषित होने के कुछ घंटे बाद ही छात्रा ने यह कदम उठाया।

30 जून को नीट में फेल होने के डर से एक मेडिकल उम्मीदवार ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। चूलाइमेडु (तमिलनाडु) की 19 वर्षीय युवती मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी।

इसी तरह 30 अप्रैल को, मध्य प्रदेश के बालाघाट और टीकमगढ़ जिलों में 17 वर्षीय दो लड़कियों ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार सरकार और यूजीसी ने छात्रों के उत्पीड़न और भेदभाव की घटनाओं की जांच के लिए कई पहल की है। छात्रों के हितों की रक्षा के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (छात्रों की शिकायतों का निवारण) विनियम, 2019 तैयार किया गया है।

यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने पर यूजीसी विनियम, 2009 को भी अधिसूचित किया है और विनियमों के सख्त अनुपालन के लिए परिपत्र जारी किया है।

इसके अलावा मंत्रालय ने अकादमिक तनाव को कम करने के लिए छात्रों के लिए सहकर्मी सहायता सीखने, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की शुरुआत जैसे कई कदम उठाए हैं। सरकार की मनोदर्पण पहल, छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को कोविड प्रकोप और उसके बाद के दौरान मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई है।

इसके अलावा संस्थाएं हैप्पीनेस और वेलनेस पर कार्यशालाएं/सेमिनार, योग पर नियमित सत्र, इंडक्शन प्रोग्राम, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित पाठ्येतर गतिविधियां और समग्र व्यक्तित्व विकास और छात्रों को तनाव मुक्त करने के लिए छात्र परामर्शदाताओं की नियुक्ति करती हैं।

इसके अलावा छात्रों, वार्डन और देखभाल करने वालों को छात्रों में अवसाद के लक्षणों को नोटिस करने के लिए संवेदनशील बनाया जाता है ताकि समय पर नैदानिक परामर्श प्रदान किया जा सके।

–आईएएनएस

सीबीटी

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नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के कोचिंग हब कोटा (राजस्थान) में मेडिसिन या इंजीनियरिंग में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों द्वारा आत्महत्या के हालिया मामलों ने भले ही कड़ी प्रतिस्पर्धा और अंतहीन दबाव पर बहस छेड़ दी हो, लेकिन ये इक्का-दुक्का घटनाएं नहीं हैं। देश भर से ऐसे कई उदाहरण हैं जहां युवाओं ने अकादमिक करियर में उत्कृष्टता हासिल करने की इच्छा रखते हुए विभिन्न कारणों से हार मान ली और अपनी जीवन समाप्त कर ली।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आत्महत्या पर केंद्रीकृत डेटा से पता चला है कि हाल के वर्षों में छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है।

छात्रों द्वारा आत्महत्या के 13,089 मामलों के साथ नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 की तुलना में 2021 में इसकी संख्या में लगभग 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उनमें से लगभग आधे पांच राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा से हैं।

आंकड़ों के अनुसार छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं में से 14.0 प्रतिशत (1,834) महाराष्ट्र में, मध्य प्रदेश में 10.0 प्रतिशत (1,308), तमिलनाडु में 9.5 प्रतिशत (1,246) और कर्नाटक में 6.5 (855)प्रतिशत दर्ज की गई।

हालांकि रिपोर्ट में आत्महत्या के पीछे किसी विशेष कारण का जिक्र नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि परीक्षा में असफलता एक कारण है।

8 सितंबर को 22 वर्षीय मेडिकल आकांक्षी छात्रा ने एक टावर की उन्नीसवीं मंजिल से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। क्योंकि वह राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा परीक्षा को पास नहीं कर पाई थी। यह घटना ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 151 में जेपी अमन सोसाइटी की है। रिपोर्ट के अनुसार प्रारंभिक जांच से पता चला है कि लड़की अपने नीट के परिणाम से नाखुश थी।

इसी तरह की एक घटना में चेन्नई की एक 19 वर्षीय लड़की ने कथित तौर पर तमिलनाडु के अंबत्तूर में नीट परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली। रिजल्ट घोषित होने के कुछ घंटे बाद ही छात्रा ने यह कदम उठाया।

30 जून को नीट में फेल होने के डर से एक मेडिकल उम्मीदवार ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। चूलाइमेडु (तमिलनाडु) की 19 वर्षीय युवती मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी।

इसी तरह 30 अप्रैल को, मध्य प्रदेश के बालाघाट और टीकमगढ़ जिलों में 17 वर्षीय दो लड़कियों ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार सरकार और यूजीसी ने छात्रों के उत्पीड़न और भेदभाव की घटनाओं की जांच के लिए कई पहल की है। छात्रों के हितों की रक्षा के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (छात्रों की शिकायतों का निवारण) विनियम, 2019 तैयार किया गया है।

यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने पर यूजीसी विनियम, 2009 को भी अधिसूचित किया है और विनियमों के सख्त अनुपालन के लिए परिपत्र जारी किया है।

इसके अलावा मंत्रालय ने अकादमिक तनाव को कम करने के लिए छात्रों के लिए सहकर्मी सहायता सीखने, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की शुरुआत जैसे कई कदम उठाए हैं। सरकार की मनोदर्पण पहल, छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को कोविड प्रकोप और उसके बाद के दौरान मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई है।

इसके अलावा संस्थाएं हैप्पीनेस और वेलनेस पर कार्यशालाएं/सेमिनार, योग पर नियमित सत्र, इंडक्शन प्रोग्राम, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित पाठ्येतर गतिविधियां और समग्र व्यक्तित्व विकास और छात्रों को तनाव मुक्त करने के लिए छात्र परामर्शदाताओं की नियुक्ति करती हैं।

इसके अलावा छात्रों, वार्डन और देखभाल करने वालों को छात्रों में अवसाद के लक्षणों को नोटिस करने के लिए संवेदनशील बनाया जाता है ताकि समय पर नैदानिक परामर्श प्रदान किया जा सके।

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नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के कोचिंग हब कोटा (राजस्थान) में मेडिसिन या इंजीनियरिंग में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों द्वारा आत्महत्या के हालिया मामलों ने भले ही कड़ी प्रतिस्पर्धा और अंतहीन दबाव पर बहस छेड़ दी हो, लेकिन ये इक्का-दुक्का घटनाएं नहीं हैं। देश भर से ऐसे कई उदाहरण हैं जहां युवाओं ने अकादमिक करियर में उत्कृष्टता हासिल करने की इच्छा रखते हुए विभिन्न कारणों से हार मान ली और अपनी जीवन समाप्त कर ली।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आत्महत्या पर केंद्रीकृत डेटा से पता चला है कि हाल के वर्षों में छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है।

छात्रों द्वारा आत्महत्या के 13,089 मामलों के साथ नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 की तुलना में 2021 में इसकी संख्या में लगभग 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उनमें से लगभग आधे पांच राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा से हैं।

आंकड़ों के अनुसार छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं में से 14.0 प्रतिशत (1,834) महाराष्ट्र में, मध्य प्रदेश में 10.0 प्रतिशत (1,308), तमिलनाडु में 9.5 प्रतिशत (1,246) और कर्नाटक में 6.5 (855)प्रतिशत दर्ज की गई।

हालांकि रिपोर्ट में आत्महत्या के पीछे किसी विशेष कारण का जिक्र नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि परीक्षा में असफलता एक कारण है।

8 सितंबर को 22 वर्षीय मेडिकल आकांक्षी छात्रा ने एक टावर की उन्नीसवीं मंजिल से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। क्योंकि वह राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा परीक्षा को पास नहीं कर पाई थी। यह घटना ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 151 में जेपी अमन सोसाइटी की है। रिपोर्ट के अनुसार प्रारंभिक जांच से पता चला है कि लड़की अपने नीट के परिणाम से नाखुश थी।

इसी तरह की एक घटना में चेन्नई की एक 19 वर्षीय लड़की ने कथित तौर पर तमिलनाडु के अंबत्तूर में नीट परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली। रिजल्ट घोषित होने के कुछ घंटे बाद ही छात्रा ने यह कदम उठाया।

30 जून को नीट में फेल होने के डर से एक मेडिकल उम्मीदवार ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। चूलाइमेडु (तमिलनाडु) की 19 वर्षीय युवती मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी।

इसी तरह 30 अप्रैल को, मध्य प्रदेश के बालाघाट और टीकमगढ़ जिलों में 17 वर्षीय दो लड़कियों ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार सरकार और यूजीसी ने छात्रों के उत्पीड़न और भेदभाव की घटनाओं की जांच के लिए कई पहल की है। छात्रों के हितों की रक्षा के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (छात्रों की शिकायतों का निवारण) विनियम, 2019 तैयार किया गया है।

यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने पर यूजीसी विनियम, 2009 को भी अधिसूचित किया है और विनियमों के सख्त अनुपालन के लिए परिपत्र जारी किया है।

इसके अलावा मंत्रालय ने अकादमिक तनाव को कम करने के लिए छात्रों के लिए सहकर्मी सहायता सीखने, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की शुरुआत जैसे कई कदम उठाए हैं। सरकार की मनोदर्पण पहल, छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को कोविड प्रकोप और उसके बाद के दौरान मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई है।

इसके अलावा संस्थाएं हैप्पीनेस और वेलनेस पर कार्यशालाएं/सेमिनार, योग पर नियमित सत्र, इंडक्शन प्रोग्राम, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित पाठ्येतर गतिविधियां और समग्र व्यक्तित्व विकास और छात्रों को तनाव मुक्त करने के लिए छात्र परामर्शदाताओं की नियुक्ति करती हैं।

इसके अलावा छात्रों, वार्डन और देखभाल करने वालों को छात्रों में अवसाद के लक्षणों को नोटिस करने के लिए संवेदनशील बनाया जाता है ताकि समय पर नैदानिक परामर्श प्रदान किया जा सके।

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नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के कोचिंग हब कोटा (राजस्थान) में मेडिसिन या इंजीनियरिंग में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों द्वारा आत्महत्या के हालिया मामलों ने भले ही कड़ी प्रतिस्पर्धा और अंतहीन दबाव पर बहस छेड़ दी हो, लेकिन ये इक्का-दुक्का घटनाएं नहीं हैं। देश भर से ऐसे कई उदाहरण हैं जहां युवाओं ने अकादमिक करियर में उत्कृष्टता हासिल करने की इच्छा रखते हुए विभिन्न कारणों से हार मान ली और अपनी जीवन समाप्त कर ली।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आत्महत्या पर केंद्रीकृत डेटा से पता चला है कि हाल के वर्षों में छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है।

छात्रों द्वारा आत्महत्या के 13,089 मामलों के साथ नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 की तुलना में 2021 में इसकी संख्या में लगभग 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उनमें से लगभग आधे पांच राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा से हैं।

आंकड़ों के अनुसार छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं में से 14.0 प्रतिशत (1,834) महाराष्ट्र में, मध्य प्रदेश में 10.0 प्रतिशत (1,308), तमिलनाडु में 9.5 प्रतिशत (1,246) और कर्नाटक में 6.5 (855)प्रतिशत दर्ज की गई।

हालांकि रिपोर्ट में आत्महत्या के पीछे किसी विशेष कारण का जिक्र नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि परीक्षा में असफलता एक कारण है।

8 सितंबर को 22 वर्षीय मेडिकल आकांक्षी छात्रा ने एक टावर की उन्नीसवीं मंजिल से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। क्योंकि वह राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा परीक्षा को पास नहीं कर पाई थी। यह घटना ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 151 में जेपी अमन सोसाइटी की है। रिपोर्ट के अनुसार प्रारंभिक जांच से पता चला है कि लड़की अपने नीट के परिणाम से नाखुश थी।

इसी तरह की एक घटना में चेन्नई की एक 19 वर्षीय लड़की ने कथित तौर पर तमिलनाडु के अंबत्तूर में नीट परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली। रिजल्ट घोषित होने के कुछ घंटे बाद ही छात्रा ने यह कदम उठाया।

30 जून को नीट में फेल होने के डर से एक मेडिकल उम्मीदवार ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। चूलाइमेडु (तमिलनाडु) की 19 वर्षीय युवती मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी।

इसी तरह 30 अप्रैल को, मध्य प्रदेश के बालाघाट और टीकमगढ़ जिलों में 17 वर्षीय दो लड़कियों ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार सरकार और यूजीसी ने छात्रों के उत्पीड़न और भेदभाव की घटनाओं की जांच के लिए कई पहल की है। छात्रों के हितों की रक्षा के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (छात्रों की शिकायतों का निवारण) विनियम, 2019 तैयार किया गया है।

यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने पर यूजीसी विनियम, 2009 को भी अधिसूचित किया है और विनियमों के सख्त अनुपालन के लिए परिपत्र जारी किया है।

इसके अलावा मंत्रालय ने अकादमिक तनाव को कम करने के लिए छात्रों के लिए सहकर्मी सहायता सीखने, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की शुरुआत जैसे कई कदम उठाए हैं। सरकार की मनोदर्पण पहल, छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को कोविड प्रकोप और उसके बाद के दौरान मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई है।

इसके अलावा संस्थाएं हैप्पीनेस और वेलनेस पर कार्यशालाएं/सेमिनार, योग पर नियमित सत्र, इंडक्शन प्रोग्राम, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित पाठ्येतर गतिविधियां और समग्र व्यक्तित्व विकास और छात्रों को तनाव मुक्त करने के लिए छात्र परामर्शदाताओं की नियुक्ति करती हैं।

इसके अलावा छात्रों, वार्डन और देखभाल करने वालों को छात्रों में अवसाद के लक्षणों को नोटिस करने के लिए संवेदनशील बनाया जाता है ताकि समय पर नैदानिक परामर्श प्रदान किया जा सके।

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नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के कोचिंग हब कोटा (राजस्थान) में मेडिसिन या इंजीनियरिंग में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों द्वारा आत्महत्या के हालिया मामलों ने भले ही कड़ी प्रतिस्पर्धा और अंतहीन दबाव पर बहस छेड़ दी हो, लेकिन ये इक्का-दुक्का घटनाएं नहीं हैं। देश भर से ऐसे कई उदाहरण हैं जहां युवाओं ने अकादमिक करियर में उत्कृष्टता हासिल करने की इच्छा रखते हुए विभिन्न कारणों से हार मान ली और अपनी जीवन समाप्त कर ली।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आत्महत्या पर केंद्रीकृत डेटा से पता चला है कि हाल के वर्षों में छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है।

छात्रों द्वारा आत्महत्या के 13,089 मामलों के साथ नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 की तुलना में 2021 में इसकी संख्या में लगभग 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उनमें से लगभग आधे पांच राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा से हैं।

आंकड़ों के अनुसार छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं में से 14.0 प्रतिशत (1,834) महाराष्ट्र में, मध्य प्रदेश में 10.0 प्रतिशत (1,308), तमिलनाडु में 9.5 प्रतिशत (1,246) और कर्नाटक में 6.5 (855)प्रतिशत दर्ज की गई।

हालांकि रिपोर्ट में आत्महत्या के पीछे किसी विशेष कारण का जिक्र नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि परीक्षा में असफलता एक कारण है।

8 सितंबर को 22 वर्षीय मेडिकल आकांक्षी छात्रा ने एक टावर की उन्नीसवीं मंजिल से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। क्योंकि वह राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा परीक्षा को पास नहीं कर पाई थी। यह घटना ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 151 में जेपी अमन सोसाइटी की है। रिपोर्ट के अनुसार प्रारंभिक जांच से पता चला है कि लड़की अपने नीट के परिणाम से नाखुश थी।

इसी तरह की एक घटना में चेन्नई की एक 19 वर्षीय लड़की ने कथित तौर पर तमिलनाडु के अंबत्तूर में नीट परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली। रिजल्ट घोषित होने के कुछ घंटे बाद ही छात्रा ने यह कदम उठाया।

30 जून को नीट में फेल होने के डर से एक मेडिकल उम्मीदवार ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। चूलाइमेडु (तमिलनाडु) की 19 वर्षीय युवती मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी।

इसी तरह 30 अप्रैल को, मध्य प्रदेश के बालाघाट और टीकमगढ़ जिलों में 17 वर्षीय दो लड़कियों ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार सरकार और यूजीसी ने छात्रों के उत्पीड़न और भेदभाव की घटनाओं की जांच के लिए कई पहल की है। छात्रों के हितों की रक्षा के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (छात्रों की शिकायतों का निवारण) विनियम, 2019 तैयार किया गया है।

यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने पर यूजीसी विनियम, 2009 को भी अधिसूचित किया है और विनियमों के सख्त अनुपालन के लिए परिपत्र जारी किया है।

इसके अलावा मंत्रालय ने अकादमिक तनाव को कम करने के लिए छात्रों के लिए सहकर्मी सहायता सीखने, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की शुरुआत जैसे कई कदम उठाए हैं। सरकार की मनोदर्पण पहल, छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को कोविड प्रकोप और उसके बाद के दौरान मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई है।

इसके अलावा संस्थाएं हैप्पीनेस और वेलनेस पर कार्यशालाएं/सेमिनार, योग पर नियमित सत्र, इंडक्शन प्रोग्राम, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित पाठ्येतर गतिविधियां और समग्र व्यक्तित्व विकास और छात्रों को तनाव मुक्त करने के लिए छात्र परामर्शदाताओं की नियुक्ति करती हैं।

इसके अलावा छात्रों, वार्डन और देखभाल करने वालों को छात्रों में अवसाद के लक्षणों को नोटिस करने के लिए संवेदनशील बनाया जाता है ताकि समय पर नैदानिक परामर्श प्रदान किया जा सके।

–आईएएनएस

सीबीटी

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नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के कोचिंग हब कोटा (राजस्थान) में मेडिसिन या इंजीनियरिंग में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों द्वारा आत्महत्या के हालिया मामलों ने भले ही कड़ी प्रतिस्पर्धा और अंतहीन दबाव पर बहस छेड़ दी हो, लेकिन ये इक्का-दुक्का घटनाएं नहीं हैं। देश भर से ऐसे कई उदाहरण हैं जहां युवाओं ने अकादमिक करियर में उत्कृष्टता हासिल करने की इच्छा रखते हुए विभिन्न कारणों से हार मान ली और अपनी जीवन समाप्त कर ली।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आत्महत्या पर केंद्रीकृत डेटा से पता चला है कि हाल के वर्षों में छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है।

छात्रों द्वारा आत्महत्या के 13,089 मामलों के साथ नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 की तुलना में 2021 में इसकी संख्या में लगभग 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उनमें से लगभग आधे पांच राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा से हैं।

आंकड़ों के अनुसार छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं में से 14.0 प्रतिशत (1,834) महाराष्ट्र में, मध्य प्रदेश में 10.0 प्रतिशत (1,308), तमिलनाडु में 9.5 प्रतिशत (1,246) और कर्नाटक में 6.5 (855)प्रतिशत दर्ज की गई।

हालांकि रिपोर्ट में आत्महत्या के पीछे किसी विशेष कारण का जिक्र नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि परीक्षा में असफलता एक कारण है।

8 सितंबर को 22 वर्षीय मेडिकल आकांक्षी छात्रा ने एक टावर की उन्नीसवीं मंजिल से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। क्योंकि वह राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा परीक्षा को पास नहीं कर पाई थी। यह घटना ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 151 में जेपी अमन सोसाइटी की है। रिपोर्ट के अनुसार प्रारंभिक जांच से पता चला है कि लड़की अपने नीट के परिणाम से नाखुश थी।

इसी तरह की एक घटना में चेन्नई की एक 19 वर्षीय लड़की ने कथित तौर पर तमिलनाडु के अंबत्तूर में नीट परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली। रिजल्ट घोषित होने के कुछ घंटे बाद ही छात्रा ने यह कदम उठाया।

30 जून को नीट में फेल होने के डर से एक मेडिकल उम्मीदवार ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। चूलाइमेडु (तमिलनाडु) की 19 वर्षीय युवती मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी।

इसी तरह 30 अप्रैल को, मध्य प्रदेश के बालाघाट और टीकमगढ़ जिलों में 17 वर्षीय दो लड़कियों ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार सरकार और यूजीसी ने छात्रों के उत्पीड़न और भेदभाव की घटनाओं की जांच के लिए कई पहल की है। छात्रों के हितों की रक्षा के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (छात्रों की शिकायतों का निवारण) विनियम, 2019 तैयार किया गया है।

यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने पर यूजीसी विनियम, 2009 को भी अधिसूचित किया है और विनियमों के सख्त अनुपालन के लिए परिपत्र जारी किया है।

इसके अलावा मंत्रालय ने अकादमिक तनाव को कम करने के लिए छात्रों के लिए सहकर्मी सहायता सीखने, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की शुरुआत जैसे कई कदम उठाए हैं। सरकार की मनोदर्पण पहल, छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को कोविड प्रकोप और उसके बाद के दौरान मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई है।

इसके अलावा संस्थाएं हैप्पीनेस और वेलनेस पर कार्यशालाएं/सेमिनार, योग पर नियमित सत्र, इंडक्शन प्रोग्राम, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित पाठ्येतर गतिविधियां और समग्र व्यक्तित्व विकास और छात्रों को तनाव मुक्त करने के लिए छात्र परामर्शदाताओं की नियुक्ति करती हैं।

इसके अलावा छात्रों, वार्डन और देखभाल करने वालों को छात्रों में अवसाद के लक्षणों को नोटिस करने के लिए संवेदनशील बनाया जाता है ताकि समय पर नैदानिक परामर्श प्रदान किया जा सके।

–आईएएनएस

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नई दिल्ली, 18 दिसंबर (आईएएनएस)। देश के कोचिंग हब कोटा (राजस्थान) में मेडिसिन या इंजीनियरिंग में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों द्वारा आत्महत्या के हालिया मामलों ने भले ही कड़ी प्रतिस्पर्धा और अंतहीन दबाव पर बहस छेड़ दी हो, लेकिन ये इक्का-दुक्का घटनाएं नहीं हैं। देश भर से ऐसे कई उदाहरण हैं जहां युवाओं ने अकादमिक करियर में उत्कृष्टता हासिल करने की इच्छा रखते हुए विभिन्न कारणों से हार मान ली और अपनी जीवन समाप्त कर ली।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आत्महत्या पर केंद्रीकृत डेटा से पता चला है कि हाल के वर्षों में छात्रों की आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है।

छात्रों द्वारा आत्महत्या के 13,089 मामलों के साथ नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2020 की तुलना में 2021 में इसकी संख्या में लगभग 4.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उनमें से लगभग आधे पांच राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और ओडिशा से हैं।

आंकड़ों के अनुसार छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं में से 14.0 प्रतिशत (1,834) महाराष्ट्र में, मध्य प्रदेश में 10.0 प्रतिशत (1,308), तमिलनाडु में 9.5 प्रतिशत (1,246) और कर्नाटक में 6.5 (855)प्रतिशत दर्ज की गई।

हालांकि रिपोर्ट में आत्महत्या के पीछे किसी विशेष कारण का जिक्र नहीं है, लेकिन इसमें कहा गया है कि परीक्षा में असफलता एक कारण है।

8 सितंबर को 22 वर्षीय मेडिकल आकांक्षी छात्रा ने एक टावर की उन्नीसवीं मंजिल से कूदकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। क्योंकि वह राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा परीक्षा को पास नहीं कर पाई थी। यह घटना ग्रेटर नोएडा के सेक्टर 151 में जेपी अमन सोसाइटी की है। रिपोर्ट के अनुसार प्रारंभिक जांच से पता चला है कि लड़की अपने नीट के परिणाम से नाखुश थी।

इसी तरह की एक घटना में चेन्नई की एक 19 वर्षीय लड़की ने कथित तौर पर तमिलनाडु के अंबत्तूर में नीट परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली। रिजल्ट घोषित होने के कुछ घंटे बाद ही छात्रा ने यह कदम उठाया।

30 जून को नीट में फेल होने के डर से एक मेडिकल उम्मीदवार ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। चूलाइमेडु (तमिलनाडु) की 19 वर्षीय युवती मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी।

इसी तरह 30 अप्रैल को, मध्य प्रदेश के बालाघाट और टीकमगढ़ जिलों में 17 वर्षीय दो लड़कियों ने 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद आत्महत्या कर ली।

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अनुसार सरकार और यूजीसी ने छात्रों के उत्पीड़न और भेदभाव की घटनाओं की जांच के लिए कई पहल की है। छात्रों के हितों की रक्षा के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (छात्रों की शिकायतों का निवारण) विनियम, 2019 तैयार किया गया है।

यूजीसी ने उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खतरे को रोकने पर यूजीसी विनियम, 2009 को भी अधिसूचित किया है और विनियमों के सख्त अनुपालन के लिए परिपत्र जारी किया है।

इसके अलावा मंत्रालय ने अकादमिक तनाव को कम करने के लिए छात्रों के लिए सहकर्मी सहायता सीखने, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा की शुरुआत जैसे कई कदम उठाए हैं। सरकार की मनोदर्पण पहल, छात्रों, शिक्षकों और परिवारों को कोविड प्रकोप और उसके बाद के दौरान मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के लिए शुरू की गई है।

इसके अलावा संस्थाएं हैप्पीनेस और वेलनेस पर कार्यशालाएं/सेमिनार, योग पर नियमित सत्र, इंडक्शन प्रोग्राम, खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित पाठ्येतर गतिविधियां और समग्र व्यक्तित्व विकास और छात्रों को तनाव मुक्त करने के लिए छात्र परामर्शदाताओं की नियुक्ति करती हैं।

इसके अलावा छात्रों, वार्डन और देखभाल करने वालों को छात्रों में अवसाद के लक्षणों को नोटिस करने के लिए संवेदनशील बनाया जाता है ताकि समय पर नैदानिक परामर्श प्रदान किया जा सके।

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